
पारिस्थितिक तंत्र कितने प्रकार के होते हैं?
वास्तव में हमारी पृथ्वी स्वयं एक ह्रदय परितंत्र है, जिसमें विभिन्न प्रकार की परितंत्र क्रियाशील रहती है। लघु स्तर पर एक गांव, एक आवासीय परिसर, एक झील, एक नदी या तालाब आदि का भी अपना परितंत्र होता है।
प्रत्येक प्रकार के परितंत्र में भौतिक अवस्थाओं की विविधताएं एवं विभिन्न प्रकार के जीवो के विशिष्ट अंत संबंध पाए जाते हैं। इस दृष्टि विभिन्न प्रकार के परितंत्रओं का सामान्य परिचय और विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1-वन परितंत्र-
वृक्षप्रधान प्राकृतिक पौधों के समुदायों को वन कहा जाता है। वन परितंत्र को जीवोम (Biom) भी कहा जाता है। वन परितंत्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1-वन परितंत्र में कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ मृदा एवं वायुमंडल में विद्यमान होते हैं।
2-इस परितंत्र में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे उत्पादक के रूप में होते हैं।
3-वन परितंत्र में तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं-प्राथमिक, द्वितीयक, और तृतीयक।
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4-वन परितंत्र में अनेक प्रकार के छोटे-छोटे सूक्ष्म जीव होते हैं। इनमें कवक और जीवाणु तथा एक्टीनोमाइसीट्स पाए जाते हैं।
2-घास भूमि परितंत्र-
पृथ्वी के उन भागों में जहां शीतकाल काफी ठंडा और ग्रीष्म काल काफी गर्म होता है, वहां घास भूमि परितंत्र की प्रधानता होती है। स्थलीय भाग के लगभग 24% भाग पर घास भूमि का विस्तार पाया जाता है। घास परितंत्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है-
1-इस परितंत्र में वृक्षों उपस्थिति अल्प मात्रा में पाई जाती है।यहां कुछ झाड़ियों वाले पौधे एवं विभिन्न प्रकार की घास उत्पादक के रूप में मिलती है।
2-घास भूमि परितंत्र में भी तीनों प्रकार की उपभोक्ता होते हैं। प्राथमिक उपभोक्ताओं में यहां गाय, भैंसा, हिरण चूहे आदि घास खाने वाले जीवो की प्रधानता है।
3-घास भूमि पर तंत्र में वियोजक के रूप में अनेक प्रकार के कवक और जीवाणु पाए जाते हैं।
3-मरुस्थलीय परितंत्र-
पृथ्वी पर जहां 25 सेमी से कम वर्षा होती है उन क्षेत्रों में मरुस्थलीय वन परितंत्र का विकास होता है। मरुस्थलीय परितंत्र की प्रमुख विशेषताओं का विवरण इस प्रकार है-
1-इस परितंत्र में कम वर्षा तथा उचित तापमान मिलता है। मरुस्थलीय पारितंत्र में अपक्षय शक्तियों की प्रबलता होता है; अतः रेतीली मिट्टी का निर्माण अधिक होता है।
2-मरुस्थलीय परितंत्र में उत्पादक के रूप में चार प्रकार के पादपो की पहचान की जाती है।
1-वार्षिक पौधे जिसमें अनेक प्रकार की घास उत्पन्न होती है।
2-मरुस्थलीय झाड़ियां, जिनके पत्तै शुष्क मौसम में झड़ जाते हैं।
3-मांसल तने वाले पौधे जैसे केक्टस ।
4-सूचना वनस्पति जिसमें लाइकिन तथा नीली हरित शैवाल आदि सम्मिलित होती है।
4-जलीय परितंत्र-
जलीय परितंत्र अनेक प्रकार के होते हैं।इनमें लघु स्तर पर झील, तालाब,नदियां आदि मृदुल जलीय परितंत्र तथा वृहद स्तर पर खड़ी सागर,महासागर आदि परितंत्र देखी जाती हैं।