वन संसाधन– बड़ी विकास परियोजनाओं ने भी वनों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन संसाधन क्षेत्रों को साफ करना पड़ा है यह प्रक्रिया अभी भी जारी है और मध्य प्रदेश में 4,00,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र नर्मदा सागर परियोजना के पूर्ण हो जाने से जलमग्न हो जाएगा। वनों की बर्बादी में खनन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पश्चिम बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व(Reserve) डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे में है। इसने कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुंचाया है और कई जातियां जिसमें इंडियन(Indian)) हाथी भी शामिल है। के ट्रैफिक(Traffic) मार्ग को बाधित किया है।
बहुत वन अधिकारी और पर्यावरणविद यह मानते हैं कि वन संसाधन की बर्बादी में पशुचारण और फ्यूल(Fuel) के लिए लकड़ी कटाई मुख्य भूमिका निभाते हैं। यद्यपि इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है परंतु चारे और फ्यूल(Fuel) हेतु लकड़ी की आवश्यकता पूर्ति मुख्यतः पेड़ों की टहनियां काटकर की जाती है ना कि पूरे ट्री(Tree) काटकर। वन पारिस्थितिकी तंत्र देश के मूल्यवान वन पदार्थों, खनिजों और अन्य संसाधनों के संचय कोष है जो तेजी से विकसित होती औद्योगिक-शहरी अर्थव्यवस्था की मांग की पूर्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये आरक्षित एरिया(Area) अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखते हैं और विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष(Struggle) के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करते हैं।
हिमालय बव (Yew) संकट में
हिमालय बव (चिड की प्रकार सदाबहार वृक्ष) एक औषधीय पौधा है जो हिमालय(Himalaya) प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई एरिया(Area) में पाया जाता है। पेड़(Tree) की छाल, पत्तियों, और टहनियों और जहां से टैक्सोल(Taxol) नामक रसायन निकाला जाता है तथा इसे कुछ कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इससे बनाई गई दवाई विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर(Cancer) औषधि है। इसके अत्यधिक निष्कासन से इस वन संसाधन वनस्पति जाति को खतरा पैदा हो गया है। पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल(Arunachal) प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में बव(Yew) के हजारों पेड़ सूख गए हैं।

भारत में जैव-विविधता को कम करने वाले कारकों में वन्यजीव के आवास का विनाश, जंगली एनिमल(Animal) को मारना व आंखेंटन, पर्यावरण प्रदूषण व विषाक्तिकरण और दावानाल आदि शामिल है। पर्यावरण(Nature) विनाश के अन्य मुख्य कारकों में संसाधनों का आसमान बंटवारा व उनका आसमान ऊपभोग और पर्यावरण(Nature) के रखरखाव की जिम्मेदारी में असमानता शामिल है।
आमतौर पर डेवलप्ड(Developed) देशों में पर्यावरण विनाश का मुख्य दोषी अधिक जनसंख्या को माना जाता है। यद्यपि एक अमेरिकी नागरिक का औसत वन संसाधन उपभोग एक सोमाली(Somali) नागरिक के उपयोग से 40 गुना ज्यादा है। इसी प्रकार शायद भारत के 5% धनी लोग 25 प्रतिशत गरीब लोगों की तुलना में अपने संसाधन उपभोग द्वारा पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं तथा इन 5% लोगों की पर्यावरण(Nature) रखरखाव में भी कोई जिम्मेदारी नहीं है। प्रश्न यह है कि कौन क्या कहां से और कितना यूज(Use) कर रहा है?
