परासरण के बारे में
“परासरण वह क्रिया है जिसमें अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली द्वारा प्रथक किये गये विभिन्न सांद्रता वाले दो घोलो (solution) में जल अथवा किसी विलायक के अणुओं का विसरण कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता (Concentrations) वाले घोल (solution) की ओर होता है।”
वास्तव में, विलायक का विसरण झिल्ली के आर-पार दोनों ओर होता है, परंतु कम सांद्रता वाले घोल (विलयन) से अधिक सांद्रता वाले घोल की ओर तेजी से होता है। यह विसरण के सामान्य सिद्धांत के अनुरूप है क्योंकि कम सांद्रता वाले घोल में विलायक के अणुओं की सांद्रता, अधिक सांद्रता वाले घोल के विलायक के अणुओं की अपेक्षा अधिक होती हैं। अतः परासरण भी एक प्रकार का विसरण ही है।
परासरण की क्रिया का प्रदर्शन
परासरण की क्रिया का प्रदर्शन यहां प्रयोगों के आधार पर बताया गया है।
अजीवित तन्त्र में परासरण
अजीवित तंत्र में परासरण की क्रिया निम्नलिखित प्रयोग द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है। इस प्रयोग को थिसिल कीप (thistle funnel) प्रयोग भी कहते हैं।

प्रयोग
एक थिसिल कीप के चौड़े मुख पर कृत्रिम अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली, जैसे पार्चमेन्ट कागज (parchment paper) को मजबूती से बांध देते हैं। इस कीप शर्करा का गाढ़ा घोल डालकर नली में निशाना लगा देते हैं (l₁)। इस थिसिल कीप को पानी से भरे बीकर में रखकर छोड़ देते हैं। कुछ समय पश्चात हम देखते हैं कि कीप में घोल अंकित निशान (l₁) से ऊपर उठ जाता है (l₂)। इस क्रिया को परासरण कहते हैं, क्योंकि बीकर में पानी के अणुओं की सांद्रता अधिक होती है तथा थिसिल कीप में कम, अतः पानी के अणु बीकर से कीप की ओर अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली (पार्चमेन्ट कागज) में से होकर जाते हैं।

जीवित तन्त्र में परासरण
जीवित तन्त्र में एक महत्वपूर्ण कार्यिकिय (physiological) प्रक्रिया है। आलू के ऑस्मोस्कोप (osmoscope) की सहायता से परासरण का प्रदर्शन किया जा सकता है।
प्रयोग
एक आलू को छीलकर इसका एक सिरा चपटा काट लेते हैं तथा दूसरे सिरे की ओर से मध्य में लगभग तली तक एक गहरी गुहा (cavity) बनाते हैं। इस गुहा में शर्करा का गाढ़ा घोल भर लेते हैं तथा ऊंचाई को आलपिन लगाकर अंकित कर लेते हैं। इस आलू को पेट्रीडिश (petri-dish) में भरे पानी में रखते हैं। कुछ घंटों के बाद निरीक्षण करने पर पता चलता है कि आलू के अंदर घोल का स्तर बढ़ जाता है। स्तर में यह वृद्धि बाहर के पानी के अंदर प्रवेश करने के कारण होती है। पानी का अंदर प्रवेश आलू की अर्द्ध-पारगम्य झिल्लीयो द्वारा होता है। इस प्रकार के प्रयोगों में पानी के अणुओं का मार्ग परासरण के नियम से संचालित होता है।
परासरण के प्रकार
परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है अन्त: परासरण और बहि: परासरण।
अन्त:परासरण
ऑस्मोसिस (Osmosis) की क्रिया में पानी अथवा विलायक (solvent) के अणु बाहर के माध्यम से कोशिका के अंदर प्रवेश करते हैं जिससे कोशिका (cell) फूल जाती है।
बहि:परासरण
बाह्यप्रसरण की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु कोशिका के अंदर से बाहर के माध्यम में आते हैं जिसमें कोशिका सिकुड़ जाती है।

विलयनो के प्रकार
कोशिका के अंदर तथा बाहरी माध्यम की सांद्रता के आधार पर विलयन तीन प्रकार के होते हैं।
- समपरासारी अथवा आइसोटोनिक विलयन (isotonic solution)- इस विलयन की सांद्रता कोशिका रस (cell sap) की सांद्रता के बराबर होती है।
- अल्पपरासारी अथवा हाइपोटोनिक विलयन (hypotonic solution)- इस विलयन की सांद्रता कोशिका रस की सांद्रता से कम होती है।
- अतिपरासारी अथवा हाइपरटोनिक विलयन (hypertonic solution)- इस विलयन की सांद्रता कोशिका रस की सांद्रता से अधिक होती है।
विसरण एवं परासरण में अंतर
क्रमांक | विसरण (Diffusion) | परासरण (Osmosis) |
1. | यह क्रिया प्राय: ठोस, द्रव व गैस तीनों में होती है। | यह क्रिया केवल द्रव माध्यम में होती है। |
2. | इस क्रिया में अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली का होना आवश्यक नहीं है। | इस क्रिया में अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली का होना आवश्यक है। |
3. | इस क्रिया में पदार्थों के अणुओं (particle) का परिवहन सदैव अधिक सांद्रता से कम सांद्रता की ओर होता है। | इस क्रिया में पानी (विलायक) के अणुओं (particle) का परिवहन कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता (Concentrations) वाले घोल (solution) की ओर होता है। |
4. | इस क्रिया के कारण उत्पन्न दाब को विसरण दाब (diffusion pressure) कहते हैं। | इस क्रिया के कारण उत्पन्न दाब को परासरण दाब (osmosis pressure) कहते हैं। |
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