मृदा निर्माण करने वाले कारक-
मृदा निर्माण करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं–
1. जलवायु-
मृदा को नियंत्रित करने वाले कारकों मैं जलवायु का स्थान सर्वोपरि है।जलवायु शैलों का अपक्षय एवं अपरदन कर उन्हें शिला चूर्ण मैं परिणत कर देती है। तापमान में वृद्धि या कमी शेलौं का विस्तार एवं सिकुडन होता है। किसी से शेल कणों का वियोजन हो जाता है।
अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में शेलौ का अपक्षय एवं अपरदन तीव्रता से होने के कारण मृदा निर्माण की प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है।शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में तापमान एवं वर्षा की मात्रा में गघ-बड़ के कारण मृदा की ऊपरी परत में पोषक तत्वों की वृद्धि होने से मृदा की उर्वरता में भी वृद्धि हो जाती है। शीतप्रधान पति समेत आपकी कमी के कारण मृदा का निर्माण नहीं हो पाता।
2. पैतृक शैलौं की प्रकृति-
मृदा का निर्माण नहीं हो पाता है।पैतृक शैलों की प्रकृति-मृदा का निर्माण पैतृक शैलों के विखण्डन सेन होता है अत मृदा में मूल चट्टानों के गुण स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए ज्वालामुखीकृत शैलों के विखण्डन से काली मिट्टी का निर्माण होता है। यह मिट्टी बहुत अधिक उर्वर होती है तथा कपास उत्पादन में प्रमुख स्थान रखती है।
3.भूमि की बनावट-
मृदा निर्माण में भूमि की बनावट का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्य ढालू भूमि पर वर्षा का जल भूमि के अन्दर अधिक गहराई तक प्रवेश नहीं कर पाता अतः मृदा के पोषक तत्त्व ऊपरी परत में ही रह जाते हैं। इसके विपरीत अधिक ढालू भूमि पर मृदा के पोषक तत्त्व जल के साथ घुलकर निचले भागों में एकत्र हो जाते हैं जिससे ऊपरी परत की उर्वरा शक्ति में कमी आ जाती है। अत्यधिक वर्षा वाले भागों में भी मिट्टी के पोषक तत्त्वों का बहाव हो जाने के फलस्वरूप उसकी उर्वरता में कमी आ जाती है।
4.वनस्पति आवरण-
जिन प्रदेशों में पर्णपाती या पतझड़ी वनस्पति उगती है, वहाँ वृक्षों की पत्तियाँ शैलचूर्ण में सड़-गलकर मिट्टी को उर्वर बना देती हैं। इससे मिट्टी में जीवांशों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। सूक्ष्म जीवाणुओं की विघटन प्रक्रिया से भी जीवांश का निर्माण होता है, जिससे मृदा की उर्वरता में वृद्धि हो जाती है।
परन्तु जिन प्रदेशों में पेड़-पौधे सदैव हरे-भरे बने रहते हैं, वहाँ अपक्षालन की क्रिया कम होने के कारण मृदा में जीवांशों की मात्रा में कम वृद्धि हो पाती है, फलस्वरूप मृदा की उर्वरता में अपेक्षाकृत कम वृद्धि होती है। परन्तु जीवांशों की वृद्धि के लिए वनस्पति की सघनता तथा सूक्ष्म जीवाणुओं का पर्याप्त संख्या में होना भी आवश्यक है।