
वाणी का तपा | कक्षा-12 अपठित गद्यांश
बोलने का विवेक, बोलने की कला और पटुता व्यक्ति की शोभा है; उसका आकर्षण है। सुबुद्ध वक्ता अपार जन समूह का मन मोह लेता है, मित्रों के बीच सम्मान और प्रेम का केन्द्रबिन्दु बन लोग अपनी बात को राई का पहाड़ बनाकर उपस्थित करते हैं, वे एक ओर जहाँ सुननेवाले के धैर्य की परीक्षा लिया करते हैं, वहीं अपना और दूसरों का समय भी अकारण नष्ट किया करते हैं। जाता है।
जो वाणी का अनुशासन, वाणी का संयम और सन्तुलन तथा वाणी की मिठास ऐसी शक्ति है, जो हर कठिन स्थिति में हमारे अनुकूल ही रहती है, जो मरने के पश्चात् भी लोगों की स्मृतियों में हमें अमर बनाए रहती है। हाँ, बहुत कम बोलना या सदैव चुप लगाकर बैठे रहना भी बुरा है। यह हमारी प्रतिभा और तेज को कुन्द कर देता है। ऐसा व्यक्ति गुफा में रहनेवाले उस व्यक्ति की तरह होता है, जिसे बहुत दिनों के बाद प्रकाश में आने पर भय लगने लगता है। अतएव कम बोलो, सार्थक और हितकर बोलो। यही वाणी का तप है।
प्रश्न: (क) व्यक्ति की शोभा और आकर्षण किसे बताया गया है और क्यों?
प्रश्न: (ख) वाणी का तप किसे कहा गया है और क्यों?
प्रश्न: (ग) किस प्रकार की भाषा हमें जीवन में लोकप्रिय और जीवन के बाद अमर बनाती है?
प्रश्न: (घ) ‘राई का पहाड़ बनाना’ का आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए।
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प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर: (क) बोलने के विवेक, बोलने की कला और पटुता को व्यक्ति की शोभा और आकर्षण बताया गया है; क्योंकि वाणी का अनुशासन, वाणी का संयम और सन्तुलन एवं वाणी की मिठास हर कठिन स्थिति को व्यक्ति के अनुकूल बना देती है तथा व्यक्ति को लोगों की स्मृतियों में अमर बनाए रखती है।
उत्तर: (ख) कम, सार्थक और हितकर बोलने को वाणी का तप कहा गया है, क्योंकि यह व्यक्ति को निर्भय बनाने के साथ-साथ उसका कल्याण करने में भी समर्थ है।
उत्तर: (ग) अनुशासित, संयमित, सन्तुलित और मीठी भाषा हमें जीवन में लोकप्रिय तथा जीवन के बाद अमर बनाती है।
उत्तर: (घ) ‘राई का पहाड़ बनाना’ मुहावरे का आशय है- किसी बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना। वाक्य-प्रयोग बेटे के सामने राई का पहाड़ बनाकर सास ने बहु-बेटे के सम्बन्धों में जहर घोल दिया।
उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘वाणी का तपा’।