1-कायिक प्रवर्धन
पौधे के कायिक भाग जैसे जड़ , तना तथा पत्तियाँ आदि उपयुक्त पौधे के कायिक भाग जैसे जड़ , तना तथा पत्तियाँ आदि उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नये पौधे का निर्माण करते है ,इसे ही कायिक प्रवर्धन कहते है । में विकसित होकर नये पौधे का निर्माण करते है ,इसे ही कायिक प्रवर्धन कहते है । उदा. केला , संतरा, गुलाब
उदा. ब्रायोफिलम(पत्थरचट्टा) की पत्तियों की कोर पर कुछ कलिकाऐं विकसित होकर मृदा में गिर जाती है और नए पौधे में विकसित हो जाती है ।

उत्तक संवर्धन-
पौधे के उत्तक अथवा कर्तोत्तकी भाग को कृत्रिम पोषक माध्यम में रखकर पौधों के उगाने की तकनीक को उत्तक संवर्धन कहते है । इसमें कोशिकाओं का एक छोटा समुह बनता है जिसे कैलस कहते है । इस विधि से रोग मुक्त पौधे तैयार किये जाते है ।
बीजाणुओं द्वारा जनन(बीजाणु समासंघ)-
अनेक सरल बहुकोशिक जीवों में भी विशिष्ट संरचनाऐं पाई जाती है जो जनन में भाग लेती है । गीली ब्रेड पर कुछ सप्ताह में धागे समान संरचनाऐं विकसित हो जाती है , यह राइजोपस का कवक जाल होता है । इसमें उर्ध्व तंतु उपस्थित होते है जिनके सिरों पर सूक्ष्म गुच्छ या गोल संरचनाऐं पाई जाती है जिन्हें बीजाणुधानी कहते है , ये बीजाणु नामक संरचनाओं का निर्माण करती है जो नये जीव को उत्पन्न करते है । इसे ही बीजाणुओं द्वारा जनन कहते है ।

बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है । नम सतह के संपर्क में आने पर ये बीजाणु वृद्धि करने लगते है ।
पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन- पुष्प के परागकण वर्तिकाग्र तक विभिन्न माध्यमों ( जैसे जल , वायु आदि) की सहायता से पहुँचते है और अंकुरित होते है ,इसके बाद परागकण से परागनलिका निकलती है । परागनलिका में नर युग्मक विभाजित होता है जिससे दो नरयुग्मक बनते है ।
नरयुग्मक बीजांड तक पहुँचते है और अण्ड को निषेचित करते है , जिससे युग्मनज(जाइगोट) का निर्माण होता है । युग्मनज आगे चलकर विभाजित होता है और भ्रूण में विकसित होता है । बीजांड कठोर आवरण का निर्माण करता है जिसे बीज कहते है जिसमें भ्रूण संरक्षित रहता है । अण्डाशय फल में परिवर्तित हो जाता है । इन प्रक्रमों के दौरान बाह्यदल , दल ,पुंकेसर , वर्तिकाग्र , वर्तिका आदि मुरझा कर गिर जाते है ।

⦁ अंकुरण -बीज बनने से पौधों की उत्तरजीविता बढ़ जाती है क्योंकि बीज में भावी पौधा या भ्रूण होता है जो उपयुक्त परिस्थितियों में नवोदभिद में विकसित हो जाता है, इस प्रक्रम को अंकुरण कहते है ।
2-कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-
1- शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?
उत्तर-शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि अपना स्राव शुक्र वाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है। साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।
प्रश्न 2. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर-(i) शरीर के कुछ नए भागों जैसे काँख और जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल गुच्छ निकल आते हैं।
(ii) हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं।
(iii) त्वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी मुहाँसे निकल आते हैं।
(iv) वक्ष के आकार में वृद्धि होने लगती है।
(v) स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा भूरा होने लगता है।
(vi) रजोधर्म होने लगता है।
(vii) अंडाशय में अंड परिपक्व होने लगते हैं।
(viii) ध्वनि सुरीली हो जाती है।
(ix) विपरीत लिंग की ओर आकर्षण होने लगता है।
प्रश्न 3. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
उत्तर-गर्भस्थ भ्रूण को माँ के रुधिर से पोषण प्राप्त होता है। इसके लिए प्लेसेंटा की संरचना प्रकृति के द्वारा की गई है। वह एक तश्तरी नुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर से ऊतक के प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्त स्थान होते हैं जो प्रवर्ध को ढांपते हैं। ये माँ से भ्रूण को ग्लूकोज़, ऑक्सीजन और अन्य पदार्थ प्रदान करते हैं।