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भारतीय संविधान में वर्णित स्वतंत्रता के अधिकार

भारतीय संविधान में वर्णित स्वतंत्रता के अधिकार

हेलो दोस्तों मेरा नाम भूपेंद्र है। और आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे भारतीय संविधान में वर्णित स्वतंत्रता के अधिकार हम इसके बारे में आपको पूरी जानकारी देंगे तो आप हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और ऐसे ही आर्टिकल पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर जाएं।

स्वतंत्रता का अधिकार ( 19 से 22 तक)

प्रत्येक नागरिक अपनी सामर्थ्य और योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सकें,इसके लिए स्वतंत्रता के अधिकार को संविधान में सम्मिलित किया गया है। इस मूल अधिकार के अंतर्गत प्रत्येक भारतीय नागरिक को निम्नलिखित स्वतंत्रता में प्रदान की गई है-

1. अनुच्छेद 19 के अंतर्गत, इस अधिकार से संबंधित निम्नलिखित 6 प्रकार की स्वतंत्रताआएं नागरिकों को प्राप्त है-

  1. संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को भाषण के रूप में अपने विचार व्यक्त करने एवं उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  2. नागरिकों को शांतिपूर्वक सभा आदि करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  3. प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छा अनुसार व्यवसाय करने के लिए स्वतंत्र है।
  4. नागरिकों को मानव हितों के लिए समुदाय अथवा संघ निर्माण करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  5. नागरिकों को देश की सीमाओं के अंदर स्वतंत्रता पूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  6. प्रत्येक नागरिक को इस बात की है स्वतंत्रता प्रदान की गई है कि वह किसी भी स्थान पर अपनी इच्छा अनुसार रह सकता है।

2. अपराधों की दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण अनुच्छेद 20 के अनुसार, किसी व्यक्ति को उस समय तक दंड नहीं दिया जा सकता है, जब तक उसने किसी प्रचलित कानून का उल्लंघन ना किया हो। भी प्रकार से बाध्य नहीं किया जा सकता है।

3. जीवन और शरीर रक्षण का अधिकार-अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी व्यक्ति की पुराण अथवा दैहिक स्वतंत्रता को, केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर, अन्य किसी प्रकार से बाधित नहीं किया जाएगा।स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकारों में जीवन और शरीर रक्षण के अधिकार को विशिष्ट महत्त्व प्राप्त है।

4. वंदीकरण के संरक्षण की स्वतंत्रता – अनुच्छेद 22 के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को बंदी होने का कारण जानने का अधिकार दिया गया है। किसी को बंदी बनाने के बाद उसे 24 घंटे के अंदर ही किसी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित करना आवश्यक है।

विशेष परिस्थितियों में स्वतंत्रता के अधिकार पर औचित्य पूर्ण अंकुश लगाने की दृष्टि से निवारक निरोध अधिनियम की भी व्यवस्था की गई है।

अपवाद

नागरिकों की विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकार राज्य की सुरक्षा,राज्यों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार अथवा सदाचार के हित में, न्यायालय अवमानना, मानहानि, अपराध के लिए उत्तेजित करना।

भारत की संप्रभुता एवं अखंडता को दृष्टि में रखते हुए प्रतिबंध आरोपित किए जा सकते हैं। राज्यों द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में सम्मेलन अथवा सभा करने के अधिकार को सीमित किया जा सकता है। नागरिकों के स्वतंत्र भ्रमण को भी सार्वजनिक हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है।