योगासन और स्वास्थ्य
संकेत-बिंदु-(1) अर्थ; (2) योगासन और खेल; (3) योगासन से स्वास्थ्य-लाभ : शारीरिक और मानसिक; (4) योगासन से अनुशासन और व्यक्तित्व का महत्व।
अर्थ-
‘योगासन’शब्द दो शब्दों-‘योग’तथा ‘आसन’-से मिलकर बना है। शक्ति और अवस्था को योगासन कहते हैं। महर्षि पतंजलि ने योग की परिभाषा देते हुए लिखा है, अपने मन की व्रतियों पर नियंत्रण करना ही योग है। आसन का अर्थ है किसी एक अवस्था में स्थिर होना। इस प्रकार योगासन शरीर तथा मन को स्फूर्ति प्रदान करने में विशेष योग देता है।
योगासन और खेल-
योगासन के अर्थ से स्पष्ट है कि यह एक उद्देश्य पूर्ण क्रिया है। शरीर-सोष्ठव प्राप्त करने, नाड़ी तंत्र को सफल बनाने तथा वित्तीय शक्तियों को गति प्रदान करने के लिए जो क्रियाएं की जाती हैं वह शरीर को निश्चय ही लाभ पहुंचाती है।शरीर की विभिन्न आवश्यकताओं के लिए विशेष प्रकार के योगासन योग विशेषज्ञ बताते हैं।
यूं तो योगासन, व्यायाम और खेल के लाभ लगभग एक समान है फिर भी योगासन और खेल में लोग अंतर मानते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि योगासन की थका देने वाले क्रियाओं को छोड़कर शेष शारीरिक क्रियाएं खेलकूद के अंतर्गत आती है।
योगासन से स्वास्थ्य-लाभ: शारीरिक और मानसिक-
योगासन करने से व्यक्ति के शरीर में मस्तिष्क दोनों को लाभ पहुंचता है।शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से देखे तो योगासन से व्यक्ति का शरीर सुगठित सुडोल स्वस्थ और सुंदर बनता है। उसका शरीर तंत्र संपूर्ण रूप से स्वस्थ बन जाता है,पाचन शक्ति तेज होती है और रक्त प्रभाव ठीक बना रहता है।
शारीरिक व उचित रूप से निकाल पाते हैं। शरीर में शुद्धता आती है तो त्वचा पर उसकी चमक व झलकता है। भोजन समय पर पड़ता है अतः रक्त मांस उचित मात्रा में पाते हैं वृद्धि पाते हैं। शरीर स्वस्थ चुस्त-दुरुस्त बनता है।
दिनभर स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है, मांस पेशियां लचीली बनी रहती है जिससे क्रिया शक्ति बढ़ती है और व्यक्ति काम से जी नहीं चुराता। शारीरिक गठन में एक अनोखा आकर्षण आ जाता है। योगासन से ही शरीर में वीर्य कोष भरता है जिससे तन पर कांति और मस्तक पर तेज आ जाता है। इस प्रकार योगासन करने वाले कसरत ई शरीर हजारों की भीड़ में अलग से पहचान लिया जाता है।

विचारकों का कथन है-स्वस्थ तन तो स्वस्थ मन। यह कथन शत प्रतिशत सत्य है। योगासन से शारीरिक लाभ तो होता ही है, मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दुर्लभ और कमजोर तन मन से भी निराश हो और बेचारा साहू जाता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा बसती है।
योगासन करके तारो ताजा हुआ शरीर अपने भीतर एक विशेष उल्लास और उमंग का अनुभव करता है। प्रसनजीत व्यक्ति जो भी कार्य हाथ में लेता है,अपने सकारात्मक रवैया के कारण उल्लास और उमंग से उसे पूरा करने में स्वयं को झोंक देता है। बव जल्दी हारता नहीं। उसके शरीर की शक्ति उसके कार्य में प्रदर्शित होती है। योगासन से मन में आता है जो निराशा को दूर भगाता है। योगाभ्यास से जीवन में आशा और उत्साह का संचार होता है।
योगासन से अनुशासन और व्यक्तित्व का विकास-
योगासन करने से व्यक्ति में संघर्ष करने तथा स्वयं पर अंकुश लगाने जैसे गुणों का विकास होता है। हष्ट पुष्ट शरीर तन और मन दोनों पर अंकुश लगाकर जीवन में अनुशासित रहने की कला सीख लेता है।शरीर का संयम मन पर नियंत्रण और मानसिक दृढ़ता व्यक्ति को ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करते हैं कि वह स्वयं ही सब का आकर्षण और प्रेरणा स्रोत बन जाता है। आज के प्रतिस्पर्धा के युग में योगासन का महत्व निश्चय ही विवाद से परे है।
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