
‘आर्थिक मंदी’क्या थी?
आर्थिक मंदी-
‘आर्थिक मंदी’ एक विश्वव्यापी आर्थिक संकट का था, जो 1929 ईस्वी में प्रारंभ होकर 1933 तक चला। इस आर्थिक संकट के दुष्परिणाम समूचे विश्व को भुगतने पड़े।
आर्थिक मंदी के परिणाम-
- विश्व के लगभग सभी पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात पहुंचा।
2.आर्थिक संकट के परिणाम स्वरूप यूरोप में फासीवादी शक्तियां जोर पकड़ने लगी। - माल की खपत ना हो पाने के कारण अनेक कारखाने बंद हो गए।
- वस्तुओं की मांग घट जाने से अनेक वस्तुओं का उत्पादन कम हो गया।
- आर्थिक मंदी नसे निर्धनता में अत्यधिक वृद्धि हुई।
आर्थिक संकट का विश्व के प्रमुख देशों पर प्रभाव-
1.जर्मनी पर प्रभाव-
आर्थिक संकट के परिणाम स्वरूप जर्मनी में बेरोजगारी अत्याधिक बड़ी। 1932 ईस्वी तक 600000 लोग बेरोजगार हो गए। इससे जर्मनी में बाह्य गणतंत्र की स्थिति दुर्बल हुईं हिटलर इसका फायदा उठाकर सत्ता में आ गया। इस प्रकार आर्थिक मंदी में जर्मनी में नाजीवाद का शासन स्थापित किया।
2. फ्रांस पर प्रभाव-
जर्मनी से अत्याधिक क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी। अतः वह भी आर्थिक मंदी से प्रभावित नही पड़ा। फ्रांस की मुद्रा फ्रैंक अपनी साख बचाये में सफल रही।
3. ऑस्ट्रेलिया पर प्रभाव-
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ऑस्ट्रेलिया की आर्थिक व्यवस्था कृषि और औद्योगिक उत्पादों पर निर्भर थी। इसलिए उस पर सबसे अत्याधिक असर पड़ा।
4. फ्रांस पर प्रभाव-
फ्रांस काफी हद तक आत्मनिर्भरता इसलिए उस पर महामंदी का कम असर पड़ा। फिर भी बेरोजगारी बढ़ने से दंगे हुए। और समाजवादी पॉपुलर का उदय हुआ।
1. आर्थिक मंदी क्या थी?
‘आर्थिक मंदी’ एक विश्वव्यापी आर्थिक संकट का था, जो 1929 ईस्वी में प्रारंभ होकर 1933 तक चला। इस आर्थिक संकट के दुष्परिणाम समूचे विश्व को भुगतने पड़े।