हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको आनुवंशिकता एवं जैव विकास के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
आनुवंशिकी किसे कहते हैं?
जनन प्रक्रम का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम संतति के जीवों के समान डिजाइन (अभिकल्प) का होना है। आनुवंशिकता के नियम इस बात का निर्धारण करते हैं, जिनके द्वारा विभिन्न लक्षण पूर्व विश्वसनीयता के साथ वंशागत होते हैं।
वंशागत लक्षण
वास्तव में समानता एवं विभिन्नताओं से हमारा क्या अभिप्राय है? हम जानते हैं कि शिशु में मानव के सभी आधारभूत लक्षण होते हैं। फिर भी यह पूर्णरूप से अपने जनकों जैसा दिखाई नहीं पड़ता तथा मानव समष्टि में यह विभिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है।
लक्षणों की वंशागति के नियम
मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता एवं पिता, दोनों ही समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को संतति (शिशु) में स्थानांतरित करते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक लक्षण पिता और माता के डी.एन.ए. से प्रभावित हो सकता है। अत: प्रत्येक लक्षण के लिए, प्रत्येक संतति में दो विकल्प होंगे। फिर संतान में कौन-सा लक्षण परिलक्षित होगा? मेंडल ने इस प्रकार की वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए। इन प्रयोगों के बारे में जानना अत्यंत रोचक होगा जो उसने लगभग एक शताब्दी से भी पहले किए थे।
जैव विज्ञान का विकास
अभी तक हमने जो कुछ भी समझा, वह सूक्ष्म-विकास था। इसका अर्थ है कि यह परिवर्तन बहुत छोटे हैं, तथापि महत्वपूर्ण हैं। फिर भी ये विशिष्ट स्पीशीज की समष्टि के सामान्य लक्षणों (स्वरूप) में परिवर्तन लाते हैं।
लेकिन इससे यह नहीं समझा जा सकता कि नयी स्पीशीज (जाति) का उद्भव किस प्रकार होता है। यह तभी कहा जा सकता था, जबकि भृगों का यह समूह, जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं, दो भिन्न समष्टियों में बँट जाएँ तो आपस में जनन करने में असमर्थ हों। जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तब हम उनहें दो स्वतंत्र स्पीशीज कह सकते हैं।
सोचिए, क्या होगा कि वे झाड़ियाँ जिन पर भृंग भोजन के लिए निर्भर करते हैं, एक पर्वतश्रृंखला के बृहद क्षेत्र में फैल जाएं। परिणामत: समष्टि का आकार भी विशाल हो जाता है। परंतु व्यष्टि भृंग अपने भोजन के लिए जीवन-भर अपने आसपास की कुछ झाड़ियों पर ही निर्भर करते हैं।
वे बहुत दूर नहीं जा सकते। अत: भूगों की इस विशाल समष्टि के आसपास उप-समष्टि होगी। क्योंकि नर एवं मादा भृंग जनन के लिए आवश्यक हैं। अत: जनन प्राय: इन उप समष्टियों के सदस्यों के मध्य ही होगा।
हाँ, कुछ साहसी भृंग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं अथवा कौआ एक भृंग को एक स्थान से उठाकर बिना हानि पहुँचाए दूसरे स्थान पर छोड़ देता है। दोनों ही स्थितियों में अप्रवासी भृंग, स्थानीय समष्टि के साथ ही जनन करेगा। परिणामत: अप्रवासी भृंग के जीन नयी समष्टि में प्रविष्ट हो जाएँगे।
इस प्रकार जीन-प्रवाह उन समष्टियों में होता रहता है, जो आंशिक रूप से अलग-अलग हैं; परंतु पूर्णरूपेण अलग नहीं हुई हैं। परंतु, यदि इस प्रकार की दो उप समष्टियों के मध्य एक विशाल नदी आ जाए, तो दोनों समष्टियाँ और अधिक पृथक हो जाएँगी। दोनों के मध्य जीन-प्रवाह का स्तर और भी कम हो जाएगा।
जीवाश्म
अंगों की संरचना केवल वर्तमान स्पीशीज पर ही नहीं की जा सकती, वरन् उन स्पीशीज पर भी की जा सकती है जो अब जीवित नहीं हैं। हम कैसे जान पाते हैं कि ये विलुप्त स्पीशीज कभी अस्तित्व में भी थीं? यह हम जीवाश्म द्वारा ही जान पाते हैं।
सामान्यतः जीव की मृत्यु के बाद उसके शरीर का अपघटन हो जाता है तथा वह समाप्त हो जाता है। परंतु कभी-कभी जीव अथवा उसके कुछ भाग ऐसे वातावरण में चले जाते हैं, जिसके कारण इनका अपघटन पूरी तरह से नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, यदि कोई मृत कीट गर्म मिट्टी में सूख कर कठोर हो जाए तथा उसमें कीट के शरीर की छाप सुरक्षित रह जाए। जीव के इस प्रकार के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं।