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सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है?

सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है?

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको सम सीमांत के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

सम सीमांत के बारे में

उपयोगिता के क्षेत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियम सम सीमांत उपयोगिता नियम है। सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित कल्याण वादी अर्थशास्त्र के इस व्यवहारिक नियम का संबंध भी हमारे दैनिक जीवन से है। मनुष्य की आवश्यकताएं अनंत हैं और उसके साधन सीमित हैं।

उपयोगिता के क्षेत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियम सम सीमांत उपयोगिता नियम है। सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित कल्याण वादी अर्थशास्त्र के इस व्यवहारिक नियम का संबंध भी हमारे दैनिक जीवन से है।

अतः वह अपनी समस्त आवश्यकता ओं को सीमित साधनों द्वारा संतुष्ट नहीं कर सकता। मनुष्य अपने सीमित साधनों का अपनी असीमित एवं प्रतियोगी आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु किस प्रकार प्रयोग करें, जिससे उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके सम सीमांत उपयोगिता का नियम इसी जटिल समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।

नियम के विभिन्न नाम

सम सीमांत उपयोगिता नियम को अर्थशास्त्री अनेक संबोधनौं से पुकारते हैं, जैसे- प्रतिस्थापन का नियम, उदासीनता का नियम, अधिकतम संतुष्टि का नियम, अनुपातिकता का नियम, आदि।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषाएं

प्रो मार्शल के शब्दों में-

"यदि किसी व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु है, किसका प्रयोग वह अनेक प्रकार से कर सकता है तो वह उस वास्तु को उन विभिन्न प्रयोगों के बीच इस प्रकार वितरित करेगा कि सभी प्रयोगों में उस व्यक्ति की सीमांत उपयोगिता समान नहीं।"

प्रो जे आर हिक्स के शब्दों में-

"उपयोगिता तब अधिकतम होगी, जबकि प्रत्येक दशा में व्यय की सीमांत इकाई बराबर उपयोगिता प्राप्त करें।"इस प्रकार सम सीमांत उपयोगिता नियम का सार यह है कि अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए द्रव को विभिन्न उपयोगों में इस प्रकार व्यय करना चाहिए कि प्रत्येक दशा में सीमांत उपयोगिता समान रहे।"

नियम के आधार

  1. मानवीय आवश्यकताएं अनंत हैं।
  2. मनुष्य के पास साधन सीमित है।
  3. प्रत्येक व्यक्ति का ध्येय सीमित साधनों से अधिक संतुष्टि प्राप्त करना होता है ‌
  4. मनुष्य का आचरण विवेकपूर्ण कौन होता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यताएं

  1. उपभोक्ता एक विवेकशील व्यक्ति है, जो अपनी सीमित आय से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक एवं विवेक से व्यय करता है।
  2. द्रव की सीमांत उपयोगिता अपवर्तित रहती है।
  3. उपभोक्ता द्रव को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में व्यय करता है।
  4. उपभोक्ता की आय, रुचि, अधिमान आदि में कोई परिवर्तन नहीं है।
  5. उपयोगिता का द्रव के मापदंड द्वारा मापन संभव है।
  6. बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है तथा वस्तुओं की कीमतें स्थिर बनी हुई है।