1-उच्चतम न्यायालय
इसके द्वारा दिये गये निर्णय अंतिम होते है तथा इन निर्णयों के विरूद्ध किसी और न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक के अनुच्छेदों का सम्बन्ध सर्वोच्च न्यायालय से है । संविधान के अनुच्छेद 124 (1) में सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है।

2-गठन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(1) के अनुसार प्रारम्भ में सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीश निश्चित किये गये थे परंतु इसी अनुच्छेद में संसद को न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की शक्ति प्रदान की गई
। सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम 1956 के अनुसार, न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 10 कर दी गयी थी । 1960 में संसद द्वारा न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश सहित 14 कर दी गयी।
परंतु 1977 में भारतीय संसद ने एक कानून के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कुल संख्या 18 कर दी 1986 में संसद ने एक अन्य कानून पारित करके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 18 से बढ़ाकर 25 कर दी।
2008 में संसद ने एक अन्य कानून पारित करके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 कर दी। संसद को यह शक्ति है कि वह विधि बनाकर न्यायाधीशों की संख्या विहित करे।

3- मौलिक अथवा आरंभिक क्षेत्राधिकार-
अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है। ये मौलिक क्षेत्राधिकार ऐसे विवाद से संबंधित हैं, जिसमें विधि का या तथ्य का कोई प्रश्न अंतर्निहित है जिस पर कोई विधिक अधिकार का अस्तित्व अथवा विस्तार निर्भर करता है।
इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय तीन तरह के मामलों की सुनवाई करता है –
भारत सरकार तथा एक या अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के विवाद।
परस्पर दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
ध्यातव्य है कि वैसे विवाद जो पूर्ववर्ती भारतीय रियासतों के साथ हुई संधियों से या किसी ऐसी रियासत द्वारा हस्तांतरित संधि से उत्पन्न हुए हों, सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक अधिकारिता अथवा क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शामिल नहीं किये जाते हैं।
संविधान में कुछ अन्य अनुच्छेदों में वर्णित विषयों जैसे अनुच्छेद 262 के अंतर्गत अन्तर्राज्यीय जल आयोग संबंधी मामले अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।
4-अपीलीय क्षेत्राधिकार-
सर्वोच्च न्यायालय अपील का उच्चतम न्यायालय है तथा उसे उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सुनने का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 132, 133, 134 तथा 136 में सर्वोच्च न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता स्पष्ट की गई है।
संवैधानिक मामले (अनुच्छेद 132) में उच्च न्यायालय के किसी निर्णय पर चाहे वह दीवानी (सिविल) अथवा फौजदारी में से किसी भी कार्यवाही से संबंधित हो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
दूसरे शब्दों में यदि किसी उच्च न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से कोई ऐसा प्रश्न जुड़ा है जो संविधान से संबद्ध ‘विधि का सारवान प्रश्न’ है और उच्च न्यायालय इस आशय का प्रमाण दे देता है तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
दीवानी मामले (अनुच्छेद 133) में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है, जब उच्च न्यायालय प्रमाणित कर दें कि- उस मामले का संबंध सार्वजनिक महत्त्व के किसी सारगर्भित कानूनी प्रश्न से है।
उस मामले का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय में होना आवश्यक है।
आपराधिक अथवा फौजदारी मामले (अनुच्छेद 134) में उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जब-
किसी अपराधी को अधीनस्थ न्यायालय ने छोड़ दिया होता तथा अपील में उच्च न्यायालय ने उसे मृत्युदंड दिया हो।
किसी मामले को उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय से हटाकर अपने पास हस्तांतरित कर लिया हो तथा अपराधी को मृत्युदंड दिया हो।
उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित कर दिया जाए कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनने योग्य है।
विशिष्ट मामले (अनुच्छेद 136) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को उपरोक्त मामले के अलावा कुछ अन्य मामलों में भी हस्तक्षेप करने हेतु अवशिष्ट शक्ति प्राप्त है।
विशिष्ट मामलों के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के विवेकानुसार भारत के राज्य क्षेत्र में किसी न्यायालय अथवा अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारणा, दण्डादेश या आदेश की विशेष अनुमति दे सकता है।

यहाँ ध्यान रखने वाली बात यह है कि सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए किसी निर्णय, अवधारणा, दण्डादेश या आदेश के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय को अवशिष्ट शक्ति प्राप्त नहीं है।