कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्वपूर्ण देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो हमारे लिए अधिकांश खदान्नो उत्पन्न करती है। खदान्नो के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है। इसके अतिरिक्त, कुछ उत्पादों जैसे- चाय, कॉफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है।
कृषि के प्रकार
हमारे देश की प्राचीन आर्थिक क्रिया है। पिछले हजारों वर्षों के दौरान भौतिक पर्यावरण, और प्रौद्योगिकी और सामाजिक- सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार खेती करने की विधियों में सार्थक परिवर्तन हुआ है। जीवन निर्वाह खेती से लेकर वाणिज्य खेती तक कृषि के अनेक प्रकार हैं। वर्तमान समय भारत के विभिन्न भागों में निम्नलिखित प्रकार के कृषि तंत्र अपनाए गए हैं।
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि भारत के कुछ भागों में अभी भी की जाती है। प्रारंभिक जीवन निर्वाह कृषि भूमि के एक छोटे टुकड़ों पर आदिम कृषि औजारों जैसी लकड़ी के हल, डाओ(Dao) और खुदाई करने वाली छड़ी तथा परिवार अथवा समुदाय श्रम की मदद से की जाती है। इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपयुक्तता पर निर्भर करती है।
यह ‘कर्तन दहन प्रणाली’ (Slash And Burn) कृषि है। किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज व अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं। जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि के टुकड़े से स्थानांतरित हो जाते हैं और कृषि के लिए भूमि का दूसरा टुकड़ा साफ करते हैं। इस प्रकार के स्थानांतरण से प्राकृतिक प्रक्रियाओ द्वारा मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है। चुंकि किसान उर्वरक अथवा अन्य आधुनिक तकनीकों का प्रयोग नहीं करते इसलिए इस प्रकार की कृषि में उत्पादकता कम होती है। देश के विभिन्न भागों में इस प्रकार की कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
उत्तर पूर्वी राज्यो, असम, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में इसे ‘झूम’ कहा जाता है। मणिपुर में पामलू(Pamlou) और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और अंडमान निकोबार दीप समूह में इसे ‘ दीपा ‘ कहा जाता है।
भारत में भी यह प्रारंभिक किस्म की खेती अनेक नामों से जानी जाती है, जैसे मध्य प्रदेश में ‘बेवर या दहिया’, आंध्र प्रदेश में ‘पोडू’ अथवा ‘ पेंडा ‘, ओडिशा में ‘पामादाबी’ या ‘कोमान’ या ‘बरीगा’, पश्चिमी घाट में ‘कुमारी’, दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में ‘वालरे’ या ‘ वाल्टर ‘ ,हिमालय क्षेत्र में ‘लिख’ झारखंड में ‘कुरुवा’ और उत्तर प्रदेश में ‘झूम’ आदि।
गहन जीविका कृषि
इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहां भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है। यह-श्रम गहन खेती है जहां अधिक उत्पादन के लिए अधिक मात्रा में जैव- रासायनिक निवेशो और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है।
भूस्वामित्व में विरासत के अधिकार के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी जोतों का आकार छोटा और जलाभप्रद होता जा रहा है और किसान वैकल्पिक रोजगार ना होने के कारण सीमित भूमि से अधिकतम पैदावार लेने की कोशिश करते हैं। अतः कृषि भूमि पर बहुत अधिक दबाव है।
वाणिज्यिक कृषि
इस प्रकार किसी के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशो जैसे अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है। कृषि के वाणिज्यकरण का स्तर विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग है। उदाहरण के लिए हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्य की एक फसल है परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।
रोपण कृषि भी एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की खेती में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। रोपण कृषि, उद्योग और कृषि के बीच एक अंत्राप्रश्ट(Interface) है। रोपण कृषि व्यापक क्षेत्र में की जाती है जो अत्यधिक पूंजी और श्रमिकों की सहायता से की जाती है। इससे प्राप्त सारा उत्पादन उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है। भारत में चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि महत्वपूर्ण रोपण फसलें हैं। असम और उत्तरी बंगाल में चाय, कर्नाटक में कॉफी वहां की मुख्य रोपण फसलें हैं। चुकी रोपण कृषि में उत्पादन बिक्री के लिए होता है।
इसलिए इसके विकास में परिवहन और संचार साधन से संबंधित उद्योग और बाजार महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
शस्य प्रारूप
आपने भारत के भौतिक व्यवस्थाओं और संस्कृतियों की बहुलताओं के संबंध में अध्ययन किया है। ये देश में कृषि पद्धतियों और शस्य प्रारूपों में प्रतिबंधित होता है। इसलिए, देश में बोई जाने वाली फसलों में अनेक प्रकार के खाद्यान्न और रेशे वाली फसलें, सब्जियां, फल, मसाले इत्यादि शामिल है। भारत में तीन शस्य ऋतु है, जो इस प्रकार है- रबी, खरीफ और जायद।
रबी फसलें
रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसंबर के मध्य बोला जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। गेहूं, जो, मटर, चना और सरसों कुछ मुख्य रबी फसलें हैं। यद्यपि ये फसलें देश के विस्तृत भाग में कोई बोई जाती है उत्तर और उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश- गेहूं और अन्य रबी फसलों के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण राज्य है। शीत ऋतु में शीतोष्ण पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली वर्षा इन फसलों के अधीक उत्पादन में सहायक होती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में हरित क्रांति की सफलता भी उपयुक्त रबी फसलों की वृद्धि में एक महत्वपूर्ण कारक है।
खरीफ फसलें
खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ कोई बोई जाती है। और सितंबर अक्टूबर में काट ली जाती है। इस ऋतु में बोई जाने वाली मुख्य फसलों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तूर (अरहर), मूंग, उड़द, कपास, जूट, मूंगफली और सोयाबीन शामिल है। चावल की खेती मुख्य रूप से असम, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र विशेषकर कोकण तटीय क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश और बिहार में की जाती है।
पिछले कुछ वर्षों में चावल पंजाब और हरियाणा में बोई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल बन गई है। असम, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा में धान की तीन फसलें- आंस, अमन और बोरों बोई जाती हैं। रबी और खरीफ फसल ऋतुओ के बीच ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है। जायद ऋतु में मुख्यत तरबूज, खरबूजा, खीरे, सब्जियों और चारे की फसलों की खेती की जाती है। गन्ने की फल को तैयार होने में लगभग 1 वर्ष लगता है।