
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय।
जीवन परिचय-
पंत जी का जन्म सन 1900 ईस्वी में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गांव के सुंदर प्राकृतिक वातावरण में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा तथा महाविद्यालय शिक्षा प्रयाग के म्योर सेंट्रल कॉलेज में हुई। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उन्होंने असहयोग आंदोलन मैं भाग लेने के लिए सरकारी कॉलेज छोड़ दिया तथा स्वाध्याय में जुट गए।

उन्होंने बचपन से ही, लगभग 4 वर्ष की अवस्था से कविताएं लिखना आरंभ कर दिया था, परंतु व्यवस्थित ढंग का लेखन कार्य महाविद्यालय में आकर ही प्रारंभ किया। भारत के अनेक वर्षों तक वे आकाशवाणी से जुड़े रहे। जीवन के अंतिम समय तक वे काव्य रचना में प्रवृत्त रहे। सन 1917 ईस्वी में उनका स्वर्गवास हो गया।
उपलब्धियां-
सुमित्रानंदन पंत की महती साहित्य सेवा को देखते हुए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रचनाएं-
पंत जी की प्रमुख काव्य रचनाएं है- वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली, उत्तरा, अतिमा, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन।
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काव्यगत विशेषताएं-
पंत जी प्रकृति प्रेम और कोमलता के कवि थे। उनकी आरंभिक कविताएं छायावादी रोमांटिक प्रवृत्ति से ओतप्रोत है। उनमें पंत जी की निजता झलकती है। प्रकृति का जैसा सुंदर, कोमल, सूक्ष्म और मनोहरी वर्णन उन्होंने अपनी कविताओं में किया, वैसा अन्य यंत्र किसी में देखने को नहीं मिलता।
प्राकृतिक सौंदर्य के पश्चात उनके साहित्य में नारी संजना का आकलन करने की प्रवृत्ति दिखती है। छायावादी कविताओं के बाद उन्होंने प्रगतिवादी विचारधारा की रचनाएं प्रस्तुत की, जिनमें शोषितों, दलितों, निर्धनों और वंचितों आदि के प्रति सहानुभूति प्रदर्शन की गई है। अरविंद दर्शन से प्रवाहित होकर वे बाद में अध्यात्म से जुड़ गए। उन्होंने मानवतावादी रचनाएं भी लिखी, जिनमें सारी मानवता को सुखी देखने की महान कल्पना है।
भाषा शैली-
पंत जी कुशल शब्द शिल्पी माने जाते हैं। 20 शब्दों की आत्मा तक गहरी पहुंच रखते थे। उनकी भाषा में संस्कृत शब्दों की अधिकता है, फिर भी फिर भी भाषणगत कोमलता छीण नहीं हो सकी है। वे कोमल, मधुर और शोक जो भावों को प्रकट करने वाले शब्दों का प्रयोग बड़ी सहजता और कुशलता से करते हैं।
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पंत जी की काव्य शैली में कोमलता पदावली एवं एक मधुर स्पर्श का भाव है, जो उनकी निजी विशेषता है। उनके काव्य में उपमा, रूपक, अनुप्रास तथा मानवीय कर्ण अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। हिंदी काव्य कोसकी वह एक ऐसे उज्जवल रत्न हैं, जिसकी आभा सदा आनंदित करती रहेगी।
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