कोयला खनन क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी निवेश की कमी, निजी कंपनियों द्वारा खनन के अवैज्ञानिक तरीकों को अपनाने और श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा निजी कोयला खदानों के राष्ट्रीकरण का निर्णय लिया गया।
इसके तहत वर्ष 1971-72 और 1973 में ‘कोककर कोयला खान (आपात प्रावधान) अधिनियम, 1971’ ‘कोककर कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972’ और ‘कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973’ के माध्यम से देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकारण किया गया।
भारत में कोयले का वितरण-
2-भारत में कोयला उत्पादन:
विश्व में सबसे अधिक कोयला भंडार की उपलब्धता वाले देशों की सूची में भारत का 5वाँ स्थान है।
वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष स्थानीय कोल उत्पादन लगभग 700-800 मिलियन टन है, जबकि प्रतिवर्ष औसतन लगभग 150-200 मिलियन टन कोयले का आयात किया जाता है।
देश उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 50% से अधिक कोयला आधारित इकाइयों से ही आती है और अन्य कई औद्योगिक क्षेत्रों में कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत रहा है।
वर्ष 1973 में भारत में कोयले के राष्ट्रीकरण के बाद वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) की स्थापना की गई थी।
वर्तमान में देश के कुल कोयला उत्पादन में कोल इंडिया लिमिटेड की भागीदारी लगभग 82% है।
वर्ष 2006-07 में भारत सरकार के सार्वजनिक उद्यम विभाग द्वारा CIL को ‘मिनीरत्न’ (Mini Ratna), वर्ष 2008-09 में ‘नवरत्न’ (Navratna) और अप्रैल 2011 में इसे ‘महारत्न’ (Maharatna) का दर्जा दिया गया था।
भारत में कोयले का वितरण-
3-भारतीय कोयला उत्पादन की चुनौतियाँ:
कोल इंडिया लिमिटेड के विश्व की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी होने के बावजूद भी वर्ष 2019 में भारत द्वारा विदेशों से 235 मिलियन टन कोयले का आयात किया गया था।
नवीन तकनीक का अभाव:
देश में कोयले के राष्ट्रीयकरण के बाद CIL द्वारा समय के साथ कोयला खनन में नवीन तकनीक को शामिल न करने से खनन प्रक्रिया बहुत धीमी और बोझिल हो गई है।
खनन प्रक्रिया में नई तकनीकों को बढ़ावा न देने से न सिर्फ कोयला खनन महँगा हुआ है बल्कि नवीन तकनीकों का अभाव ही खनन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण बनता है।
प्रतिस्पर्द्धा और निवेश की कमी:
कोयला खनन में एक ही कंपनी के सक्रिय रहने से खनन क्षेत्र के विकास की गति बहुत ही सीमित रही है।
कोयले के उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि न होने से CIL के राजस्व में कमी आई है, इससे सरकार के लिये देश के कोयला क्षेत्र के विकास हेतु बड़े पैमाने पर निवेश करना एक चुनौती रही है।
कोयला खनन क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी न होने से इस क्षेत्र में होने वाला निवेश बहुत ही सीमित रहा है।