क्या आप जानते है
क्या आप जानते हैं कि भारत के आधे से अधिक प्राकृतिक वन संसाधन लगभग फिनिश(Finish) हो चुके हैं? एक तिहाई जलमग्न भूमि(Wetland) सूख चुकी है, 70% धरातलीय जल(Water Bodies) क्षेत्र प्रदूषित है 40% मेंग्रोज क्षेत्र लुप्त हो चुका है और जंगली जानवरों के शिकार और व्यापार तथा वाणिज्य की दृष्टि से कीमती पेड़-पौधों की कटाई के कारण हजारों वनस्पति (Vegetation) और वन्य जीव जातीया लुप्त(Missing) होने के कगार पर पहुंच गई है।
क्रियाकलाप
क्या आपने अपने आसपास ऐसी गतिविधियां देखी है जिसमें जैव विविधता कम होती है इस पर एक टिप्पणी(Comment) लिखें और इन गतिविधियों को कम करने के उपाय सुझाए।
भारत में वन संसाधन
वन और वन्य जीवन का विनाश मात्र जीव विज्ञान का सब्जेक्ट(subject) नहीं नहीं है। जैव संसाधनों का विनाश सांस्कृतिक विविधता के विनाश से जुड़ा हुआ है। जैव विनाश के कारण कई मूल जातियां(Castes) और वन संसाधन पर आधारित समुदाय निर्धन होते जा रहे हैं और आर्थिक रूप से हाशिये पर पहुंच गए हैं। यह समुदाय खाने,पीने, औषधि, संस्कृति, आध्यात्म इत्यादि के लिए वनों और वन्य जीवन(Life) पर निर्भर है। गरीब वर्ग में भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित हैं। कई समाजों(Societies) में खाना, चारा, जल और अन्य आवश्यकता की वस्तु को इकट्ठा करने की मुख्य जिम्मेदारी महिलाओं की होती है। जैसे ही इन संसाधन(Resources) की कमी होती जा रही है महिलाओं पर कार्य भार बढ़ता जा रहा है और कई बार तो इनको संसाधन कलेक्ट(Collect) करने के लिए 10 किलोमीटर(K.M.) से भी अधिक पैदल चलना पड़ता है।
इससे उन्हें गंभीर हेल्थ(Health) समस्या झेलनी पड़ती है, काम का टाइम(Time) बढ़ने के कारण घर और बच्चों की अपेक्षा होती है जिसके सीरियस(Serious) सामाजिक दुष्परिणाम(bad effects) हो सकते हैं। वन संसाधन कटाई के परोक्ष रिजल्ट (Result) जैसे सूखा और बाढ़ भी गरीब तबके को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इस स्थिति में गरीबी, पर्यावरण निम्नीकरण का सीधा रिजल्ट(Result) होता है। भारतीय उपमहाद्वीप में वन और वन्य जीवन मानव जीवन के लिए बहुत कल्याणकारी है अतः यह आवश्यक है कि वन और वन्य जीवन के संरक्षण(Protection) के लिए सही नीति अपनाई जाए।
भारत में वन और वन्य जीवन का संरक्षण
वन्य लाइफ(Life) और वनों में तेज गति से हो रहे हास के कारण इनका प्रोटेक्शन(Protection) बहुत आवश्यक हो गया है। परंतु हमें वनों और वन्य लाइफ(Life) का प्रोटेक्शन (Protection) करना आवश्यक क्यों है? प्रोटेक्शन(Protection) से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन साध्य संसाधन- जल,वायु और मृदा(Soil) बने रहते हैं। यह विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में जींस(Genetic) विविधता को भी संरक्षित करती है। उदाहरण के तौर पर हम कृषि में भी अभी पारंपरिक फसलों पर निर्भर है। जलीय जैव विविधता मोटे तौर पर मछली पालन बनाए रखने पर निर्भर है।
वन जीव जातीय
1960 और 1970 के दशकों के दौरान, पर्यावरण संरक्षको ने राष्ट्रीय वन्यजीव सुरक्षा कार्यक्रम के पुरजोर मांग की। भारतीय वन्यजीव (रक्षण) अभियान 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्यजीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे। सारे भारत में रक्षित जातियों की सूची भी प्रकाशित की गई। इस कार्यक्रम के तहत बची हुई संकटग्रस्त जातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबंधन पर, वन्यजीव आवासों का कानूनी रक्षण(Protection) तथा जंगली जीवो के व्यापार पर रोक लगाने आदि पर पर प्रबल जोर दिया गया।
