फसल चक्र-
किसी निश्चित क्षेत्र पर एक निश्चित अवधि में फसलों को इस प्रकार अदल बदल कर बोना जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास ना हो, फसल चक्र कहलाता है।

फसल चक्र के नियम-
- गहरी जड़ वाली फसलों के बाद सतह पर फैली जड़ वाली फसल बोनी चाहिए जिससे फसल मृदा के विभिन्न स्तरों से पोषक पदार्थों को ग्रहण कर सकें।
- दलहनी फसलों के बाद खाद्यान्न फसल बोने चाहिए। क्योंकि दलहनी फसलों की जड़ों की ग्रंथि में पाए जाने वाला राइजोबियम जीवाणु वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर पौधे को प्रदान करता है। फसल के काटने के पश्चात नाइट्रोजन योगिक मृदा में मिल जाते हैं।
- अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी चाहने वाली फसल होनी चाहिए। क्योंकि लगातार अधिक पानी चाहने वाली फसल उगाने से मृदा में वायु संचार अवरुद्ध हो जाता है।
- अधिक खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसल उगाने चाहिए जिससे भूमि की उर्वरता बनी रहे।
- फसल चक्र में वे सभी फसलें सम्मिलित होनी चाहिए जिससे किसान की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति हो रहे।
- फसल चक्र में ऐसी फसलों को चुनना चाहिए जो रोग वह कीट की दृष्टि से समान न हो, इससे फसने सुरक्षित रहती है।
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