प्रतिवर्ती क्रिया-
“अनेक क्रियाएं बाहरी उद्दीपनों के कारण अनुप्रिया (response) के रूप में होती है। इन्हें प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) कहते हैं।”
स्वादिष्ट भोजन देखते ही मुंह में लार का आना, कांटा चुभते ही पैर का झटके के साथ ऊपर उठ जाना, तेज प्रकाश में आंख की पुतली का सिकुड़ जाना तथा अंधेरे में उसका फेल जाना, खांसना आदि अनेक प्रतिवर्ती क्रिया में है। यह क्रियाएं रीड-रज्जु से नियंत्रित होती है। मस्तिष्क निकाल देनी है पर भी यह चलती है अतः प्रतिवर्ती क्रिया किसी उद्दीपन के प्रति आ गया अंगों के तंत्र द्वारा तीव्र गति से की जाने वाले स्वचालित अनुक्रिया है। इनके संचालन में मस्तिष्क भाग नहीं लेता है।

रीड-रज्जु से रीड तंत्रिका निकलती है। प्रत्येक रीड तंत्रिका पृष्ठ मूल तथा अधर मूल से बनती है। पृष्ठ मूल में संवेदी तंतु (sensory filament) तथा अधर मूल में चालक तंतु (motor filament) होते हैंं।
संवेदी अंग उद्दीपन को ग्रहण कर संवेदी तंतुओं द्वारा रीड-रज्जू तक पहुंचते हैं। इसके फलस्वरूप रीड-रज्जू से अनुक्रिया के लिए आदेश चालक। तंतुओं द्वारा संबंधित मांसपेशियों को मिलता है और अंग अनुक्रिया करता है।
इस प्रकार संवेदी अंगों से, संवेदनाओं को संवेदी तंतुओं द्वारा, रीड-रज्जू तक आने या रीड-रज्जू से प्रेरणा के रूप में अनुक्रिया करने वाले अंग की मांस पेशियों तक पहुंचने के मार्ग को प्रतिवर्ती चाप (reflex arch) तथा होने वाली क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) कहते हैं।
महत्व (Importance)-
बाह्य या आंतरिक उद्दीपन के फल स्वरुप होने वाली यह क्रियाएं मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है। इससे मस्तिष्क का कार्यभार कम हो जाता है। क्रिया होने के पश्चात मस्तिष्क को सूचना प्रेषित कर दी जाती है।
प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की भूमिका-
रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से थकान महसूस होती है। गहरी श्वास द्वारा CO2 की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालना उबासी लेना (yawning) कह जाता है कहलाता है।
प्रतिवर्ती क्रियाओं का उदाहरण: रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से थकान महसूस होती है। गहरी श्वास द्वारा CO2 की अधिक मात्रा को शरीर से बाहर निकालना उबासी लेना (yawning) कह जाता है कहलाता है।
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