
लोकतंत्र की चुनौतियां-
1-लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
यह चुनौती हर लोकतंत्र के सामने आती है। लोकतंत्र की प्रक्रियाओं और संस्थानों को मजबूत करने से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं। इससे लोगों को लोकतंत्र से अपनी अपेक्षाओं के बारे में सही सही पता चलता है। अलग-अलग समाज में लोगों की लोकतंत्र से अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं।
अस्सी के दशक तक भारत में जब चुनाव होते थे तो बूथ लूटने और फर्जी मतदान करने की घटना आम बात होती थी। नब्बे के दशक की शुरुआत में टी एन शेषण को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया। टी एन शेषण ने कई ऐसे कदम उठाए जिनसे राजनीतिक दलों में अनुशासन आया। उसके बाद बूथ लूटने की घटनाएँ लगभग नगण्य हो गई। उसके बाद से लोगों का चुनाव आयोग पर विश्वास बढ़ गया।
अलग-अलग देशों में लोकतंत्र की अलग-अलग चुनौतियँ होती हैं। कोई भी देश किस तरह की चुनौती का सामना करता है यह इस पर निर्भर करता है कि वह देश लोकतांत्रिक विकास के किस चरण पर है।
2-विस्तार की चुनौती
लोकतंत्र के विस्तार का मतलब होता है देश के हर क्षेत्र में लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को लागू करना और लोकतंत्र के प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुँचाना। लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के कई उदाहरण हैं, जैसे कि कि स्थानीय स्वशाषी निकायों को अधिक शक्ति प्रदान करना, संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से जोड़ना, आदि।
लोकतंत्र के विस्तार का एक और अर्थ है ऐसे फैसलों की संख्या कम करना जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हटकर लेना पड़े।
3-लोकतंत्र की मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
1) आधार तैयार करने की चुनौती
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2) विस्तार की चुनौती
3) लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना
4-भारतीय की दो प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं…
राजनीति का अपराधीकरण ► भारतीय लोकतंत्र में सबसे बड़ी कमी यह है कि जनप्रतिनिधियों का अपराधीकरण होता जा रहा है अर्थात लोकतंत्र के मंदिर संसद में ऐसे जनप्रतिनिधि चुनकर पहुंचते जा रहे हैं, जो किसी न किसी अपराध में लिप्त रहे हैं। जो जितना बड़ा अपराधी होता है वो उतनी ही जल्दी संसद में चुनाव जीतकर पहुंच जाता है।
जनता भी ऐसे प्रतिनिधियों को चुनने में संकोच नहीं करती, क्योंकि ऐसे प्रतिनिधि अपनी छवि रॉबिनहुड जैसी बना लेते हैं और अपने धन और बाहुबल से ऐसा मायाजाल खड़ा कर देते हैं कि जनता उनके भ्रम में आकर उनका चुनाव कर बैठती है। भारतीय लोकतंत्र में हमें कुछ ऐसे सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है कि ऐसे प्रतिनिधि चुनाव ही नहीं लड़ पाएं।
स्वच्छ और अच्छी छवि वाले प्रतिनिधि जनप्रतिनिधि चुने जाएंगे तो अच्छी शासन व्यवस्था देख सकेंगे, तभी लोकतंत्र सही मायनों में कायम होगा। अपराधी लोग जनप्रतिनिधि बन कर जाएंगे तो वहां भी अपने आपराधिक कामों से बाज नही आने वाले, उनसे किसी अच्छाई की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
नेताओं की स्वार्थपरता ► भारतीय लोकतंत्र में नेताओं की छवि ऐसी स्वार्थी बनकर रह गई है, जो केवल अपने हितों के अनुसार ही कार्य करते हैं। नेताओं को केवल अपनी और अपनी पार्टी की ही चिंता रहती है। जबकि उनका कर्तव्य देश और जनता की चिंता करना है। नेता लोग बड़े-बड़े वादे करके जनता का विश्वास जीतकर संसद में पहुंच जाते हैं, लेकिन वहां पर जाते ही सब भूल जाते हैं और अपना और अपनी पार्टी का विकास करने में लगे रहते हैं।
कभी-कभी तो वह अपने निजी स्वार्थ की खातिर अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने से भी संकोच नहीं करते। नेताओं की इसी मनोवृति और आचरण पर अंकुश लगाना होगा ताकि वह निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा कर सकें। इसलिए ऐसी सामाजिक चेतना विकसित करनी होगी कि ऐसे लोग राजनीति में आए जिनका उद्देश्य केवल समाज सेवा करना हो, सत्ता का भोगना नही।