हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको निर्देशांक ज्यामिति के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
निर्देशांक ज्यामिति क्या है?
निर्देशांक ज्यामिति एक बीजीय साधन है जिसके द्वारा आकृतियों की ज्यामिति का अध्यन किया जाता है। निर्देशांक ज्यामिति हमें बीजगणित का उपयोग कर आकृतियों की ज्यामिति को समझने में सहायता करता है। यही कारण है कि निर्देशांक ज्यामिति का विभिन्न क्षेत्रों में, यथा भौतिकी, इंजिनियरिंग, समुद्री परिवहन, भूकम्प शास्त्र आदि में व्यापक उपयोग होता है।
निर्देशांक क्या होते हैं?
निर्देशांक अक्षों का एक युग्म हमें एक तल पर किसी बिन्दु की स्थिति निर्धारित करने के योग्य बनाता है।
किसी बिन्दु की y–अक्ष से दूरी उस बिन्दु का x–निर्देशांक (x–coordinate) कहलाता है। तथा किसी बिन्दु की x–अक्ष से दूरी उस बिन्दु का y–निर्देशांक (y–coordinate) कहलाता है।
x-निर्देशांक को भुज (abscissa) तथा y–निर्देशांक को कोटि (ordinate) भी कहा जाता है।
निर्देशांक के प्ररूप
x–अक्ष पर स्थित्त किसी बिन्दु के निर्देशांक (xx, 0) के रूप के होते हैं।
तथा y–अक्ष पर स्थित किसी बिन्दु के निर्देशांक (yy, 0) के रूप के होते हैं।
निर्देशांक के चिन्ह
(a) x–अक्ष से ऊपर के निर्देशांक धनात्मक (+) तथा x–अक्ष से नीचे के निर्देशांक ऋणात्मक (–) माने जाते हैं।
(b) उसी प्रकार y–अक्ष से दाहिने के निर्देशांक धनात्मक (+) तथा y–अक्ष से बायें के निर्देशांक ऋणात्मक (–) माने जाते हैं।
निर्देशांक के कुछ उदाहरण
दिये गये ग्राफ में
(1) बिन्दु O तल का मूल बिन्दु है।
किसी तल के मूल बिन्दु का निर्देशांक (0,0) होता है।
इसका अर्थ यह है कि मूल बिन्दु का x–अक्ष से दूरी = 0
तथा इस मूल बिन्दु का y–अक्ष से दूरी = 0
(2) बिन्दु A दिये गये तल के x–अक्ष पर है
अत: बिन्दु A का निर्देशांक (4,0) है।
इसका यह अर्थ है कि इस बिन्दु A का x–अक्ष पर मूल बिन्दु से दूरी = 4
तथा इस बिन्दु A का y–अक्ष का मूल बिन्दु से दूरी = 0
निर्देशांक (4,0) का अर्थ है, यह बिन्दु x–अक्ष के दायीं ओर 4 मात्रक की दूरी पर है।
(3) बिन्दु B y–अक्ष पर स्थित है।
अत: इस बिन्दु B का निर्देशांक = (0,7)
इसका अर्थ यह है कि इस बिन्दु B की मूल बिन्दु से दूरी x–अक्ष पर दूरी = 0
तथा इस बिन्दु B का y–अक्ष पर दूरी = 7 मात्रक
चूँकि बिन्दु B की मूल बिन्दु से x–अक्ष पर दूरी = 0, अत: यह बिन्दु y–अक्ष पर स्थित है।
(4) बिन्दु C का निर्देशांक (5,4) है।
इसका अर्थ यह है कि बिन्दु C की मूल बिन्दु से x–अक्ष पर दूरी = 5 मात्रक
तथा इसी बिन्दु C की y–अक्ष पर दूरी = 4 मात्रक है।
(5) बिन्दु D का निर्देशांक (2,6) है।
इसका यह अर्थ है कि बिन्दु D की मूल बिन्दु से x–अक्ष पर दूरी = 2 मात्रक है।
तथा इस मूल बिन्दु से इस बिन्दु D की y–अक्ष पर दूरी = 6 मात्रक है।
धनात्मक तथा ऋणात्मक निर्देशांक के कुछ उदाहरण
दिये गये ग्राफ के तल में चार बिन्दु A, B, C तथा D स्थित हैं।
(a) A (–3, 2) का अर्थ है बिन्दु A y–अक्ष के बायीं ओर 3 मात्रक की दूरी पर तथा x–अक्ष के ऊपर 2 मात्रक की दूरी पर है।
(b) B (–2,–1)
इसका अर्थ है कि B बिन्दु y–अक्ष के बायीं ओर 2 मात्रक की दूरी पर तथा x–अक्ष के नीचे 1 मात्रक पर स्थित है।
(c) C (1,2)
C (1,2) का अर्थ है कि इसकी स्थिति y–अक्ष के दायीं ओर 1 मात्रक की दूरी पर तथा x–अक्ष के ऊपर 2 मात्रक की दूरी पर स्थित है।
(d) D (1–, 2)
D (1–, 2) का अर्थ है कि यह बिन्दु y–अक्ष के दायीं ओर 1 मात्रक की दूरी पर तथा x–अक्ष के नीचे 2 मात्रक की दूरी पर स्थित है।
निर्देशांक ज्यामिति के सूत्र
आयत
- क्षेत्रफल = लंबाई x चौडाई
- परिमाप = 2(लंबाई + चौडाई)
- विकर्ण = √ (लंबाई² +चौडाई²)
वर्ग
- क्षेत्रफल = भुजा²
- परिमाप = 4 x भुजा
- विकर्ण = भुजा√ 2
वृत्त
- क्षेत्रफल = πr² (आंतरिक भाग)
- परिधी = 2πr (बाहरी भाग)
घन
- आयतन = भुजा³ (आंतरिक भाग)
- वक्रप़ष्ठ = 6भुजा² (बाहरी भाग)
- विकर्ण = भुजा√ 3
घनाभ
- आयतन = लंबाई x चौडाई x उंचाई
- (आंतरिक भाग)
- वक्रप़ष्ठ = 2(lb+bh+hl) (बाहरी भाग)
- विकर्ण = √ (लंबाई² + चौडाई² + उंचाई²)
बेलन
- वक्रप़ष्ठ = 2πrh (बाहरी भाग)
- संपूर्ण प़ष्ठ = 2πr (h+r)
- आयतन = πr²h (आंतरिक भाग)
गोला
- वक्रप़ष्ठ = 3πr² (बाहरी भाग)
- आयतन = (4/3) πr³ (आंतरिक भाग)
शंकु
- आयतन =(1/3)πr²h
- क्षेत्रफल = πr(r+s)
त्रिभुज
- समबाहु – सभी भुजाएं बराबरक्षेत्रफल = (√ 3)/4 x भुजा²
- समद्विबाहु – कोई भी दो भुजा बराबरक्षेत्रफल = 1/2 x आधार x उंचाई
- विषमबाहु – सभी भुजाएं असमान
- परिमिती = (a+b+c)/2
- क्षेत्रफल = √ [s(s-a)(s-b)(s-c)]
चतुर्भुज
- समचतुर्भुज – सभी भुजाएं बराबर और एक दुसरे के समांतर
- क्षेत्रफल = 1/2 ( विकर्ण1 x विकर्ण2)
- समलंब समचतुर्भुज – आमने -सामने कि कोई भी दो भुजा समांतर
- क्षेत्रफल = 1/2 ( समांतर भुजाओं का योग) x उंचाई
- समांतर समचतुर्भुज – कोई भी दो भुजा बराबर
- क्षेत्रफल = आधार x उंचाई.