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ल्हासा की ओर पाठ के प्रश्न उत्तर (पाठ- 2‌ राहुल सांकृत्यायन)

ल्हासा की ओर पाठ के प्रश्न उत्तर (पाठ- 2‌ राहुल सांकृत्यायन)

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको ल्हासा की ओर पाठ के प्रश्न उत्तर के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न उत्तर-

प्रश्न 1. थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?

उत्तर – थोङ्ला में ठहरने के स्थान का मिलना न मिलना व्यक्ति के अपने निजी सम्बन्धों पर निर्भर करता है। यहाँ जान-पहचान के आधार पर ठहरने का उचित स्थान पाया जा सकता है। बिना ऊँचे सम्बन्ध और जान-पहचान के यात्री को भटकना पड़ता है।

दूसरी बात यह है कि तिब्बत के अधिकांश लोग शाम को छह बजे के बाद छङ् पीकर मस्त हो जाते हैं , फिर उन्हें दीन – दुनिया की कोई खबर नहीं होती। इस समय इनसे किसी बात की अपेक्षा करना व्यर्थ ही होता है। पहली यात्रा में लेखक के साथ बौद्ध भिक्षु सुमति था, जिसकी वहाँ बहुत अच्छी जान-पहचान थी,

इसलिए भिखमंगे के वेश में होने के कारण भी लेखक को ठहरने का उचित स्थान मिल गया, जबकि दूसरी यात्रा में लेखक भद्र वेश में था, किन्तु कोई जान-पहचान न होने के कारण वह ठहरने का उचित स्थान नहीं पा सका।

प्रश्न 2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

उत्तर – सन् 1929-30 ई. के समय में तिब्बत में हथियार रखने से सम्बन्धित कोई नियम-कानून नहीं था। लोग इसीलिए निःसंकोच पिस्तौल, बन्दूक आदि लेकर घूमा करते थे। दूसरे, डाँड़ों के बीच अनेक निर्जन स्थान थे, जहाँ सरकार व पुलिस का न तो कोई पहरा था और न ही कोई सुरक्षा प्रबन्ध।

डाकू किसी को भी आसानी से मारकर साफ बच निकलते थे। यहाँ के डाकुओं की एक खराब बात यह थी कि वे पहले व्यक्ति को जान से मारते थे, फिर देखते थे कि उसके पास कुछ रुपया-पैसा है अथवा नहीं। इसलिए यात्रियों को लुटने का भय नहीं रहता था, बल्कि अपने प्राणों का भय उन्हें हर क्षण सताता था।

प्रश्न 3. लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?

उत्तर – लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से निम्नलिखित कारणों से पिछड़ गया।

  • लेखक का घोड़ा बहुत ही सुस्त था।
  • लेखक रास्ता भटककर एक-डेढ़ मील गलत मार्ग पर चला गया था। उसे वहाँ से वापस आने में समय लगा, इसी कारण वह अपने साथियों से पिछड़ गया।

प्रश्न 4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर – लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उसके यजमानों के पास जाने से इसलिए रोका , क्योंकि उसे डर था कि वह वहाँ बहुत समय लगा देगा। यदि ऐसा होता तो शायद लेखक को एक सप्ताह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती। दूसरी बार लेखक को वहाँ के मन्दिर में रखी अनेक बहुमूल्य पुस्तकें मिल गई थीं। वह एकान्त में बैठकर उनका अध्ययन – मनन करना चाहता था, इसलिए उसने सुमति को अपने यजमानों से मिलने के लिए जाने की अनुमति दे दी।

प्रश्न 5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?

उत्तर – अपनी यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

  1. वापसी के समय उसे रुकने के लिए अच्छा स्थान न मिला, इसलिए उसे एक बहुत गरीब झोपड़े में रुकना पड़ा।
  2. लेखक को अनेक बार डाकुओं के सामने दया की भीख माँगने का नाटक करना पड़ा, जिससे उसके प्राण बच जाएँ।
  3. लेखक का घोड़ा उतराई के समय बहुत धीरे – धीरे चल रहा था , जिससे लेखक पिछड़ गया।
  4. लेखक को भार ढोने के लिए कोई भरिया (पहाड़ी कुली) न मिला।
  5. लेखक को तिब्बत की कड़ी धूप का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 6. प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?

