
जातिवाद को समाप्त करने के उपाय-
जातिवाद एक विशेष जाति के पक्ष में एकतरफा वफादारी को दर्शाता है। जातिवाद एक जाति के सदस्यों को श्रेष्ठता या हीनता के नाम पर अपने निहित स्वार्थ के लिए दूसरी जाति के सदस्यों का शोषण करने के लिए प्रेरित करता है। सामाजिक ऐतिहासिक सिद्धांत के अनुसार, जाति व्यवस्था की उत्पत्ति भारत में आर्यों के आगमन में हुई। आर्य भारत में लगभग 1500 ई.पू. में पहुंचे
जातिवाद की समस्या क्या है?
जातिवाद या जातीयता एक ही जाति के लोगो की वह भावना है। जातिवाद जाति व्यवस्था से सम्बन्धित एक प्रमुख सामाजिक समस्या है। जो अपनी जाति विशेष के हितो की रक्षा के लिये अन्य जातियो के हितो की अवहेलना आरै उनका हनन करने के लिये प्रेरित करती है। जातिवाद की भावना व्यक्ति-व्यक्ति के बीच घृणा, द्वेष एवं प्रतिस्पर्धा को जन्म देती है। इस प्रभावना के आधार पर एक ही जाति के लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये अन्य जाति के लोगो को हानि पहुंचाने के लिये प्रेरित होते है। मुख्य जातियों को आगे उनके विशिष्ट व्यवसाय के आधार पर लगभग 3,000 जातियों और 25,000 उपजातियों में विभाजित किया गया था। इस हिंदू जाति व्यवस्था के बाहर अछूत थे – दलित या अछूत।

जातिवाद दूर करने के उपाय?
जातिवाद को समाप्त करना अत्यावश्यक है। भारत के विकास में यह बहुत बड़ा बाधक है। जातिवाद को कैसे खत्म किया जा सकता है, इस प्रश्न पर आज सबको विचार करना चाहिए। जातिवाद को समाप्त करने के लिए कुछ ईमानदार प्रयास होने आवश्यक हैं। सनद रहे, यह प्रयास समाज के हर वर्ग की तरफ से होना चाहिए। इस बात को सोचकर मैं दंग रह जाता हूँ कि कैसे कुछ लोग अपने आप को उच्च कुल का कहकर दम्भ करते हैं और दूसरे वर्ग के लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं। इस मानसिकता पर उन्हें शर्म क्यों नहीं आती, यह बात मैं हमेशा सोचता हूँ।
इसका दूसरा पक्ष आपको बतलाता हूँ। मैंने देखा है कि वे लोग जो समाज के काल्पनिक और झूठे बटवारे के आधार पर निम्न जाति के माने जाते हैं, वे खुद अपनी जाति को अपनी अस्मिता से जोड़ते हैं। कई धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ने के बाद भी मुझे जाति व्यवस्था निराधार प्रतीत हुई। भला समाज के लोगों के आपसी सद्भाव को विषाक्त करने का प्रयास करने वाली जाति प्रथा कैसे सही हो सकती हैं। इसे दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी लोग अपने कुल और जाति के आधार पर खुद को और दूसरों को पहचानना बन्द करें।
इन्हें भी पढ़ें:-भारत में घटते जल स्तर के मुख्य कारण-
देश के भाग्य विधाता कहे जाने वाले नेताओं को भी इस बात को समझना होगा। अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वे प्रायः जातिगत भावनाओं का प्रयोग करते हैं। नेताओं से ज़्यादा दोषी इस देश की जनता है। सबको संकल्प लेना होगा कि जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।

जातिवाद का लोकतंत्र पर प्रभाव-
राष्ट्रीय एकता के घातक – जातिवाद राष्ट्रीय एकता के लिये घातक सिद्ध हुआ है। क्योंकि जातिवाद की भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने जातीय हितो को ही सर्वोपरि मानकर राष्ट्रीय हितो की उपेक्षा कर देता है। व्यक्ति केा तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिससे राष्ट्रीय एकता को आघात पहचुं ता है।
जातीय एवं वगरीय संघर्ष- जातिवाद ने जातीय एवं संघर्षो को जन्म दिया है। विभिन्न जातियो एवं वर्गो में पारस्परिक ईष्र्या एवं द्वेष के कारण जातीय एवं वर्गीय दंगे हो जाया करते है। इतना ही राजसत्ता पर अधिकार जमाने के लिये विभिन्न जातियों के मध्य खुला संघर्ष दिखाई देता है।
इन्हें भी पढ़ें:-Class 10th Science Chapter 13 विधुत धारा के चुंबकीय प्रभाव-
राजनीतिक भ्रष्टाचार- सभी राजनैतिक दलो में जातीय आधार पर अनेक गुट पाये जाते है और वे निर्वाचन के अवसर पर विभिन्न जातियो के मतदाताओ की संख्या को आधार मानकर ही अपने प्रत्याशियो का चयन करते है। निर्वाचन के पश्चात राजनीतिज्ञ नेतृत्व का निर्णय भी जातिगत आधार पर ही होता है।
नैतिक पतन- जातिवाद की भवना से पे्ररित व्यक्ति अपनी जाति के व्यक्ति यो को अनुचित सुविधाएं प्रदान करने के लिये अनैतिक एवं अनुचित कार्य करता है। जिससे समाज का नैतिक पतन हो जाता है।
समाज की गतिशाीलतता और विकास में बाधक- जातीय बंधन जातीय प्रेम के कारण एक व्यक्ति एक स्थान को छाडे कर रोजगार या अपने विकास हेतु किसी दूसरे स्थान पर नही जाता भले ही उसकी निर्धनता में वृद्धि क्यों न होती रहे।
इन्हें भी पढ़ें:-भारत का भौतिक स्वरूप-
इन्हें भी पढ़ें:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
- जनसंख्या का अध्ययन क्या कहलाता है?
- 1927 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
- satta ki sajhedari se aap kya samajhte hain in hindi
One thought on “जातिवाद को समाप्त करने के उपाय-”