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गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन-

गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन-

1-परम्परागत उर्जा के स्रोत

आज भी ऊर्जा के परम्परागत स्रोत महत्वपूर्ण हैं, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, तथापि ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों अथवा वैकल्पिक स्रोतों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

इससे एक ओर जहां ऊर्जा की मांग एवं आपूर्ति के बीच का अन्तर कम हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का संरक्षण होगा, पर्यावरण पर दबाव कम होगा, प्रदूषण नियंत्रित होगा, ऊर्जा लागत कम होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार हो पाएगा।

वर्तमान में भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने 1973 से ही नए तथा पुनरोपयोगी ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने के लिए अनुसंधान और विकास कार्य आरंभ कर दिए थे।

परन्तु, एक स्थायी ऊर्जा आधार के निर्माण में पुनरोपयोगी ऊर्जा या गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के उत्तरोत्तर बढ़ते महत्व को तेल संकट के तत्काल बाद 1970 के दशक के आरंभ में पहचाना जा सका।

आज पुनरोपयोगी और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के दायरे में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत्, बायो गैस, हाइड्रोजन, इंधन कोशिकाएं, विद्युत् वहां, समुद्री उर्जा, भू-तापीय उर्जा, आदि जैसी नवीन प्रौद्योगिकियां आती हैं।

गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन-
गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन-

2-सौर ऊर्जा

सूर्य ऊर्जा का सर्वाधिक व्यापक एवं अपरिमित स्रोत है, जो वातावरण में फोटॉन (छोटी-छोटी प्रकाश-तरंग-पेटिकाएं) के रूप में विकिरण से ऊर्जा का संचार करता है।

संभवतः पृथ्वी पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रासायनिक अभिक्रिया प्रकाश-संश्लेषण को माना जा सकता है, जो सूर्य के प्रकाश की हरे पौधों के साथ होती है।

इसीलिए, सौर ऊर्जा को पृथ्वी पर जीवन का प्रमुख संवाहक माना जाता है। अनुमानतः सूर्य की कुल ऊर्जा क्षमता-75000 x 1018 किलोवाट का मात्र एक प्रतिशत ही पृथ्वी की समस्त ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है।

भारत को प्रतिवर्ष 5000 ट्रिलियन किलोवाट घंटा के बराबर ऊर्जा मिलती है। प्रतिदिन का औसत भौगोलिक स्थिति के अनुसार 4-7 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर है।

वैश्विक सौर रेडिएशन का वार्षिक प्रतिशत भारत में प्रतिदिन 5.5 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर है। गौरतलब है कि उच्चतम वार्षिक रेडिएशन लद्दाख, पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात में और निम्नतम रेडिएशन पूर्वोत्तर क्षेत्रों में प्राप्त होता है। हम इसका प्रयोग दो रूप से कर सकते हैं- सौर फोटो-वोल्टेइक और सौर तापीय।

चूंकि मानव सौर ऊर्जा का उपयोग अनेक कार्यों में करता है इसलिए इसका व्यावहारिक उपयोग करने के लिए सौर ऊर्जा को अधिकाधिक क्षेत्र से एकत्र करने या दोनों की प्राप्ति हेतु उचित साधन आवश्यक होते हैं। इसलिए इसके दोहन हेतु कुछ युक्तियां उपयोग में लाई जाती प्रकाश-वोल्टीय सेल या सौर सेल।

व्यापारिक उपयोग हेतु सौर शक्ति टॉवर का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है। इसमें सौर ऊष्मकों में अनेक छोटे-छोटे दर्पण इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि सभी सौर विकिरणों को एक छोटे क्षेत्र में संकेन्द्रित करें।

इन सौर संकेंद्रकों द्वारा पानी गर्म किया जाता है तथा इस गर्म पानी की भाप विद्युत जनित्रों के टरबाइनों को घुमाने के काम में लाई जाती है। भारत सन् 1962 में विश्व का वह पहला देश बन गया जहां सौर-कुकरों का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया गया।

सौर ऊर्जा को सीधे विद्युत में परिवर्तित करने की युक्तियां सौर सेल (solar Cells) कहलाती हैं। सर्वप्रथम व्यावहारिक सौर सेल 1954 में बनाया गया जो लगभग 1% सौर ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित कर सकता था।

वहीं आधुनिक सौर सेलों की दक्षता 25% हैं। इनके निर्माण में सिलिकन का प्रयोग होता है। एक सामान्य सौर सेल लगभग 2 वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल वाला अतिशुद्ध सिलिकन का टुकड़ा होता है जिसे धूप में रखने पर वह 0.7 वाट (लगभग) विद्युत उत्पन्न करता है। जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को जोड़कर इनका उपयोग किया जाता है

तो इस व्यवस्था को सौर पैनल कहते हैं। सिलिकन का लाभ यह है कि यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा पर्यावरण हितैषी है तथा पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में सिलिकन दूसरे स्थान पर है परंतु सौर सेल बनाने हेतु विशेष श्रेणी के सिलिकन की उपलब्धता सीमित है।

सौर सेल विद्युत् के स्वच्छ पर्यावरण हितैषी तथा प्रदुषण रहित स्रोत है परन्तु फिर भी इनका उपयोग सीमित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हो रहा है।

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