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पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में अंतर

पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में अंतर

पाठ्यक्रम एवं पाठ्यवस्तु दो शब्दों का साधारणत: एक ही अर्थ में उपयोग किया है, परन्तु शिक्षण शास्त्र के अन्तर्गत दोनों में अन्तर माना गया है, पाठ्यक्रम के अन्दर पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जाता है, पाठ्यवस्तु (Syllabur or courses) से तात्पर्य होता है, शिक्षण विषय की पाठ्यवस्तु की रूपरेखा जो किसी विषय के लिये निर्धारित की गई है।

उदाहरण के लिये, हाई स्कूल कक्षा में गणिता विषय में किन-किन प्रकरणों की कितनी पाठ्यवस्तु अथवा प्रकरणों को पढ़ाने के लिये निर्धारित किया गया है, जिस पर परीक्षा में प्रश्नों को करने के लिये दिया जायेगा, शिक्षक छात्रों को उन्हीं प्रकरणों को पढ़ाकर परीक्षा के लिए दिया जायेगा , शिक्षक छात्रों को उन्हीं प्रकरणों को पढ़ाकर परीक्षा के लिये तैयार करता है, उसे गणित की पाठ्यवस्तु (syllabus) कहते हैं, इससे कक्षा शिक्षण नियोजन किया जाता है।

पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु में अंतर | pathykram tatha pathya vastu mein antar

इसमें अंतर निम्न प्रकार से है -

पाठ्यक्रम (pathykram)

  • पाठ्यक्रम की प्रकृत्ति सैद्धान्तिक अधिक तथा व्यावहारिकता कम होती है, इसका तार्किक आकलन किया जाता है।
  • पाठ्यक्र के विकास में शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को महत्त्व दिया जाता है इनकी प्राप्ति की अवधि सम्पूर्ण सत्र होती है तथा शिक्षण प्रक्रिया भी पूर्ण सत्र (plenary session) की है।
  • पाठ्यक्रम में विद्यालय प्रबन्धन की प्रणाली पर पाठ्यक्रम विचार करके व्यवस्था की जाती है, विद्यालय परिसर पाठ्यक्रमों के अनुरूप होते हैं।
  • पाठ्यक्रम में छात्रों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावात्मक गुणों के विकास को महत्त्व दिया जाता है।
  • पाठ्यक्रम विकास का सम्बन्ध शिक्षा के विकास (development of education) तथा शिक्षाशास्त्र (Pedagogy) से अधिक सम्बन्धित होता है।
  • पाठ्यक्रम के चार तत्त्व-शिक्षा के उद्देश्य शिक्षण आयाम, विधियाँ, परीक्षण की प्रणाली तथा पृष्ठपोषण होते है, इसमें प्रबन्धक, प्रशासक, प्रचार्य, शिक्षकों तथा छात्रों आदि सभी का योगदान होता है।
  • पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कक्षागत क्रियाओं (classroom activities) तथा कक्षा से बाहर की क्रियाओं का मूल्यांकन (Evaluation) तथा आकलन किया जाता है। नैतिक गुणों के विकास को महत्त्व दिया जाता है, इसमें पाठ्यक्रम की उपयोगिता व सार्थकता का आकलन (assessment) तार्किक ढंग से किया जाता है।
  • पाठ्यक्रम के विकास की प्रक्रिया समाज से भावी नागरिक तैयार करने के लिए की जाती। सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप पाठ्यक्रम का विकास भी सतत होता रहता है।

पाठ्यवस्तु (pathya vastu)

  • पाठ्यवस्तु से पाठ्यक्रम को व्यवहारिक तथा उपयोगी बनाया जाता है, परीक्षा प्रश्न पत्र बनाने का आधार विषयवस्तु होती है।
  • पाठ्यवस्तु के शिक्षण, उद्देश्य विशिष्ट तथा व्यावहारिक होते है। इनकी शिक्षण कालांश में प्राप्ति कर ली जाती है।
  • पाठ्यवस्तु के विशिष्ट प्रकरण से कक्षा शिक्षण विधियापें, प्रविधियों तथा सूत्रों का निर्धारण करके क्रियान्वयन, प्रस्तुतीकरण तथा प्रदर्शन किया जाता है।
  • पाठ्यवस्तु से प्रकरण सम्बन्धी ज्ञान, कौश्ल एवं रूचियों को महत्त्व दिया जाता है। यह पाठ्यक्रम विकास में सहायक होते हैं।
  • पाठ्यवस्तु का निर्धारण तथा क्रियान्वयन शिक्षाशास्त्र से अधिक सम्बन्धित होता है। परन्तु पाठ्यक्रम का व्यवहारिक रूप ही है।
  • पाठ्यवस्तु के प्रकरणों के अनुसार विशिष्ट ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भवात्मक शिक्षण विधियाँ, प्रविधियाँ, सूत्र मौखिक, प्रयोगात्मक व लिखित परीक्षणों तथा उपचारात्मक प्रविधियाँ (Experiential and affective teaching methods, techniques, formulas, oral, practical and written tests and remedial methods) को सम्मिलित किया जाता है।
  • पाठ्यवस्तु के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कक्षागत क्रियाओं को ही महत्त्व दिया जाता है। निबंन्धात्मक, वस्तुनिष्ट, मौखिक तथा प्रयोगात्मक परीक्षाओं को प्रयुक्त किया जाता है। निदानात्मक परीक्षाओं तथा उपचारी व्यक्तिगत शिक्षण का भी उपयोग किया जाता है।
  • पाठ्यवस्तु की रूप रेखा पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयार की जाती है, परन्तु पाठ्यवस्तु के क्रियान्वयन से तात्कालिका गुणों का विकास होता है। परन्तु इनका सम्बन्ध छात्र के भावी जीवन के विकास से होता है।