उत्तर – तिब्बत का तिङी प्रदेश विभिन्न जागीरों में विभाजित है। इनमें से अधिकतर जागीरें विभिन्न मठों के अधीन हैं।जागीरों के मालिक खेती का प्रबन्ध स्वयं करवाते हैं। इसके लिए उन्हें बेगार मजदूर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। खेती की सम्पूर्ण व्यवस्था एक भिक्षु के हाथ में रहती है। ये भिक्षु तिब्बत की जनता में अन्नदाता राजा के समान आदर पाते हैं।

तिब्बती समाज में छुआछूत, जात-पाँत आदि कुप्रथाएँ नहीं हैं। कोई अपरिचित व्यक्ति भी किसी के घर के अन्दर तक जा सकता है। वह यदि चाय की पत्ती लाया है तो झोली में से चाय की पत्ती देकर घर की महिला से चाय बनवा सकता है या अन्दर जाकर मक्खन, सोडा, नमक मिलाकर कूट-पीसकर स्वयं चाय बना सकता है।

घर की सास-बहू आदि महिलाएँ इस सबका बुरा नहीं मानतीं। यहाँ महिलाओं में परदा प्रथा नहीं है। हाँ, निम्नश्रेणी के भिखमंगों को चोरी के डर से घर में नहीं घुसने दिया जाता है। तिब्बत के लोग जान-पहचान होने पर लोगों के ठहरने का से अच्छा प्रबन्ध कर देते हैं; किन्तु शाम के छह बजे के बाद छङ् पीकर वे मस्त होकर दीन-दुनिया की चिन्ता से मुक्त हो जाते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न उत्तर-

प्रश्न 1. भारत की तुलना में तिब्बती महिलाओं की स्थिति का आकलन कीजिए।

उत्तर – भारत की तुलना में तिब्बती महिलाओं की स्थिति अधिक सुरक्षित कही जा सकती है। भारतीय महिलाएँ पुरुषों से परदा करना या दूरी बनाए रखना पसन्द करती हैं। वे किसी अपरिचित को अपने घर में प्रवेश की अनुमति नहीं देती। घर के भीतर तक किसी अपरिचित पुरुष के जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

कारण यह है कि भारतीय स्त्रियाँ पुरुषों से स्वयं को असुरक्षित अनुभव करती हैं। तिब्बती महिलाएं पुरुषों से परदा नहीं करतीं। उन्हें किसी के घर के भीतर तक आ जाने से भी कोई भय नहीं लगता। वे सहज रूप से किसी अपरिचित पुरुष को भी घर के अन्दर तक आ जाने देती हैं, उसका सहर्ष स्वागत करती हैं। उन्हें पुरुषों से अपनी सुरक्षा को लेकर कोई खतरा नहीं लगता।

प्रश्न 2. भारतीय पहाड़ों की तुलना में तिब्बती पहाड़ों की यात्रा कितनी सुरक्षित है?

उत्तर – भारत के पहाड़ों की यात्रा तिब्बती पहाड़ों की यात्रा की अपेक्षा कहीं अधिक सुरक्षित है। यहाँ पहाडी यात्रा के दौरान यात्रियों को लूटपाट, डकैती, हत्या आदि का खतरा नहीं होता। भारत सरकार की ओर से अपने पहाड़ी क्षेत्र में और भी सुरक्षा के प्रयास लगातार किए जाते हैं। सन् 1929-30 के समय में तिब्बती पहाड़ों की यात्रा करना भयंकर और असुरक्षित था।

तब वहाँ हथियार रखने से सम्बन्धित कोई कानून न था, इस कारण लोग लाठी की जगह पिस्तौल और बन्दूक लिए फिरते थे। इस समय वहाँ न तो पुलिस का कोई प्रबन्ध था और न ही गुप्तचर विभाग का। आम जनता की इस उपेक्षा से डाकुओं के हौसले बुलन्द थे। डाँड़े इनके सुरक्षित शरणस्थल थे। यहाँ यात्री का खून करना और फिर उसका माल लूटकर नौ दो ग्यारह हो जाना कोई कठिन कार्य नहीं था। संक्षेप में, तिब्बती पहाड़ों की यात्रा असुरक्षित है।

प्रश्न 3 – लङ्कोर पहुँचने में लेखक को देर क्यों हुई ? सुमति ने वहाँ उसके साथ कैसा व्यवहार किया?

उत्तर – लेखक के लङ्कोर पहुँचने में देर दो कारणों से हुई।एक तो उसका घोड़ा बहुत सुस्त था। दूसरे लेखक गलत रास्ते पर करीब डेढ़ मील आगे तक चला गया। पूछने पर उसे वापस लौटना पड़ा और तब तक शाम के चार – पाँच बज गए लेखक को देखते ही सुमति पूरे गुस्से में बोले कि दो टोकरी कण्डे तो मैंने तुम्हारी चाय तीन-तीन बार गरम करने के चक्कर में फूंक डाले। लेकिन लेखक ने जब अपनी विवशता बताई तो वह जल्दी ही शान्त भी हो गए।बाद में लेखक व सुमति ने चाय-सत्तू खाया और रात को गरमागरम थुक्पा का आनन्द भी लिया।