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देवभूमि उत्तराखंड पर निबंध

देवभूमि उत्तराखंड पर निबंध

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको देवभूमि उत्तराखंड पर निबंध के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

प्रस्तावना

देवों के देव महादेव की निवास-भूमि कैलाश को अपनी गोद में संजोए पर्वतराज हिमालय की अपात्यकाओं मैं अजीत उत्तराखंड राज्य को प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य का वरदान मिला है।

हिमालय को जहां देवी पार्वती का पिता कहा जाता है,वही यहां देवताओं की सर्वाधिक रमणीय भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है, इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड राज्य की भूमि बड़ी पवित्र है। यहां पर चार प्रसिद्ध धाम स्थित है तो देवी गंगा का उद्गम स्थल भी यहीं स्थित है।

इसलिए यह राज्य अपनी पावन था एवं प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र में भारत के सभी राज्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां की फूलों की घाटी तो अपनी सुंदरता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, इसलिए उसे विश्व धरोहर की सूची में रखा गया है।धन्य है देव भूमि उत्तराखंड और धन्य है यहां के निवासी।

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र

देवभूमि उत्तराखंड के सौंदर्य का ही आकर्षण है, जो विश्वभर के पर्यटक इस की ओर खिंचे चले आते हैं। यहां की हिमा छातीत पर्वत श्रृंखला हरे-भरे वन, वनों में रहने वाले दुर्लभ वन्य जीव और तीर्थ स्थल की पावन श्रंखला प्रत्येक देश जाति के प्रकृति प्रेमियों को यहां तक खींच लाती है।

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति

उत्तराखंड राज्य की सीमा चीन (तिब्बत) और नेपाल से लगती है।इस उत्तरी राज्य के उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण दिशा में उत्तर प्रदेश स्थित है।

उत्तराखंड हिमालय श्रृंखला की दक्षिणी ढलान पर स्थित है। यहां मौसम और वनस्पति में ऊंचाई के साथ साथ बहुत परिवर्तन होता है। यहां सर्वोच्च ऊंचाई पर यदि हिमनद स्थित है तो निचले स्थानों पर उपोष्ण कटिबंधीय वन है।राज्य के सबसे ऊंचे स्थान हिम और पत्रों से युक्त नगी चोटियां हैं। उनसे नीचे 5000 से 3000 मीटर तक घास और झाड़ियों से ढके स्थान हैं।

समशीतोष्ण शंकुधारी वन, पश्चिम हिमालय, व्हिच रेखा से कुछ नीचे उगते हैं।3000 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालय चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं।गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन है। सवाना और खास भूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए हैं। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाबर के नाम से जाना जाता है। निचली भूमि के अधिकांश भाग को खेती के लिए साफ कर दिया गया है।

उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन-स्थल

(क) मुख्य राष्ट्रीय उद्यान-भारत के अनेक राष्ट्रीय उद्यान किस राज्य में है, जैसे-जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान रामनगर, नैनीताल जिले में फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली जिले में है। यह दोनों यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के साथ-साथ यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल भी हैं।

(ख) उत्तराखंड के चार धाम-भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं की सबसे पवित्र स्थान होने के कारण पर्यटन के प्रमुख केंद्र हैं। इनको चार धाम के नाम से भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो पुण्य आत्मा यहां का दर्शन करने मैं सफल होते हैं, उनका ना केवल इस जन्म का पाप धुल जाता है,

वरन वे जीवन मरण के बंधन से भी मुक्त हो जाते हैं। इस स्थान के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थल है, जहां पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होते हैं।तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालुओं केदारेश्वर पर जलाभिषेक करके इन तीर्थ यात्रियों के लिए परंपरागत मार्ग इस प्रकार है-

हरिद्वार-ऋषिकेश-देवप्रयाग-टिहरी-धरासू-यमुनोत्री-उत्तरकाशी-गंगोत्री-त्रिजुगीनरायण-गौरीकुंड-केदारनाथ।

यह मार्ग परंपरागत हिंदू धर्म में होने वाली पवित्र परिक्रमा के समान है जबकि केदारनाथ जाने के लिए दूसरा मार्ग ऋषिकेश से होते हुए देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्त मुनि, गुप्तकाशी, और गौरीकुंड से होकर जाता है। केदारनाथ के समीप ही मंदाकिनी का उद्गम स्थल है।मंदाकिनी नदी रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है।

पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाएं

उत्तराखंड सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया है।इसके लिए सभी पर्यटन स्थलों तक पहुंचने के लिए अच्छी और चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया है।ने सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग का दर्जा प्रदान कर आवागमन को सुचारू बनाया गया है।

