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विदेश व्यापार का अर्थ-

विदेश व्यापार का अर्थ-

1-विदेशी व्यापार की परिभाषाए

प्रो. बेस्टेबिल- ‘सामाजिक विज्ञान की दृष्टि कोण से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न समुदाओं के बीच होने वाला व्यापार है अर्थात् यह उन विभिन्न सामाजिक संगठनों के बीच होने वाला व्यापार है, जिन्हें समाजशास्त्र अपने अन्वेषण का क्षेत्र मानता है।’

फेडरिक लिस्ट- ‘आंतरिक व्यापार हमारे बीच है तथा विदेशी व्यापार हमारे और उनकें ;दूसरे देशों के बीचद्धबीच होता है।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि देश की सीमाओं के भीतर होने वाला व्यापार अंतरसेवीय या राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है तथा देश की सीमाओं के विभिन्न देशों के बीच होने व्यापार अंतर्राष्ट्रीय/विदेशी व्यापार कहलाता है। विदेशी व्यापार एक देश दूसरे देश के साथ लाभ के सिद्धांतों पर आधारित होता हैं।

विदेश व्यापार का अर्थ-
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2-विदेशी व्यापार की दिशा

आजादी के पूर्व भारत के विदेशी व्यापार की दिशा तुलनात्मक लागत लाभ स्थितियों के द्वारा निर्धारित न होकर ब्रिटेन और भारत के बीच औपनिवेशिक संबंधों द्वारा निर्धारित थी। दूसरे शब्दों में, भारत किन देशों से आयात करेगा और कहां पर अपना माल बेचेगा, यह ब्रिटिश शासक अपने देश के हित में तय करते थे।

यही कारण है कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत का अधिकांश व्यापार ब्रिटेन, उसके उपनिवेशों और मित्र राष्ट्रों के साथ था। यही प्रवृत्ति आजादी के बाद कुछ वर्षों में भी देखने को मिलती है क्योंकि तब तक भारत की अन्य देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित करने में कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई थी।

उदाहरणार्थ, 1950-51 में भारत की निर्यात आय में इंग्लैंड और अमेरिका का हिस्सा 42 प्रतिशत था। उसी वर्ष भारत के आयात व्यय में उनका हिस्सा 39.1 प्रतिशत था।

अन्य पूंजीवादी देशों जैसे फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, जापान इत्यादि और समाजवादी देशों जैसे सोवियत संघ, रोमानिया, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया इत्यादि के साथ बेहद थोड़ा व्यापार था।

जैसे-जैसे इन देशों के साथ राजनैतिक संबंधों का विकास हुआ वैसे-वैसे आर्थिक संबंध भी मजबूत होने लगे। इस प्रकार बहुत से देशों के साथ व्यापारिक संबंधों के विकास करने के अवसर खुलने लगे। अब स्थिति काफी बदलचुकी है और 6 दशक के आयोजन के बाद व्यापारिक संबंध काफी बदल चुके हैं।

विदेश व्यापार का अर्थ-
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3-आयात का महत्व 

  1. जीवन स्तर को बढ़ा़ ने के लिए- संसाधनों की कमी के कारण विलासिता की वस्तुएॅं जैसे- कार, वाशिंग मशीन, टी.वी. आदि विकासशील देशों में सीमित मात्रा में होती है। मांग के अनुसार आयात कर इन्हें प्राप्त कर सकते हैं।
  2. अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक- आयात अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक होता है। औद्योगिक विकास के लिए मशीन उपकरण आदि पूंजीगत वस्तुओं की आवश्यकता होती है देश में ये साधन उपलब्ध न होने की स्थिति में विदेशी से क्रय कर इन्हें आयात किया जा सकता है।
  3. उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार- वस्तुाओं का आयात घरेलु उत्पादन की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक हो सकता है। विदेशी वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा होने से गुणात्मक वस्तुओं का उत्पादन कर ही प्रतिस्पर्धा किया जा सकता है। जैसा कि इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के आयात से भारत में भी इनकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
  4. आवश्यक वस्तुुओ की कमी को पूरा करना- आवश्यक वस्तुओं जैसे- अनाज, खाने के तेल आदि के घरेलू मांग एवं पूर्ति के अंतर को आयात के द्वारा पूरा किया जा सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत अनाज के मामले आत्मनिर्भर नहीं था। इसकी कमी को गेहूॅं और चांवल का बड़ी मात्रा में आयात कर पूरा किया गया वर्तमान खाद्य तेल की पूर्ति आयात कर किया जा रहा है।
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4-निर्यात का महत्व 

  1. अर्थव्यवस्था के विकास मे सहायक – निर्यात अर्थव्यवस्था के विकास में निम्नप्रकार से सहायक होते हैं।
  2. अतिरेक उत्पादन को बेचने में सहायक- निर्यात अतिरेक उत्पादन को बेचने में सहायक होता है।

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