प्रश्न 1-लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है?
उत्तर- लेखक की गाड़ी छूट रही थी। लेखक जरा दौड़कर सेकण्ड क्लास के एक डिब्बे में बैठे डिब्बे में पहले से ही एक भद्र से दिखाई देनेवाले लखनऊ के नवाब साहब बैठे थे। लेखक के अचानक डिब्बे में आ जाने से उन भद्र सज्जन की आँखों में एकान्त चिन्तन में विघ्न का मन्तोष दिखाई देने लगा। नवाब साहब ने लेखक से मेल-जोल बढ़ाने अथवा संवाद स्थापित करने जरा भी रुचि न दिखाई। इससे लेखक को लगा कि नवाब साहब उससे बातचीत करने का तनिक भी उत्सुक नहीं है।
प्रश्न 2- नवाब साहब ने बहुत ही यल से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः संघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर- नवाब साहब ने ऐसा अपनी अमीरी और नवाबी तबीयत को दर्शाने के लिए किया होगा। ऐसा करने से प्रकट होता है कि नवाब साहब का स्वभाव सनकी था। वे बलपूर्वक स्वयं को लेखक के समक्ष नवाबी तबीयत का प्रस्तुत करना चाहते थे।
प्रश्न 3- बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। पशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- बिना विचार घटना और पात्रों के कभी भी कहानी नहीं लिखी जा सकती। यशपालजी केवल ऐसा नवाब साहब के रेखाचित्र को स्पष्ट करते हुए व्यंग्यस्वरूप में कहा है।
प्रश्न 4-आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर- ‘नवाबी अन्दाज’ अथवा लखनवी नवाव
प्रश्न 5- यशपालजी ने ‘लखनवी अंदाज’ में क्या विचार रखे हैं?
उत्तर- वैसे तो यशपालजी ने ‘लखनवी अंदाज’ नामक व्यंग्य यह सिद्ध करने के लिए लिखा था कि बिना कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती है, परन्तु नई कहानी के कहानीकार नवाब साहब की तरह उसी प्रकार बिना कथ्य के ही कहानी लिख देते हैं, जिस प्रकार नवाब साहब बिना खाए ही तृप्त हो जाते हैं। इस व्यंग्य-रचना में यशपाल उस पतनशील सामन्ती वर्ग पर व्यंग्य करते हैं, जो वास्तविकता से हटकर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है। हम आज के समय में भी समाज में ऐसी परजीवी संस्कृति के वाहक लोगों को देख सकते हैं।
प्रश्न 6 –’लखनवी अंदाज’ रचना में लेखक ने बनावटी जीवन जीनेवाले सामंती वर्ग पर कटाक्ष किया है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- ‘लखनवी अंदाज’ पाठ में एक ऐसे नवाब साहब का वर्णन किया गया है, जो ट्रेन के सेकण्ड क्लास में यात्रा करते हुए अपनी रईसी का प्रदर्शन करने के लिए खीरे में नमक-मिर्च मिलाकर उसे खाते नहीं बल्कि सूँघते हैं और सूँघकर उसे ट्रेन से बाहर फेंक देते हैं। इसके बाद वह इकार लेकर यह दिखाते हैं कि उनका पेट बिना खाए भी भर जाता है। यह घटना बनावटी जीवन जीनेवाले सामंती वर्ग पर लेखक का कटाक्ष है और यह कटाक्ष सब प्रकार से उपयुक्त ही है।