प्रारंभिक फैक्ट्रियों के शुरु होने के समय से ही लोग औद्योगीकरण की शुरुआत मानते हैं। लेकिन औद्योगीकरण की शुरुआत से ठीक पहले भी इंग्लैंड में अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिये बड़े पैमाने पर उत्पादन होता था। बड़े पैमाने पर उत्पादन के उस काल को आदि-औद्योगीकरण का काल कहते हैं।
उस जमाने में शहरों में दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे। इसलिए नये व्यापारियों को शहर में काम करने का मौका नहीं मिल पाता था। ऐसे व्यापारी गांवों के लोगों से उत्पादन करवाते थे और फिर उत्पाद को उपभोक्ताओं तक पहुँचाते थे। उसी दौरान खुले खेत खत्म हो रहे थे और कॉमंस की बाड़ाबंदी की जा रही थी। किसानों के पास इतनी उपज नहीं थी कि परिवार का पेट भर सकें। इसलिए किसान आसानी से नये व्यापारियों के लिए काम करने को राजी हो गये। वे काम करने के साथ अपने खेत और अपने परिवार पर भी ध्यान दे पाते थे।

1-औद्योगिक परिवर्तन की गति
- 1840 के दशक तक सूती उद्योग और कपास उद्योग में तेजी से वृद्धि हुई। उसके बाद 1840 से लेकर 1860 के दशक तक लोहा और स्टील उद्योग में तेजी आई। यह वह दौर था जब उपनिवेशों में रेल का प्रसार हो रहा था। इसलिए 1873 आते आते इंगलैंड से लौह-इस्पात का निर्यात 770 लाख पाउंड हो गया। यह सूत और कपास के निर्यात का दोगुना था।
- लेकिन औद्योगीकरण से रोजगार के अवसरों में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ। उन्नीसवीं सदी के अंत तक भी संगठित उद्योगों में केवल 20% कामगार ही काम कर रहे थे। अभी भी अधिकतर श्रमिक घरेलू इकाइयों में कार्यरत थे।
- पारंपरिक उद्योगों में भी कई परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन साधारण से दिखने वाली नई खोजों के कारण संभव हुए। उदाहरण: खाद्य संसाधन, भवन निर्माण, बर्तन निर्माण, काँच, चमड़ा उद्योग, फर्नीचर, आदि।
- नई तकनीक को पैर जमाने में हमेशा ही लंबा वक्त लगता है। शुरु में मशीनें उतनी कार्यकुशल नहीं थीं जितना कि उनके आविष्कारक दावा करते थे। मशीनों की मरम्मत करना भी महंगा साबित होता था। इसलिए कोई भी उद्योगपति नई मशीनों में निवेश करने से कतराता था।
- श्रमिकों की कोई कमी नहीं थी, इसलिए मजदूरी दर भी कम थी। इसलिए व्यवसायी और उद्योगपति श्रमिकों से काम लेना ही बेहतर समझते थे। इसलिए उन्नीसवीं सदी के मध्य का एक आम श्रमिक मशीन चलाने वाला न होकर एक पारंपरिक कारीगर होता था। हाथ से बनी चीजों को परिष्कृत माना जाता था इसलिए उनकी मांग अधिक होती थी।
- लेकिन उन्नीसवीं सदी के अमेरिका में स्थिति कुछ अलग थी। वहाँ पर श्रमिकों की कमी होने के कारण मशीनीकरण ही एकमात्र रास्ता बचा था।
2-कारखानों की शुरुआत
इंगलैंड में कारखाने सबसे पहले 1730 के दशक में बनने शुरु हुए, और अठारहवीं सदी के अंत तक पूरे इंगलैड में जगह जगह कारखाने दिखने लगे। उत्पादन का स्तर किस कदर बढ़ा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कपास का आयात 1760 में 25 पाउंड से बढ़कर 1787 में 229 लाख पाउंड हो गया।

कारखानों से लाभ: फैक्ट्रियों के खुलने से कई फायदे हुए। इससे उत्पादन के हर चरण की कुशलता बढ़ गई। नई मशीनों की मदद से प्रति श्रमिक उत्पादन की मात्रा अधिक हो गई और उत्पाद की गुणवत्ता भी बढ़ गई। सबसे पहले औद्योगीकरण का असर मुख्य रूप से कपड़ा उद्योग में हुआ। फैक्ट्री की चारदीवारी के भीतर मजदूरों की निगरानी करना और उनसे काम लेना आसान हो गया।
3-पूर्व औद्योगीकरण
यूरोप में औद्योगीकरण के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यूरोप में सबसे पहले कारखाने लगने के पहले के काल को पूर्व औद्योगीकरण का काल कहते हैं। इस अवधि में गाँवों में सामान बनते थे जिसे शहर के व्यापारी खरीदते थे।
व्यापारियों का गाँवों पर ध्यान देने का कारण: शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे। इस प्रकार के संगठन प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर अपना नियंत्रण रखते थे। वे नये लोगों को बाजार में काम शुरु करने से भी रोकते थे। इसलिये किसी भी व्यापारी के लिये शहर में नया व्यवसाय शुरु करना मुश्किल होता था। इसलिये वे गाँवों की ओर मुँह करना पसंद करते थे।

4-ब्रिटेन में पूर्व औद्योगीकरण के लक्षण:
शहर के व्यापारी गाँवों के किसानों को पैसे देते थे। वे किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिये उत्पाद बनाने के लिये प्रोत्साहित करते थे।
गाँवों में जमीन कम पड़ने लगी थी। जनसंख्या बढ़ रही थी जिसकी जरूरत जमीन के छोटे टुकड़ों से पूरी नहीं होती थी। इसलिये किसानों को आय के अतिरिक्त साधनों की तलाश थी।
पूर्व औद्योगीकरण के समय विनिमयों का एक जाल फैला हुआ था जिसे व्यापारी लोग नियंत्रित करते थे। सामान का उत्पादन वैसे किसान करते थे जो कारखानों में काम करने की बजाय अपने खेतों में काम करते थे। अंतिम उत्पाद कई हाथों से होता हुआ लंदन के बाजारों तक पहुँचता था। फिर इन उत्पादों को लंदन से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भेजा जाता था।