1-ज्युसेपे मेत्सिनी
2-काउंट कैमिलो दे कावूर
3-यूनानी स्वतंत्रता दिवस3
4-फ्रैंकफर्ट संसद
1-ज्युसेपे मेत्सिनी
इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में विखंडित था । 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए अपने राजनीतिक विचार प्रस्तुत किए। उसका विश्वास था कि युवा पीढ़ी को महत्व प्रदान करके ही हम राष्ट्र की संकल्पना को पूर्ण कर सकते हैं ।

उससे गणतंत्रात्मक राज्यव्यवस्था के अंतर्गत इटली के एकीकरण के लिए ‘यंग इटली’ नामक एक संगठन बनाया । उसने अपने समर्थकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करने के लिए कार्यशालाओं का भी आयोजन किया ।
अतीत के गौरव तथा वाणिज्यिक विस्तार की स्मृति द्वारा रूमानी राष्ट्रवाद को उभारने का प्रयास भी ज्युसेपे मेत्सिनी ने किया।
2-काउंट कैमिलो दे कावूर
कावुर सार्डीनिया– पीडमांट के शासक विक्टर इमैनुएल द्वितीय का मंत्री प्रमुख था। उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। उसका न तो जनतंत्र में विश्वास था न ही वह एक क्रांतिकारी था।
वह इतालवी भाषा से अच्छी फ्रेंच बोलता था। फ्रांस के साथ सार्डीनिया- पीडमांट कि एक कूटनीतिक संधि के पीछे कावुर का हाथ था । इसी संधि के परिणाम स्वरूप 1859 ईसवी में सार्डीनिया- पीडमांट ऑस्ट्रेलियाई सेना को हराने में सफल रहा था।
3-यूनानी स्वतंत्रता दिवस
यूनानी स्वतंत्रता युद्ध 1821 ई० में आराम हुआ। पंद्रहवीं सदी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य का एक भाग था। अनेक राष्ट्रवादी यूनानी निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
इन निर्वासित यूनानियों को यूरोप के बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त था। ये लोग यूनान की प्राचीन संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे । इसी समय यूनानी कवियों तथा कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर देश की प्रशंसा की।
उन्होंने मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध अपने संघर्ष में जनमत भी तैयार किया। अंग्रेज कवि लॉर्ड बाॅयरन तो धन इकट्ठा करके युद्ध तक लड़ने गए। वहां 1824 में बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि के अनुसार यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा प्रदान किया गया।
यूनान के स्वतंत्रता संग्राम का राष्ट्रवाद के इतिहास विशेष महत्व है । इसने यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार किया।
4-फ्रैंकफर्ट संसद
फ्रैंकफर्ट संसद का संबंध जर्मन राष्ट्र के निर्माण से है। 18 मई 1848 को विभिन्न जर्मन प्रदेशों के 831 निर्वाचित सदस्यों ने एक जुलूस के रूप में फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में हुई थी ।
इस संसद ने जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान की रूपरेखा बनाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद प्रशा के राजा फ्रेडरिख विल्हेम चतुर्थ को सौंपने की पेशकश की गई । उसे संसद के अधीन रहना था परंतु उसने यह पेशकश ठुकरा दी।
उसने उन राज्यों का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। जहां जहां कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ा, वहां संसद का सामाजिक आधार कम होता गया । इसके अतिरिक्त संसद में मध्य वर्गों का प्रभाव अधिक था ।
इन वर्गों ने मजदूरों और कारीगरों की मांगों की ओर ध्यान नहीं दिया तथा वह उनका समर्थन खो बैठे। अंत में सैनिकों को बुलाया और संसद को भंग कर दिया गया।
यूनानी स्वतंत्रता युद्ध कब हुआ।
1821