अतिचालकता के बारे में
super conductivity in hindi इसकी खोज सन् 1991 में नीदरलैंड के वैज्ञानिक कैमरलिंग ओन्स ने की थी। कम ताप पर पदार्थ की प्रतिरोधकता के एकाएक शून्य हो जाने, यानी अचानक शून्य हो जाने की घटना को अतिचालकता कहते हैं व जिन पदार्थों में यह घटना होती है उन्हें अर्धचालक कहते हैं तथा यह निश्चित ताप क्रांतिक ताप कहलाता है।
विभिन्न पदार्थों का क्रांतिक ताप भिन्न-भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, पारे का क्रांतिक ताप 4.2 K, सीसे का क्रांतिक ताप 7.25 K तथा नियोबियम का क्रांतिक ताप 9.2 K हैं। वैज्ञानिकों ने कोबाल्ट, प्लैटोनियम तथा गैलियम की मिश्र धातु में 18.5 K पर अतिचालकता का गुण प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर ली है। इसके अतिरिक्त Bi₂Ca₂Sr₂Cu₃O₁₀ ताप 105 K पर तथा T1₂Ca₂Ba₂Cu₃O₁₀ ताप 125 K पर अतिचालकता दर्शाते हैं।

अतिचालक पदार्थ वाले विद्युत परिपथ में यदि एक बार विद्युत स्त्रोत द्वारा धारा पृवाहित कर दी जाये तो विद्युत स्त्रोत हटा लेने के बाद भी बहुत अधिक समय तक धारा बहती रहेगी। अतः अतिचालक तारों द्वारा बिना ऊर्जा क्षय किये विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जा सकता है तथा बिना शक्ति क्षय किये उच्च चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है।
कारण
अतिचालकता का कारण यह है कि क्रांतिक ताप पर अतिचालकता के अंदर मुक्त इलेक्ट्रॉन एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं होते हैं। बल्कि एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा युग्मित हो जाते हैं। ये युग्मित मुक्त इलेक्ट्रॉन अतिचालक के अंदर धनायनों से बिना टकराये हुए गति करते हैं जिससे अतिचालक इनके प्रवाह में कोई प्रतिरोध उत्पन्न नहीं करता है अर्थात विद्युत धारा के प्रभाव में कोई प्रतिरोध उत्पन्न नहीं होता है इसलिए अतिचालक का पदार्थ का प्रतिरोध शून्य होता है।
अतिचालको के उपयोग
- अतिचालकों का उपयोग अत्यंत प्रबल विद्युत चुम्बक बनाने में किया जाता है।
- इनका उपयोग अति उच्च स्पीड वाले कंप्यूटर में किया जाता है।
- अतिचालकों का उपयोग विद्युत शक्ति प्रेषण में किया जाता है।
- इनका उपयोग धातु विज्ञान व उच्च ऊर्जायुक्त कणों की भौतिकी में शोध के लिए किया जाता है।
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