
मन्नू भंडारी का जीवन परिचय-
1-मन्नू भंडारी का जन्म-
मन्नू भंडारी एक भारतीय लेखक है जो विशेषतः 1950 से 1960 के बीच अपने अपने कार्यो के लिए जानी जाती थी। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध थी। पहला आपका बंटी और दूसरा महाभोज। नयी कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीषम साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने उन्हें अभियान की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया था।
1950 में भारत को आज़ादी मिले कुछ ही साल हुए थे, और उस समय भारत सामाजिक बदलाव जैसी समस्याओ से जूझ रहा था। इसीलिए इसी समय लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे, जिनमे भंडारी भी शामिल थी। उनके लेख हमेशा लैंगिक असमानता और वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर आधारित होते थे।
2-मन्नू भंडारी की जीवनी-
मन्नू भंडारी एक भारतीय लेखक है जो विशेषतः 1950 से 1960 के बीच अपने कार्यो के लिए जानी जाती थी। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध थी, पहला आपका बंटी और दूसरा महाभोज।
नयी कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीषम साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने उन्हं अभियान की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया था।
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1950 में भारत को आज़ादी मिले कुछ ही साल हुए थे, और उस समय भारत सामाजिक बदलाव जैसी समस्याओ से जूझ रहा था।
इसीलिए इसी समय लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे, जिनमे भंडारी भी शामिल थी। उनके लेख हमेशा लैंगिक असमानता और वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर आधारित होते थे।
आज़ादी के बाद भारत के मुख्य लेखिकाओ में से एक थी। आज़ादी के बाद भंडारी अपने लेखो में महिलाओ से संबंधित और उन्हें हो रही समस्याओ को अपने लेखो के माध्यम से उजागर करती थी।
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इसके साथ ही लैंगिक, मानसिक और आर्थिक रूप से महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों को भी वह अपने लेखो के माध्यम से लोगो तक पहुचाती थी।
उनकी कहानियो में कोई भी महिला चरित्र हमेशा मजबूत होता था, अपने लेखो के माध्यम से उन्होंने आज़ादी के बाद महिलाओ की एक नयी छवि निर्माण की थी।
3-उपन्यास-
आपका बंटी, महाभोज
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इसके अलावा उन्होंने फिल्म एवं टेलीविजन धारावाहिकों के लिए पट कथाएं भी लिखी थी।
3-मन्नू भंडारी की भाषा शैली-
भाषा शैली– मन्नू भंडारी की भाषा शैली सरल, सहज, स्वाभाविक और भावाभिव्यक्त में सक्षम है। उनकी रचनाओं में बोलचाल की हिंदी भाषा के साथ-साथ लोक प्रचलित उर्दू, अंग्रेजी, देशज शब्दों की बहुलता देखी जा सकती है। उन्होंने वर्णनात्मक शैली के अतिरिक्त समास और संवाद शैली का भी प्रयोग किया है।
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