पीली क्रांति
तिलहन उत्पादन से सम्बन्धित हैं। इसके उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से यह योजना प्रारम्भ की गई। तिलहन उतपासन कार्यक्रम में 23 राज्यों के 337 जिले शामिल हैं। इस क्रांति के परिणामस्वरुप भारत के खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की हैं।
पीली क्रांति के जनक
पीली क्रांति के जनक कौन है, बता दे कि 1980 के दशक में जब देश का खाद्य तेल आयात चिन्ताजनक स्तर पर पहुंच गया तब भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं हस्तक्षेप करके तिलहन पर तकनीकी मिशन शुरु कराया।
पीली क्रांति के तहत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त केने की दृष्टि से उत्पादन, प्रसंस्करण और प्रबन्ध प्राद्योगिकी का सर्वोत्तम उपयोग करने के उद्देश्य से तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन प्रारम्भ किया गया। ‘पीली क्रांति’ के परिणामस्वरूप ही हमारा देश खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर सका है।
तिलहन बढ़ाने के लिए प्रयास-
1. न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि – तिलहन के उतपाद का आकर्षक बनाने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी पर्याप्त वृद्धि की है । 1989 में कृषि लागत एवं कीमत आयोग ने तिलहन की वसूली कीमतों में भारी वृद्धि की ।
2. उन्नत किस्म के बीज – सरकार ने किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराकर देश की तिलहन उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयास किया है ।
3. भण्डारण और वितरण की सुविधाएँ
4. राष्ट्रीय कृषित सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड) की स्थापना ।
5. राष्ट्रीय तिलहन एवं वानस्पतिक विकास बोर्ड (NOBOD) की स्थापना ।
इस प्रकार इस क्षेत्र में अपनाए गए समन्वित प्रयासों के बाद भारत तिलहन उत्पादन में न केवल आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि तिलहन उत्पादों का निर्यात भी करने लगा है । सन् 1987 ई. में तिलहन का कुल उत्पादन 1.27 करोड़ था जो 1998-99 में बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो गया । तिलहन के इस उत्पादन वृद्धि में सर्वाधिक योगदान मूंगफली का है, जो कुल उत्पादन का लगभग 35 प्रतिशत है ।
तिलहन उत्पादन कम होने के कारण-
1. कुल कृषि भूमि में तिलहनी फसलों का कम क्षेत्रफल ।
2. घरेलू बीजों का उपयोग, जिसके कारण तेल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव ।
3. खाद्य एवं उर्वरकों का नगण्य उपयोग ।
4. फसल सुरक्षा एवं वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग न किया जाना ।
5. मिश्रित फसली खेती में दलहन उत्पादन को प्राथमिकता देना ।