
उपभोक्ता किसे कहते हैं?
जीवमण्डल में दो प्रकार के प्राणी वास करते हैं-
उत्पादक –
उत्पादक वे जीव हैं, जो भौतिक पर्यावरण से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। इन्हें स्वपोषो जीव भी कहते हैं। हरे पेड़ – पौधे तथा सभी प्रकार की वनस्पति प्राथमिक उत्पादक हैं। महासागरीय जल में पादप , प्लवक प्राथमिक उत्पादक हैं, क्योंकि वे सौर ऊर्जा का उपयोग कर अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं।
उपभोक्ता –
उपभोक्ता अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं। इन्हें परपोषी भी कहा जाता है। इनकी चार श्रेणियाँ हैं-
- शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता – हिरन एवं खरगोश।
- मांसाहारी या गौण उपभोक्ता – शेर एवं चीता।
- सर्वाहारी या सर्वभक्षी उपभोक्ता – मनुष्य।
- अपघटक या अपरदभोजी उपभोक्ता – जीवाणु, कवक, दीमक आदि।
इस प्रकार अपघटक जीवों द्वारा जैव पदार्थों को अजैव पदार्थों में परिणत कर दिया जाता है। इन अजैव पदार्थों को सौर ऊर्जा की सहायता से पेड़ – पौधे पुन : अपना भोजन बना लेते हैं।
हिरन, खरगोश आदि पेड़ – पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं जबकि शेर एवं चीता, हिरन, खरगोश आदि को खा जाते हैं। मनुष्य अपना भोजन पेड़ – पौधों एवं गौण उपभोक्ताओं से प्राप्त करता है। इस प्रकार यह क्रम अबाध गति से चलता रहता है तथा चक्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
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