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साइमन कमीशन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-

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1-साइमन कमीशन-

भारत में 1922 के बाद से जो शांति छाई हुई थी वह 1927 में आकर टूटी|इस साल ब्रिटिश सरकार ने साइमन आयोग का गठन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में भारतीय शासन अधिनियम -1919 की कार्यप्रणाली की जांच करने और प्रशासन में  सुधार हेतु सुझाव देने के लिए किया|

इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर इस आयोग को साइमन आयोग के नाम से जाना गया|इसकी नियुक्ति भारतीय लोगों के लिए एक झटके जैसी थी क्योकि इसके सारे सदस्य अंग्रेज थे और एक भी भारतीय सदस्य को इसमें शामिल नहीं किया गया था|

सरकार ने स्वराज की मांग के प्रति कोई झुकाव प्रदर्शित नहीं किया|आयोग की संरचना ने भारतियों की शंका को सच साबित कर दिया|आयोग की नियुक्ति से पूरे भारत में विरोध प्रदर्शनों की लहर सी दौड़ गयी|

1927 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मद्रास में आयोजित किया गया जिसमे आयोग के बहिष्कार का निर्णय लिया गया|मुस्लिम लीग ने भी इसका बहिष्कार किया|

आयोग 3 फरवरी 1928 को भारत पहुंचा और इस दिन विरोधस्वरूप पुरे भारत में हड़ताल का आयोजन किया गया|उस दिन दोपहर के बाद,आयोग के गठन की निंदा करने के लिए,पूरे भारत में सभाएं की गयीं और यह घोषित किया कि भारत के लोगों का इस आयोग से कोई लेना-देना नहीं है|

मद्रास में इन प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायीं गयीं और अनेक अन्य जगहों पर लाठी-चार्ज की गयीं|आयोग जहाँ भी गया उसे विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का सामना करना पड़ा|केंद्रीय विधायिका ने बहुमत से यह निर्णय लिया कि उसे इस आयोग से कुछ लेना-देना नहीं है|पूरा भारत ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे से गूँज रहा था|

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2-स्पष्ट और निष्पक्ष उद्देश्य-

ब्रिटिश लोगों को शक्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया में देरी करने के लिए।

सांप्रदायिक भावनाओं को व्यापक रूप से विस्तार करने के लिए जो कि दोनों समुदायों के हितों का विरोध पूरी तरह से कर सकते थे।

लोगों को दिखाने के लिए कि लोगों के आत्म-नियम देने में प्रयासों में ब्रिटिश ईमानदार थे, लेकिन यह भारतीय थे जो सत्ता-साझाकरण पर सहमति के बारे में फैसला नहीं कर सके।

संघीय संविधान की छाप देने के लिए ताकि सप्ताह केंद्र और एक शक्तिशाली प्रांत बनाया जा सके। यह क्षेत्रीयवाद की भावना पैदा करेगा, जो राष्ट्रवाद के प्रतिद्वंद्वी थे।

आर्थिक स्वायत्तता के बिना राजनीतिक स्वायत्तता देने के लिए।

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3-कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (दिसम्बर 1927) में एम.ए. अंसारी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने ‘प्रत्येक स्तर एवं प्रत्येक स्वरूप’ में साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय किया। इस बीच नेहरू के प्रयासों से अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित हो गया।

किसान-मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, हिन्दू मह्रासभा तथा मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ मिलकर कमीशन के बहिष्कार की नीति अपनायी। जनकि पंजाब में संघवादियों (unionists) तथा दक्षिण भारत में जस्टिस पार्टी ने कमीशन का बहिष्कार न करने का निर्णय किया।

जन प्रतिक्रियाः 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बंबई पहुंचा। इसके बंबई पहुंचते ही देश के सभी प्रमुख नगरों में हड़तालों एवं जुलूसों का आयोजन किया गया।

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जहां कहीं भी कमीशन गया, उसका स्वागत काले झंडों तथा ‘साइमन गो बैक’ के नारों से किया गया। केंद्रीय विधानसभा ने भी साइमन का स्वागत करने से इंकार कर दिया।

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