चार धाम मार्ग पर पर्यटकों के ठहरने और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था की है। आपात स्थिति से निपटने के लिए यहां विशेष व्यवस्था की गई है। अनेक पर्यटन स्तनों को हवाई मार्गों से जोड़ा गया है। केदारनाथ में तो इस वर्ष तीर्थ यात्रियों के लिए लेसर शो की व्यवस्था भी की गई है। जिसमें भगवान शिव से संबंधित अनेकों मंदिर की दीवारों पर साकार किया जाता है।

उत्तराखंड की भाषा

सामान्यतः उत्तराखंड राज्य में तीन मुख्य भाषाएं बोली जाती हैं-गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी। भारतीय भाषा लोग सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल 13 भाषाएं बोली जाती है। उत्तराखंड की भाषाओं को लेकर सबसे पहले सर्वेक्षण करने वाले जार्ज ग्रियर्सन ने भी इनमें से अधिकतर भाषाओं की जानकारी दी थी।ग्रियर्सन न्यू सन 1908 ईस्वी से लेकर सन 1927 ईस्वी तक यह सर्वेक्षण करवाया था।

इसके बाद उत्तराखंड की भाषाओं को लेकर कई अध्ययन किए गए। हाल में पाखंडी नामक संस्था ने वी इन भाषाओं पर काम किया। यह पूरा काम 13 भाषाओं पर ही केंद्रित रहा। इनमें गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी, जौनपुरी, आदि भाषाएं बोली जाती हैं।यदि विचार किया जाए कि एक बोली का अगर अपना शब्द भंडार है,वह खुद को अलग तरह से व्यक्त करती है तो उसे भाषा कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए।

अनेक विद्वानों का मानना है कि उत्तराखंड की भाषाओं की अपनी लिपि नहीं है तो हम कह सकते हैं कि संसार में सर्वाधिक प्रसिद्ध अंग्रेजी की भी अपनी लिपि नहीं है।वह रोमन लिपि में लिखी जाती है तो क्या इस आधार पर उसे भाषा मानने से इनकार किया जा सकता है?मराठी की लिपि देवनागरी है और उसे भाषा माना गया है।

इसलिए उत्तराखंड की भाषाओं को भाषा के रूप में स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है। उत्तराखंड की इन भाषाओं में पर्याप्त मात्रा में साहित्य रचना हुई है।इन भाषाओं के प्रचार प्रसार के माध्यम से उत्तराखंड की सभ्यता एवं संस्कृति को और अधिक नजदीक से जाना जा सकता है।
उत्तराखंड की लोक संस्कृति भारतीयता की जितनी वाहक है, यहां की पुण्य भूमि और प्राकृतिक संपदा उससे भी अधिक स्मरणीय और नमीय है,हमें सभी को मिलकर इन भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र-देवभूमि उत्तराखंड के सौंदर्य का ही आकर्षण है, जो विश्वभर के पर्यटक इस की ओर खिंचे चले आते हैं। यहां की हिमा छातीत पर्वत श्रृंखला हरे-भरे वन, वनों में रहने वाले दुर्लभ वन्य जीव और तीर्थ स्थल की पावन श्रंखला प्रत्येक देश जाति के प्रकृति प्रेमियों को यहां तक खींच लाती है।

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति-उत्तराखंड राज्य की सीमा चीन (तिब्बत) और नेपाल से लगती है। इस उत्तरी राज्य के उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण दिशा में उत्तर प्रदेश स्थित है। उत्तराखंड हिमालय श्रृंखला की दक्षिणी ढलान पर स्थित है। यहां मौसम और वनस्पति में ऊंचाई के साथ साथ बहुत परिवर्तन होता है। यहां सर्वोच्च ऊंचाई पर यदि हिमनद स्थित है तो निचले स्थानों पर उपोष्ण कटिबंधीय वन है।राज्य के सबसे ऊंचे स्थान हिम और पत्रों से युक्त नगी चोटियां हैं।

उनसे नीचे 5000 से 3000 मीटर तक घास और झाड़ियों से ढके स्थान हैं। समशीतोष्ण शंकुधारी वन, पश्चिम हिमालय, व्हिच रेखा से कुछ नीचे उगते हैं। 3000 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालय चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं।गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन है। सवाना और खास भूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए हैं। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाबर के नाम से जाना जाता है। निचली भूमि के अधिकांश भाग को खेती के लिए साफ कर दिया गया है।

उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन-स्थल

(क) मुख्य राष्ट्रीय उद्यान-भारत के अनेक राष्ट्रीय उद्यान किस राज्य में है, जैसे-जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान रामनगर, नैनीताल जिले में फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली जिले में है। यह दोनों यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के साथ-साथ यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल भी हैं।

(ख) उत्तराखंड के चार धाम-भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं की सबसे पवित्र स्थान होने के कारण पर्यटन के प्रमुख केंद्र हैं। इनको चार धाम के नाम से भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो पुण्य आत्मा यहां का दर्शन करने मैं सफल होते हैं, उनका ना केवल इस जन्म का पाप धुल जाता है, वरन वे जीवन मरण के बंधन से भी मुक्त हो जाते हैं। इस स्थान के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थल है, जहां पृथ्वी और स्वर्ग एकाकार होते हैं।

तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालुओं केदारेश्वर पर जलाभिषेक करके इन तीर्थ यात्रियों के लिए परंपरागत मार्ग इस प्रकार है-हरिद्वार-ऋषिकेश-देवप्रयाग-टिहरी-धरासू-यमुनोत्री-उत्तरकाशी-गंगोत्री-त्रिजुगीनरायण-गौरीकुंड-केदारनाथ।

यह मार्ग परंपरागत हिंदू धर्म में होने वाली पवित्र परिक्रमा के समान है जबकि केदारनाथ जाने के लिए दूसरा मार्ग ऋषिकेश से होते हुए देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्त मुनि, गुप्तकाशी, और गौरीकुंड से होकर जाता है। केदारनाथ के समीप ही मंदाकिनी का उद्गम स्थल है। मंदाकिनी नदी रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है।पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाएं-उत्तराखंड सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया है। इसके लिए सभी पर्यटन स्थलों तक पहुंचने के लिए अच्छी और चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया है।

सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग का दर्जा प्रदान कर आवागमन को सुचारू बनाया गया है।चार धाम मार्ग पर पर्यटकों के ठहरने और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था की है। आपात स्थिति से निपटने के लिए यहां विशेष व्यवस्था की गई है। अनेक पर्यटन स्तनों को हवाई मार्गों से जोड़ा गया है। केदारनाथ में तो इस वर्ष तीर्थ यात्रियों के लिए लेसर शो की व्यवस्था भी की गई है। जिसमें भगवान शिव से संबंधित अनेकों मंदिर की दीवारों पर साकार किया जाता है।उत्तराखंड की भाषा-सामान्यतः उत्तराखंड राज्य में तीन मुख्य भाषाएं बोली जाती हैं-गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी।

भारतीय भाषा लोग सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल 13 भाषाएं बोली जाती है। उत्तराखंड की भाषाओं को लेकर सबसे पहले सर्वेक्षण करने वाले जार्ज ग्रियर्सन ने भी इनमें से अधिकतर भाषाओं की जानकारी दी थी।ग्रियर्सन न्यू सन 1908 ईस्वी से लेकर सन 1927 ईस्वी तक यह सर्वेक्षण करवाया था।इसके बाद उत्तराखंड की भाषाओं को लेकर कई अध्ययन किए गए। हाल में पाखंडी नामक संस्था ने वी इन भाषाओं पर काम किया। यह पूरा काम 13 भाषाओं पर ही केंद्रित रहा।

इनमें गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी, जौनपुरी, आदि भाषाएं बोली जाती हैं।यदि विचार किया जाए कि एक बोली का अगर अपना शब्द भंडार है,वह खुद को अलग तरह से व्यक्त करती है तो उसे भाषा कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए। अनेक विद्वानों का मानना है कि उत्तराखंड की भाषाओं की अपनी लिपि नहीं है तो हम कह सकते हैं कि संसार में सर्वाधिक प्रसिद्ध अंग्रेजी की भी अपनी लिपि नहीं है। वह रोमन लिपि में लिखी जाती है तो क्या इस आधार पर उसे भाषा मानने से इनकार किया जा सकता है, मराठी की लिपि देवनागरी है और उसे भाषा माना गया है। इसलिए उत्तराखंड की भाषाओं को भाषा के रूप में स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है।

उत्तराखंड की इन भाषाओं में पर्याप्त मात्रा में साहित्य रचना हुई है। इन भाषाओं के प्रचार प्रसार के माध्यम से उत्तराखंड की सभ्यता एवं संस्कृति को और अधिक नजदीक से जाना जा सकता है।उत्तराखंड की लोक संस्कृति भारतीयता की जितनी वाहक है, यहां की पुण्य भूमि और प्राकृतिक संपदा उससे भी अधिक स्मरणीय और नमीय है,हमें सभी को मिलकर इन भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।