तत्पश्चात केंद्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशु विहार(Sanctuary) स्थापित किए जिनके बारे में आप पहले पढ़ चुके हैं। केंद्रीय सरकार(Government) ने कई परियोजनाओं की भी घोषणा कि जिनका उद्देश्य गंभीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन प्राणियों को रक्षण प्रदान करना था। इन प्राणियों में बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण अथवा हंगुल (Hangul) तीन प्रकार के मगरमच्छ- स्वच्छ जल मगरमच्छ(crocodile), लवणीय मगरमच्छ और घड़ियाल(Alligator)।

एशियाई शेर और वन्य प्राणी शामिल है। इसके अतिरिक्त, कुछ समय पहले भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गौडावन (bustard) और हिम तेंदुआ आदि के शिकार और व्यापार पर संपूर्ण अथवा आंशिक प्रतिबंध लगाकर कानूनी रक्षण दिया है।

बाघ परियोजना
वन संसाधन संरचना में बाघ(Tiger) एक महत्वपूर्ण जंगली जाती है। 1973 में अधिकारियों ने पाया कि देश में 20वीं शताब्दी के आरंभ में बाघों की संख्या अनुमानित संख्या 55000 से घटकर मात्र 1,827 गई है। बाघों को मारकर उनको व्यापार के लिए चोरी करना, आवासी स्थलों का सिकुड़ना, भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की संख्या कम होना और जनसंख्या में वृद्धि बाघों की घटती संख्या के मुख्य कारण है। बाघों की खाल का व्यापार, और उनकी हड्डियां का एशियाई(Asian) देशों में परंपरागत औषधियों में प्रयोग के कारण यह जाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। चूंकि भारत और नेपाल दुनिया की दो तिहाई बाघों को आवास अवेलेबल(available) करवाते हैं, अतः यह देश ही शिकार चोरी और गैर लीगल(Legal) व्यापार करने वालों के मेन(Main) निशाने पर है।
प्रोजेक्ट टाइगर
‘प्रोजेक्ट टाइगर’ विश्व की बेहतरीन वन्यजीव परियोजना में से एक है और इसकी शुरुआत 1973 से हुई। बाघ प्रोटेक्शन (Protection) मात्र एक संकटग्रस्त जाति को बचाने का प्रयास नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य बहुत बड़े आकार के जैव(Bio) जाति को भी बचाना है। उत्तराखंड(U.K) में कार्बेट नेशनल(National) उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन नेशनल(National) उद्यान, मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ नेशनल(National) उद्यान, राजस्थान में सरिस्का वन्य जीवन पशुविहार(Santuary), असम में मानस बाघ रिजर्व(Reserve) और केरल में पेरियार बाघ रिजर्व(Reserve) भारत में बाघ संरक्षण की परियोजना के उदाहरण है।
आजकल प्रोटेक्शन (Protection) परियोजनाए जैव विविधताओं पर केंद्रित होती है न कि इसके विभिन्न घटकों पर संरक्षण के विभिन्न तरीकों की गहनता से खोज की जा रही है। संरक्षण नियोजन में कीटो को भी महत्व मिल रहा है। वन्य जीव अधिनियम 1980 और 1986 के तहत सैकड़ों तितलियों, पतंगो, भ्रंगो और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया है। 1991 में पौधों की भी 6 जातियां पहली बार इस सूची में रखी गई।
क्रियाकलाप
भारत में वन संसाधन जीव पशु विहार(Animal house) और नेशनल (National) उद्यानों के बारे में और जानकारी प्राप्त करें और उनकी स्थिति मानचित्र पर अंकित करें।
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