1-पोषण (Nutrition)
शब्द की उत्पत्ति पोषक शब्द से हुई है। पोषक ऐसा पदार्थ है जिसे प्रत्येक जीवधारी अपने पर्यावरण (Environment) से प्राप्त करता है एवं इसका उपयोग ऊर्जा के स्रोत अथवा शारीरिक घटकों के जैव-संश्लेषण के लिए करता है।
पोषण की विधियाँ (Methods of nutrition): भोज्य पदार्थों की प्राप्ति के आधार पर जीवधारियों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है-
स्वपोषी (Autotrophic nutrition): इस प्रकार के पोषण के अन्तर्गत जीव अपने भोज्य पदार्थ का निर्माण स्वयं करता है। सभी हरे पौधे, नील-हरित शैवाल (Blue green algae), कुछ जीवाणु तथा अधिकांश एककोशिकीय जीवों (Unicellular organisms) में स्वपोषी पोषण पाया जाता है। इस प्रकार से पोषण करने वाले जीव स्वपोषी (Autotrophs) कहलाते हैं।
परपोषी (Heterotrophic nutrition): इस प्रकार के पोषण में जीव अपने भोज्य पदार्थ का संश्लेषण (निर्माण) स्वयं नहीं कर पाते बल्कि उन्हें वह दूसरे जीवों से प्राप्त करता है। इस प्रकार का पोषण सभी जन्तुओं, कवकों तथा कुछ एककोशिकीय जीवों में पाया जाता है। इस प्रकार से पोषण करने वाले जीवों को परपोषी या विषमपोषी (Heterotrophs) कहते हैं।

2-प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक दशाएँ
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक दशाएँ:
1) सूर्य की रोशनी
2) क्लोरोफिल
3) कार्बन डाइ ऑक्साइड
4) जल
प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए इन दशाओं या तत्वों की अनिवार्यता को दर्शाने के लिए कुछ प्रयोग नीचे किए गए हैं| इन प्रयोगों द्वारा यह साबित हो जाता है कि हरी पत्तियाँ भोजन के रूप में स्टार्च का निर्माण करती हैं और स्टार्च को जब आयोडीन के घोल में मिलाया जाता है, तो वह नीले-काले रंग में बादल जाता है|

3-प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता को दर्शाता एक प्रयोग
• हरी पत्तियों से युक्त किसी पादप को लें और उसे अँधेरे भाग में रख दे ताकि पत्तियों में संचयित स्टार्च का पादप द्वारा उपयोग कर लिया जाए और पत्तियाँ पूरी तरह से स्टार्च से रहित हो जाए या फिर डी-स्टार्च हो जाएँ|
• अब किसी पत्ती के मध्य भाग को एल्युमीनियम चादर (Foil) से इस तरह ढंका जाए कि पत्ती का थोड़ा भाग ढंका रहे और बाकी भाग सूर्य के प्रकाश के लिए खुला रहे| एल्युमीनियम चादर को इतना कसकर बांधा जाए कि पत्ती के ढंके हुए भाग में प्रकाश का प्रवेश नहीं हो पाये|

• अब इस पादप को तीन-चार दिन के लिए सूर्य कि रोशनी में रख दें|