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भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव।

भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव

वैश्वीकरण का प्रभाव

वैश्वीकरण का प्रभाव सर्वत्र अथवा सभी वर्गों पर एक समान नहीं पड़ा है। दूसरे शब्दों में यह सभी के लिए लाभप्रद नहीं है। कुछ वर्गों एवं क्षेत्रको को पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा है। जबकि कुछ वर्गों एवं क्षेत्रको को पर इसका प्रतिकूल एवं हानिकारक प्रभाव भी पड़ा है। अनेक लोग वैश्वीकरण के लाभों से वंचित रह गए हैं।

भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव
भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव

उपयुक्त कथन की व्याख्या हम निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत कर सकते हैं।

(अ) अनुकूल प्रभाव

1. उत्पादकों पर प्रभाव

स्थानीय एवं विदेशी उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्धा बड़ी है। इससे शहरी क्षेत्र के धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। उन्हें कम कीमत पर अच्छी किस्म की वस्तुएं उपलब्ध होने लगी हैं। फल स्वरुप उनका जीवन स्तर भी उच्च हुआ है।

2. निवेशकों पर प्रभाव

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत में निवेश करना लाभप्रद रहा है। स्थानीय एवं वाह निवेशकों के विभिन्न उद्योगों एवं सेवाओं में निवेश बढ़ाया है।इन उद्योगों एवं सेवाओं में नए रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं।इसके अतिरिक्त इन उद्योगों को अदाओं की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियां भी समृद्धि हुई है।

3. भारतीय कंपनियों पर प्रभाव

अनेक शीर्ष भारतीय कंपनियां बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा से लाभान्वित हुई।इन कंपनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया वह उनके उत्पादन मानकों को ऊंचा किया। कुछ कंपनियों ने विदेशी कंपनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ अर्जित किया।दूसरी वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभरने की योग्य बनाया।

(ब) प्रतिकूल प्रभाव

विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं।

  1. प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे विनीमाता पर कड़ी मार पड़ी है।आने की कहानियां बंद हो गई है और बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं।
  2. अधिकांश नियोक्ता श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन की नीति अपनाने लगे हैं।इससे श्रमिकों का रोजगार सुनिश्चित एवं सुरक्षित नहीं रह गया है।
  3. संगठित क्षेत्र में कार्य दशा यदि कहां से था संगठित क्षेत्र की भांति होती जा रही है।
  4. नियुक्त आश्रम लागतो में निरंतर कटौती करने का प्रयास कर रहे हैं।

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