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उपभोक्ता के अधिकार-

उपभोक्ता के अधिकार

1-उपभोक्ता की परिभाषा-

सामान्य अर्थों में, उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो उपयोग करने के हेतु कुछ निश्चित वस्तुओं या सेवाओं को कुछ भुगतान कर खरीदते हैं। दूसरे शब्दों में, तकनीकी परिभाषा के अनुसार, उपभोक्ता में तीन तत्वों का समावेश होना आवश्यक है,

जिसमें से एक की भी अनुपस्थिति व्यक्ति को उपभोक्ता के वर्ग से अलग कर सकती है। पहला, एक उपभोक्ता को एक खरीददार होना आवश्यक है, दूसरे माध्यम से वस्तु या सेवा प्राप्त करना उसे उपभोक्ता वर्ग में शामिल नहीं करता जैसेकि, वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत वस्तु प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता नहीं होता।

उपभोक्ता के अधिकार
उपभोक्ता के अधिकार

 दूसरा, वस्तु या सेवा की प्राप्ति का निर्धारण तब माना जाएगा जब उपभोक्ता के द्वारा क्रय के द्वारा वह निर्धारित किया गया हो। जैसे, उपहार या किसी वसियत के द्वारा बिना किसी निर्धारण की वस्तु या सेवा प्राप्त करना व्यकित को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखता है।

तीसरी, वस्तु या सेवा की खरीद उपभोक्ता द्वारा प्रत्यक्ष उपभोग के लिए आवश्यक है। जैसे कि, किसी व्यक्ति द्वारा किसी वस्तु को पुन: बेचने या किसी वाणिजियक उद्देश्य, जैसे पुनर्निर्माण या पुनर्चक्रण आदि के उद्देश्य से किसी निश्चित वस्तु या सेवा खरीदने से उसे उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।

2-उपभोक्ता अधिकार-

विज्ञान एवं प्रौधोगिकी के तेजी से विकास की ओर अग्रसर होने के कारण तकनीकी एवं उच्च विशेषता वाले असहज उत्पादों के निर्माण होने से उपभोक्ताओं में उनके उपभोग के लिए सस्ता एवं अच्छा उत्पाद के चुनाव के लिए व्यापक संशय उत्पन्न हो गया है।

आधुनिक व्यापारिक तकनीकों और लुभावने विज्ञापनों पर विश्वास कर लोग वस्तु को खरीद तो करते हैं परन्तु यह उनके उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है। उपभोक्ता के हितों की देखरेख के लिए संगठनों के अभाव होने से यह समस्या और भी जटिल हो जाती है। इसी परिसिथति को देखते  हुए उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए कई संस्थागत प्रणाली की शुरूआत विभिन्न देशों में की गई।

उपभोक्ता के अधिकार
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3-भारत में उपभोक्ता आंदोलन-

मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा भारत के व्यापारियों के बीच काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। लेकिन 1970 के दशक तक इस प्रकार के आंदोलन का मतलब केवल अखबारों में लेख लिखना और प्रदर्शनी लगाना ही होता था। विगत कुछ वर्षों से इस आंदोलन ने गति पकड़ी है।

विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के प्रति असंतुष्टि इतनी अधिक हो गई कि लोगों के पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। सरकार ने भी एक लंबे संघर्ष के बाद उपभोक्ताओं की सुधि ली। इसके नतीजा हुआ कि सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।

उपभोक्ता के अधिकार
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4-महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर-

प्रश्न 1. उत्पादक कौन होता है?

उत्तर- उत्पादक वह व्यक्ति होता है जो वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करता है।

प्रश्न 2. उपभोक्ता संरक्षण परिषदों का मुख्य कार्य क्या है?

उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण परिषदों का मुख्य कार्य उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना है।

प्रश्न 3. किन्हीं दो तरीकों का उल्लेख कीजिए जिनके द्वारा उपभोक्ताओं का बाज़ार में शोषण किया जाता है।

उत्तर- (क) घटिया वस्तु देकर।
(ख) अधिक मूल्य लेकर।

प्रश्न 4. भारत में उपभोक्ता आंदोलन क्यों प्रारंभ हआ?

उत्तर- भारत में ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के फलस्वरूप हुआ।

प्रश्न 5. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के किसी एक प्रावधान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया।

प्रश्न 6. उपभोक्ता के ‘चुनने के अधिकार’ का कोई एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर- राम दंतमंजन खरीदना चाहता है, उसे दुकानदार इसके साथ ब्रश खरीदने के लिए बाध्य करता है परन्तु राम केवल अपनी इच्छानुसार दंतमंजन ही खरीदने में सफल हो जाता है।

प्रश्न 7. कोपरा (उ० सं० अ०) का पूरा रूप बताइए।

उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act)।

प्रश्न 8. ‘उपभोक्ता शोषण’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- जब कोई दुकानदार उपभोक्ता को वस्तु या सेवा देते समय घटिया वस्तु दे देता है और वास्तविक मूल्य से अधिक कीमत वसूल करता है तो इसे उपभोक्ता शोषण कहा जाता है।

प्रश्न 9. ‘विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है?

उत्तर- विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को मनाया जाता है।

प्रश्न 10. मिलावट का क्या अर्थ होता है?

उत्तर- जब लाभ कमाने के लिए तेल, घी, मसाले तथा अन्य वस्तुओं को कुछ मिलाकर बेचा जाता है तो इसे मिलावट कहते हैं। इससे उपभोक्ता को मौद्रिक हानि होती है तथा स्वास्थ्य भी खराब होता है।

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