1-भाषा शैली-
भाषा-शैली के क्षेत्र में यशपाल जी ने प्रेमचंद जी का पूर्ण अनुसरण किया है उनकी भाषा जन मानव की सामान्य भाषा है कहीं-कहीं भाषा का संवेदनात्मक रूप भी देखने को मिला है जहां भाषा भाव-प्रवण हो गई है परंतु सामान्यता भाषा सहज और स्वाभाविक है इनकी भाषा में बोलचाल के अरबी फारसी व अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी दृष्टव्य या है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
यशपाल जी की शैली बड़ी ओजस्विनी वह सफल है उन्होंने अपनी कला में समस्त प्रचलित शैलियों का प्रयोग किया है जिनमें वर्णनात्मक संवादात्मक आत्म प्रयास किया है जिनमें वर्णनात्मक संवाद संवादात्मक आत्म प्रयास चरित्र प्रयास व्यंग्य प्रयास शैलियां प्रमुख है।