भारतीय समाज में जाति प्रथा तथा वर्ण व्यवस्था नए समाज का विभाजन किया है इस विभाजन के कारण उच्च जातियों तथा निम्न जातियों की भावना प्रबल होती गई तथा समाज में छुआछूत जैसी बुराई व्याप्त हो गई छुआछूत को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं।

1-सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा-
समाज के समाज सुधारकों तथा महापुरुषों ने छुआछूत जैसी बीमारी के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इस बुराई के विरुद्ध सामान्य जनता को जागृत किया विभिन्न संस्थाओं जैसे ब्रह्म समाज आर्य समाज रामकृष्ण मिशन के द्वारा इस दिशा में महान प्रयास किए गांधीजी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए जीवन पर संघर्ष किया इसके अतिरिक्त डॉ आंबेडकर ज्योतिबा फुले तथा परियार जैसे महापुरुषों ने छुआछूत अथवा जातीय विभव के विरुद्ध आवाज उठाई तथा इसे समाप्त करने के प्रयास किए।
2-संवैधानिक व्यवस्थाओं द्वारा-
संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि छुआछूत जैसी बुराइयों को समाप्त करने के साथ इन्हें व्यवहार में परिणत करने वाले व्यक्तियों के लिए दंड की भी व्यवस्था की गई है संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना अथवा उसे अछूत समझकर सार्वजनिक स्थलों तालाबों होटलों पार्को अथवा मनोरंजन के स्थानों के प्रयोग से रोकना कानूनी अपराध है मौलिक अधिकारों के अध्याय में यह स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म जाति रंग नस्ल तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
3-सरकार द्वारा-
शासन द्वारा सन 1995 छुआछूत अपराध अधिनियम पारित किया गया था 1976 में एक अन्य कानूनी पारित किया गया जिसे नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम के नाम से जाना जाता है इसके अंतर्गत छुआछूत को मानने अथवा प्रचार करने वाले व्यक्ति के लिए 2 वर्ष तक का कारावास तथा ₹1000 तक का जुर्माना हो सकता है तथा उस व्यक्ति को संसद अथवा राज्य विधान मंडलों के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा।