
मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय-
मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन-
मुंशी प्रेमचंद्र का मूल नाम धनपत राय है। प्रेमचंद्र हिंदी कथा साहित्य के शिखर पुरुष माने जाते हैं। कथा साहित्य के इस शिखर पुरुष का बचपन अभावों में बिता।स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पारिवारिक समस्याओं के कारण जैसे तैसे बीए तक की पढ़ाई की। अंग्रेजी में m.a. करना चाहती थे। लेकिन जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी।
सरकारी नौकरी मिली भी लेकिन महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय होने के कारण त्यागपत्र देना पड़ा। राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने के बावजूद लेखक कार्य सुचारु रुप से चलता रहा।पत्नी शिवरानी देवी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेते रहे। उनके जीवन का राजनीतिक संघर्ष उनकी रचनाओं मैं सामाजिक संघर्ष बनकर सामने आया जिसमें जीवन का यथार्थ और आदर्श दोनों था।
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म-
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म सन 1880, लमही गांव उत्तर प्रदेश में हुआ।हिंदी साहित्य के इतिहास में कहानी और उपन्यास की विदा के विकास का काल विभाजन प्रेमचंद को ही केंद्र में रखकर किया जाता है।
यह प्रेमचंद्र के निर्विवाद महत्व का एक स्पष्ट प्रमाण है।वस्तुतः प्रेमचंद ही अपनी रचनाकार है जिन्होंने कहानी और उपन्यास की विधा को कल्पना और रूमानियत के धुंधलके से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया।
मुंशी प्रेमचंद्र की प्रमुख रचनाएं-
मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं-सेवा सदन, प्रेमा आश्रम, रंगभूति, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, मानसरोवर, (कहानी संग्रह): कर्बला, संग्राम, प्रेम की देवी, (नाटक): कुछ विचार, विविध प्रसंग।
उनका आरंभिक कथा साहित्य कल्पना, संयोग और रूमानियत के ताने बाने से बुना गया है।लेकिन एक कथाकार के रूप में उन्होंने लगातार विकास किया और पंच परमेश्वर जैसी कहानी तथा सेवा सदन जैसी उपन्यास के साथ सामाजिक जीवन को कहानी का आधार बनाने वाली यथार्थवादी कला के अग्रदूत के रूप में सामने आए। यथार्थवाद के भीतर भी यथार्थवाद से आलोचनात्मक यथार्थवाद तक की विकास यात्रा प्रेमचंद ने की।
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सेवा सदन, प्रेमाश्रम आदि उपन्यास और पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, नमक का दारोगा आदि कहानियां ऐसी ही है।बात की उनकी रचनाओं और यह आदर्शवादी प्रवृत्ति कम होती गई है और धीरे-धीरे हुए ऐसी स्थिति तक पहुंचते हैं जहां कठोर वास्तविकता को प्रस्तुत करने में वे किसी तरह का समझौता नहीं करते।
मुंशीप्रेमचंद जी की कार्यशैली
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) जी अपने कार्यो को लेकर बचपन से ही सक्रीय थे । बहुत कठिनाईयों के बावजूद भी उन्होंने आखरी समय तक हार नहीं मानी और अंतिम क्षण तक कुछ ना कुछ करते रहें । हिन्दी ही नहीं उर्दू में भी अपनी अमूल्य लेखन छोड़ कर गये ।
- लमही गाँव छोड़ देने के बाद कम से कम चार साल वह कानपुर में रहे और वही रह कर एक पत्रिका के संपादक से मुलाकात की और कई लेख और कहानियों को प्रकाशित कराया । इस बीच स्वतंत्रता आंदोलन के लिये भी कई कविताएँ लिखी ।
- धीरे-धीरे उनकी कहानियों कविताओं लेख आदि को लोगो की तरफ से बहुत सराहना मिलने लगी । जिसके चलतेउनकी पदोन्नति हुई और गौरखपुर तबादला हो गया । यहा भी लगातार एक के बाद एक प्रकाशन आते रहे इस बीच उन्होंने महात्मा गाँधी के आंदोलनों में भी उनका साथ देकर अपनी सक्रीय भागीदारी रखी । उनके कुछ उपन्यास हिन्दी में तो कुछ उर्दू में प्रकाशित हुए ।
मुंशीप्रेमचंद की मृत्यु-
अपने जीवन के अंतिम दिनों में “मंगलसूत्र” उपन्यास लिख रहे थे।इस दौरान वे गंभीर रूप से बीमार थे और लम्बी बीमारी के चलते 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया।
1. मुंशी प्रेमचंद्र की जन्म कब हुआ।
1880
2. मुंशी प्रेमचंद्र की मृत्यु कब हुई।
1936
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