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छुआछूत को समाप्त करने के प्रयास

छुआछूत को समाप्त करने के प्रयास

भारतीय समाज में जाति प्रथा तथा वर्ण व्यवस्था नए समाज का विभाजन किया है इस विभाजन के कारण उच्च जातियों तथा निम्न जातियों की भावना प्रबल होती गई तथा समाज में छुआछूत जैसी बुराई व्याप्त हो गई छुआछूत को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं।

छुआछूत को समाप्त करने के प्रयास

छुआछूत भारतीय समाज में एक दीर्घकालीन समस्या रही है, जिसके खिलाफ समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए गए हैं। यह अमानवीय प्रथा न केवल समाज में विभाजन पैदा करती है बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के भी विरोध में है। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख प्रयास किए गए हैं:

सामाजिक आंदोलन

  • महात्मा गांधी के प्रयास - महात्मा गांधी ने छुआछूत के विरुद्ध जोरदार आंदोलन किया। उन्होंने 'हरिजन' शब्द का प्रयोग करके दलित समुदाय को सम्मान देने की कोशिश की और उनके उत्थान के लिए कई प्रयास किए।
  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का योगदान - डॉ. अम्बेडकर ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए कानूनी और सामाजिक संघर्ष किया। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और उनकी बराबरी की मांग की।

कानूनी उपाय

  • भारतीय संविधान - भारतीय संविधान ने छुआछूत को अवैध घोषित किया और इसके विरुद्ध धारा 17 के तहत कानूनी प्रावधान किए।
  • सुरक्षा कानून - सरकार ने दलितों के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए "अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989" जैसे कानून भी बनाए।

शिक्षा और जागरूकता

  • शिक्षा के माध्यम से बदलाव - शिक्षा को छुआछूत के खिलाफ एक मजबूत हथियार माना गया है। समाज में जागरूकता फैलाकर और शिक्षा के माध्यम से लोगों के मानसिकता में बदलाव लाया जा सकता है।
  • सामाजिक अभियान - विभिन्न एनजीओ और सामाजिक संगठनों ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए हैं।

सामाजिक एकीकरण

समावेशी नीतियां- सरकार और सामाजिक संगठनों ने दलित समुदाय के लोगों के समावेश और उनके सशक्तिकरण के लिए विभिन्न नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए हैं।

निष्कर्ष

छुआछूत को समाप्त करने के प्रयास समाज के हर स्तर पर जारी हैं। महत्वपूर्ण है कि समाज के हर व्यक्ति को इस दिशा में योगदान देने की जरूरत है। शिक्षा, कानूनी उपाय, सामाजिक आंदोलन और समावेशी नीतियां इस संघर्ष में महत्वपूर्ण हथियार हैं। एक समावेशी और भेदभाव-मुक्त समाज की ओर बढ़ने के लिए सभी का साथ और सहयोग अत्यंत आवश्यक है।