कृषि फसल उत्पादन पाठ-4 (पार्ट-3) Ncert Class 10
बागवानी कृषि फसल उत्पादन
सन् 2015 में भारत का विश्व में फलों(fruit) और सब्जियों के कृषि फसल उत्पादन(production) में चीन के बाद दूसरा स्थान था। भारत उष्ण(hot) और शीतोष्ण (Temperate) कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादक हैं।

भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूंजी (मेघालय) के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनन्नास, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के अंगूर, तथा हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर सेव, नाशपाती, खुबानी और अखरोट की विश्वभर में बहुत मांग है। भारत का मटर(peas), फूलगोभी, प्याज, बंदगोभी(Cabbage), टमाटर, बैंगन और आलू उत्पादन(Production) में प्रमुख स्थान है।

अखाद्य कृषि फसल उत्पादन
रबड़
रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की कृषि फसल उत्पादन हैं परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोस्न क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। इसको 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा और 25 डिग्री सेल्सियस(° C) से अधिक तापमान वाली नम और आद्र जलवायु(Climate) की आवश्यकता होती है। रबड़ एक महत्वपूर्ण कच्चा माल(raw material) है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है। इसे मुख्य रूप से केरल(KL), तमिलनाडु(TN), कर्नाटक(KA), अंडमान निकोबार दीप समूह(AN) और मेघालय(ML) में गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है।
क्रियाकलाप
उन वस्तुओं की सूची(List) बनाइए जो रबड़ से बनती है और हम इनका प्रयोग(Use) करते हैं।
इन्हें भी पढ़ें:- भू संसाधन तथा कृषि फसल Ncert Class 10 पाठ-4
रेशेदार कृषि फसल उत्पादन
कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम भारत में उगाई जाने वाली चार मुख्य रेशेदार कृषि फसल उत्पादन हैं। इनमें से पहली तीन मिट्टी में कृषि फसल उत्पादन उगाने से प्राप्त होती है और चौथा रेशम के कीड़े(Silkworm) के कोकून (Cocoon) से प्राप्त होती है।
कपास
भारत को कपास(Cotton) के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। सूती कपड़ा(Cotton) उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है। कपास उत्पादन(Production) में भारत का विश्व में तृतीय(3rd) स्थान है। दक्कन पठार के शुस्कतर भागों में काली मिट्टी(Soil) कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस कृषि फसल उत्पादन को उगाने(Grow) के लिए उच्च तापमान(Temperature), हल्की वर्षा या सिंचाई, 210 पाला रहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है। यह खरीफ की कृषि फसल उत्पादन हैं और इसे अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करने वाली कृषि में कुछ गंभीर तकनीकी एवं संस्थागत सुधार (improvement) लाने की आवश्यकता है।
कृषि उपकरण
सुवंत्रता के पश्चात् देश में संस्थागत सुधार करने के लिए जोतो की चकबंदी, सहकारिता तथा जमींदारी आदि समाप्त करने को प्राथमिकता दी गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि सुधार मुख्य लक्ष्य था। भूमि पर पुश्तैनी(Ancestral) अधिकार के कारण यह टुकड़ों(Pieces) में बटती जा रही थी जिसकी चकबंदी(Consolidation) करना अनिवार्य था। भूमि सुधार के कानून(Law) तो बने परंतु इनके लागू करने में ढील दी गई। 1960 और 1970 के दशकों में भारत सरकार ने कई प्रकार के कृषि सुधारों की शुरुआत की। पैकेज टेक्नोलॉजी पर आधारित हरित क्रांति(Operation flued) जैसी कृषि सुधार के लिए कुछ रणनीतियां (strategy) आरंभ की गई थी।

कृषि फसल बीमा
परंतु इसके कारण विकास कुछ क्षेत्रों तक ही है सीमित रह गया। इसलिए 1980 तथा 1990 के दशकों में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किया गया जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित था। इस दिशा में उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों में सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए कृषि फसल उत्पादन बीमा के प्रावधान और किसानों को कम दर पर ऋण(loan) सुविधाए प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों(Committees) और बैंकों(Bank) की स्थापना सम्मिलित थे।
इन्हें भी पढ़ें:- कृषि क्या है-
किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना(PAIS) भी शुरू की है। इसके अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम की जानकारी के बुलेटिन (Bulletin) और कृषि कार्यक्रम प्रसारित(broadcast) किए जाते हैं। किसानों को बिचौलियों(Middlemen) और दलालों के शोषण(exploitation) से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य और कुछ महत्वपूर्ण(Important) कृषि फसल उत्पादन के लाभदायक(Profitable) खरीद मूल्यों की सरकार(Government) घोषणा करती है।
भूदान-ग्रामदन
महात्मा गांधी ने विनोबा भावे, जिन्होंने उनके सत्याग्रह में सबसे निष्ठावान सत्याग्रही की तरह भाग लिया था, को अपना अध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया था। उनकी गांधी जी की ग्राम स्वराज्य अवधारणा में भी गहरी आस्था (Faith) थी। गांधी जी की शहादत के बाद उनके संदेश(Massage) को लोगों तक पहुंचाने के लिए विनोबा भावे ने लगभग पूरे देश की पदयात्रा(Hiking) की। एक बार जब वे आंध्र प्रदेश के एक गांव(Village) पोषमपल्ली में बोल रहे थे तो कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण(Maintenance) के लिए कुछ भूमि मांगी। विनोबा भावे ने उनसे तुरंत कोई वादा(Promise) तो नहीं किया परंतु उनको आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारिता (Cooperatives) कृषि फसल उत्पादन करें तो भारत सरकार(Government) से बात करके उनके लिए जमीन मुहैया करवाएंगे।
अचानक श्री रामचंद्र रेड्डी उठ खड़े हुए और उन्होंने 80 भूमिहीन ग्रामीणों को 80 एकड़ भूमि बांटने की पेशकश की। इसे
‘ भूदान ‘ के नाम से जाना गया। बाद में विनोबा भावे ने यात्राएं(Trips) की और अपना यह विचार पूरे भारत(India) में फैलाया। कुछ जमींदारों ने, जो अनेक गावों(Village) के मालिक थे, भूमिहीनों को पूरा गांव देने की पेशकश(Offer) भी की। इसे ‘ग्रामदान’ कहा गया। परंतु कुछ जमींदारों ने तो भूमि सीमा कानून(Law) से बचने के लिए अपनी भूमि का एक हिस्सा(Part) दान किया था। विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए इस भूदान- ग्रामदान आंदोलन(protest) को ‘रक्तहीन क्रांति’ का भी नाम दिया गया।
More Information- पाठ-4 कृषि Ncert Class 10
इन्हें भी पढ़ें:- कृषि सामाजिक विज्ञान पाठ-4 Ncert Class 10