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जीवन में खेल कूद का महत्व पर निबंध

जीवन में खेल कूद का महत्व पर निबंध

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको जीवन में खेल कूद का महत्व पर निबंध के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

खेल कूद का महत्व

संगीत-बिंदु-(1) प्रस्तावना, (2) जीवन में खेल कूद का महत्व, (3) खेलों से लाभ, (4) उपसंहार।

प्रस्तावना

एक जमाना था जब खेलकूद को हेय दृष्टि से देखा जाता था। बच्चों को समझाया जाता था-

पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब
खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब

किंतु यह बात इस कथन में भुला दी गई थी कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन मस्तिष्क का निवास होता है। हमारे देश के महान विचारक स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में युवकों को संबोधित करते हुए कहा था-सर्वप्रथम हमारे देश के नव युवकों को बलवान बनाना चाहिए। धर्म स्वयं पीछे-पीछे आ जाएगा। मेरे नवयुवक मित्रों। बलवान बनो।

किंतु यह बात इस कथन में भुला दी गई थी कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन मस्तिष्क का निवास होता है।

तुमको मेरी यही सलाह है। गीता की अभ्यास की अपेक्षा फुटबॉल खेलने के द्वारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट पहुंच जाओगे। तुम्हारी कलाई और भुजाएं अधिक मजबूत होने पर तुम गीता को अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे। स्वामी विवेकानंद के तेजोछीप्त और बलिष्ठ शरीर तथा गंभीर विचार वाणी से उनके कथन की सत्यता का प्रमाण अपने आप मिल जाता है। शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए खेलकूद अनिवार्य है।

जीवन में खेल कूद का महत्व

खेल चाहे कोई सा भी हो, वह मनुष्य में संघर्ष करने और जीतने की प्रबल आकांक्षा जागृत करता है। खेल प्रिय मनुष्य जुझारू प्रवृत्ति को जीवन का अंग बना लेता है।वह हाजी दोनों को जीवन की लंबी यात्रा में स्वीकार करने की क्षमता विकसित कर लेता है। खेलों के अभ्यास से वह एकाग्र चित्त होना सीखता है।

केले से व्यक्ति में पारस्परिक सहयोग, अनुशासन, संगठन, आज्ञाकारीता, साहस, विश्वास, और समय पर उचित निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है। गांधी जी ने अपने कमजोर शरीर पर बहुत खेद जताया था।इसका सारांश यही है कि खेल के बिना स्वस्थ शरीर और स्वस्थ शरीर के बिना स्वस्थ मस्तिष्क का विकास कठिन है। स्वस्थ शरीर और मन मस्तिष्क वाला अपने देश और समाज के लिए भी अधिक उपयोगी होता है।

खेलों से लाभ

पीने से शरीर हष्ट पुष्ट बनता है, मांसपेशियां उभरती हैं, रक्त शुद्ध होता है, भूख भर्ती है, आलस्य दूर होता है तथा पेट साफ होता है। न खेलने वाला व्यक्ति शरीर से दुर्लभ, रोगी, और निराश प्रवृत्ति का हो जाता है।शरीर की दुर्बलता उस में उत्साह हीनता भर्ती है। जिससे कि वह लक्ष्य प्राप्ति में भी शंकित रहता है।

लक्ष्य हीनता के बाद वह जीवन के उल्लास और सुख से भी वंचित हो जाता है। जीवन में मान सम्मान, सुख संपदा, उच्च पद आदि आनंद भी सार्वजनिक रूप से रोगी व्यक्ति नहीं उठा पाता।शारीरिक कमजोरी या दुर्बलता के कारण सामाजिक क्षेत्र में उसे अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता है। जब हीन भावना मन को घेर लेती है तो जीवन का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इस सब से बचने का एकमात्र और सरल उपाय है-खेलने की नियमित आदत बना लेना।

उपसंहार

खेलों का एक बड़ा लाभ यह है कि इन से खेलने वाले और देखने वाले दोनों का मनोरंजन होता है।खिलाड़ी की जीत से उसके समर्थकों को भी आनंद मिलता है। हारने से जीतने की पुनः प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार खेल मनुष्य को जीवन को सामग्रता और खेल भावना से जीने की कला सिखाता है।