जीविका खेती
जीविका कृषि, कृषि करने का एक प्रमुख प्रकार हैं। कृषि के इस प्रकार में खाद्यान्न के उत्पादन में कृषक अपने एवं अपने ऊपर निर्भर परिवार भरण-पोषण के लिए करते है, तथा उपभोग के बाद इतना भी अनाज नहीं बचा पाते है, की बैच स्केच इस प्रकार की कृषि को “जीविका कृषि” कहा जाया है।

जीविका खेती के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इस कृषि पद्धति में छोटी-छोटी एवं बिक्री हुई जोते पाई जाती हैं। इस पद्धति में कृषि के परंपरागत पुरातन कृषि यंत्रों एवं उपकरणों-गैती, फावड़ा, हल, आदि का प्रयोग किया जाता है। परिवार के सदस्य मिलजुल का कृषि कार्य करते हैं।यह आत्म निर्वाह र कृषि भी कहलाती है।
- इस कृषि में उत्पादित फसलों का उपयोग कृषक एवं उसका परिवार स्वयं ही कर लेता है,क्योंकि इसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन मात्र इतना होता है कि कृषक एवं उसके परिजनों का भी पालन पोषण कठिन होता है।
- इसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है। वास्तव में यह कृषि एक प्रकार से प्रकृति की ही देन है। व्यक्ति केवल बीज बोने का कार्य करता है क्योंकि सिंचाई या उर्वरक एवं खाद के लिए कृषकों के पास पूंजी का भाव होता है।
- जीविकोपार्जन कृषि करने वाले आदिवासी कृषक अधिकांश निर्धन होते हैं। उनके पास पूंजी का अभाव होता है। अतः वे अपने खेतों में उत्तम एवं सुधरी हुए बीच, रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों आदि का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।
- कृषकों की निर्धनता के कारण कृषि में आधुनिक तकनीक का उपयोग नहीं किया जाता है। आधुनिक तकनीक से तात्पर्य आधुनिक कृषि यंत्र एवं उपकरणों के प्रयोग से है।
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