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इसमें हम जानेंगे हिमालय तथा प्रायद्वीप नदियों में मुख्य अंतर।
हिमालय से निकलने वाली नदियां
- इन नदियों की उत्पत्ति हिमानियों से हुई है।
- हिमालय से निकली नदियां सदानीर है, इनमें वर्षभर जल रहता है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियां समतल मैदानी क्षेत्र मैं बहुत ही मंद गति से प्रवाहित होती है। यह नदियां जल परिवहन की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियों का अपवाह क्षेत्र विशाल है।
- इन नदियों में प्राकृतिक जल प्रपातों का अभाव पाया जाता है जिस कारण कृतिम प्रपात बनाकर जल विद्युत शक्ति उत्पादन में भारी व्यय करना पड़ता है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियों के प्रभाव क्षेत्र समतल है अतः इनमें नहरे निकालना बहुत सरल है।
- देश की कुल संभावित जल विद्युत शक्ति का 60% भाग इन नदियों में निहित है।
- हिमालय से निकलने वाली नदियों के किनारों पर महत्वपूर्ण व्यापारिक एवं औद्योगिक नगरों का विकास हुआ है।
- इन नदियों ने विशाल मैदान में उपजाऊ मिट्टी बिछाकर भारत के विस्तृत उत्तरी क्षेत्र को एक प्रमुख कृषि प्रधान प्रदेश बना दिया है।
प्रायद्वीप भारत की नदियां
- इनकी उत्पत्ति वर्षा या भूमिगत जल से हुई है।
- यह नदियां पहाड़ियों एवं पगारों से निकलती है, इनमें वर्षा से जल प्राप्त होने के कारण वर्षभर जल उपलब्ध नहीं रहता है।
- प्रायद्वीप भारत की नदियां असमतल उबर खाबर पथरीले भागों में तीव्र गति से प्रवाहित होती है। अतः प्रवाह क्षेत्र की विषमता के कारण जल परिवहन की दृष्टि से अनुपयोगी है।
- प्रायद्वीप भारत की नदियों की अपवाह क्षेत्र बहुत ही छोटे हैं।
- यह नदियां प्राकृतिक प्रपातों का निर्माण करती है जिससे जल विद्युत शक्ति का उत्पादन सुगम एवं सस्ता पड़ता है।
- सदानीरा ना होने के कारण इन नदियों से नहरे नहीं निकाली जा सकती हैं। अतः इनसे सीमित क्षेत्रों में ही सिंचन कार्य संभव हो पाया है।
- इन नदियों में देश की संभावित जल विद्युत क्षमता का 40% भाग विद्यमान है।
- प्रायद्वीप भारत की नदियों के किनारों पर प्रायः महत्वपूर्ण नगरों का भाव पाया जाता है।
- इन नदियों के तीव्र ढालो से प्रवाहित होने के कारण केवल तटीय भागों में ही छोटे-छोटे उपजाऊ डेल्टाई मैदानों का निर्माण किया जा सकता है।