1-जनसंख्या घनत्व
जनसंख्या एकाग्रता का महत्वपूर्ण सूचकांक में एक आबादी का घनत्व है। यह वर्ग किलोमीटर प्रति व्यक्तियों की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है। 2011 में भारत का जनसंख्या घनत्व 382 प्रति वर्ग किमी था।
जनसंख्या का घनत्व जनसंख्या घनत्व 11 के साथ 2001 और 2011 के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कमी आई थी, 297 सबसे घनी आबादी वाले केन्द्र शासित प्रदेशों है। राज्यों में बिहार में 2011 में 1,102 की आबादी के घनत्व के साथ इस सूची के शीर्ष पर है।

2-जनसंख्या में वृद्धि के कारण-
1. आज भी हमारे देश में कई ऐसे पिछड़े इलाके व गांव हैं, जहां बाल विवाह की परंपरा प्रचलित है जिसके कारण कम उम्र से ही बच्चे पैदा होने शुरू हो जाते हैं, फलस्वरूप अधिक बच्चे पैदा होते हैं।
2. शिक्षा का अभाव जनसंख्या वृद्धि की एक बड़ी वजह है।
3. रूढ़िवादी सोच और पुरुष-प्रधान समाज में लड़के की चाह में लोग कई बच्चे पैदा कर लेते हैं।
4. आज भी कई ऐसी जगहें हैं, जहां बड़े-बुजुर्गों की ऐसी सोच होती है कि यदि उनकी पुश्तैनी धन-संपत्ति अधिक है, तो उसे आगे बढ़ाने और संभालने के लिए ज्यादा लड़के पैदा किए जाएं। कई मामलों में शादीशुदा जोड़ों पर बच्चे पैदा करने का दबाव तक बनाया जाता है।
5. शिक्षित और मध्यमवर्गीय परिवार की यह सोच कि ‘अधिक बच्चे विशेष तौर पर लड़के यानी उनके बुढ़ापे का सहारा’।
6. परिवार नियोजन के महत्व को समझाए बगैर ही युवाओं की शादी कर देना भी एक मुख्य कारण है। इस तरह की बातों पर आज भी घर-परिवारों में चर्चा करना गलत समझा जाता है और बिना अपने युवा बच्चों को संबंधों और उनके परिणामों के बारे में बताए बगैर ही सीधे उनकी शादी कर दी जाती है। ऐसे में कई मामलों में लोग अज्ञानतावश ही बच्चे पैदा कर बैठते हैं।
7. आज भी लड़कियों को गर्भ निरोधक के उपाय संबंधित जानकारी शादी के पहले नहीं दी जाती है और कई मामलों में शादी के बाद भी कैसे अनचाहे गर्भ से बचें, उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं होती है।
8. गरीबी भी जनसंख्या बढ़ने का मूल कारण है।
9. हमारे देश में बहुत से बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। रोजगार की समस्या, यह साफतौर पर बताता है कि आपके बच्चे और देश के विकास में ज्यादा जनसंख्या रुकावट बनती है।

3-बढ़ती आबादी की प्रमुख चुनौतियाँ
स्थिर जनसंख्या: स्थिर जनसंख्या वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम प्रजनन दर में कमी की जाए। यह बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में काफी अधिक है, जो एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
जीवन की गुणवत्ता: नागरिकों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता प्रदान करने के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली के विकास पर निवेश करना होगा, अनाजों एवं खाद्यान्नों का अधिक-से-अधिक उत्पादन करना होगा, लोगों को रहने के लिये घर देना होगा, स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति बढ़ानी होगी एवं सड़क, परिवहन और विद्युत उत्पादन तथा वितरण जैसे बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने पर काम करना होगा।
नागरिकों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने और बढ़ती आबादी को सामाजिक बुनियादी ढाँचा प्रदान करके समायोजित करने के लिये भारत को अधिक खर्च करने की आवश्यकता है तथा इसके लिये भारत को सभी संभावित माध्यमों से अपने संसाधन बढ़ाने होंगे।
जनसांख्यिकीय विभाजन: बढ़ती जनसंख्या का लाभ उठाने के लिये भारत को मानव पूंजी का मज़बूत आधार बनाना होगा ताकि वे लोग देश की अर्थव्यवस्था में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें, लेकिन भारत की कम साक्षरता दर (लगभग 74 प्रतिशत) इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
सतत् शहरी विकास: वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी दोगुनी हो जाएगी, जिसके चलते शहरी सुविधाओं में सुधार और सभी को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती होगी, साथ ही पर्यावरण को भी मद्देनज़र रखना ज़रूरी होगा।

असमान आय वितरण : आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में सामने आएगी।