1-मुद्रा
मुद्रा एक माध्यम है जिसके जरिये हम किसी भी चीज को विनिमय द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में मुद्रा के बदले में हम जो चाहें खरीद सकते हैं। मुद्रा के तौर पर सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन शुरु हुआ।
शुरु में सिक्के सोने-चांदी जैसी महँगी धातु से बनाये जाते थे। जब महंगी धातु की कमी होने लगी तो साधारण धातुओं से सिक्के बनाये जाने लगे। बाद में सिक्कों के स्थान पर कागज के नोटों का इस्तेमाल होने लगा। आज भी कम मूल्य वाले सिक्के इस्तेमाल किये जाते हैं।
सिक्कों और नोटों को सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसी द्वारा जारी किया जाता है। भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा इन नोटों को जारी किया जाता है। भारत के करेंसी नोट पर आपको एक वाक्य लिखा हुआ मिलेगा जो उस करेंसी नोट के धारक को उस नोट पर लिखी राशि देने का वादा करता है।
2-मुद्रा के लाभ
- यह आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से छुटकारा दिलाती है।
- यह कम जगह लेती है और इसे कहीं भी लाना ले जाना आसान होता है।
- मुद्रा को आसानी से कहीं भी और कभी भी विनिमय के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
- आधुनिक युग में कई ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं जिनकी वजह से अब करेंसी नोट को भौतिक रूप में ढ़ोने की जरूरत नहीं है।
मुद्रा के अन्य रूप
बैंक में निक्षेप या जमा: अपने दैनिक आवश्यकताओं के लिये हमें बहुत कम करेंसी नोट की आवश्यकता होती है। बाकी राशि लोग अक्सर बैंकों में निक्षेप या जमा के रूप में रखते हैं। बैंक में जमा धन सुरक्षित रहता है।
और उसपर ब्याज भी मिलता है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से अपने बैंक खाते से रुपये निकाल सकते हैं। बैंक खाते में जमा राशि को जरूरत (डिमांड) के हिसाब से निकाला जा सकता है इसलिए इन खातों के निक्षेप (डिपॉजिट) को डिमांड डिपॉजिट कहते हैं।
लोग अपना बकाया भुगतान करने के लिये चेक का इस्तेमाल भी करते हैं। चेक पर भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और भुगतान की जाने वाली राशि को लिखना होता है। उसके बाद चेक जारी करने वाले व्यक्ति को चेक के नीचे हस्ताक्षर करना होता है।
इसके अलावा डिमांड ड्राफ्ट के जरिये भी भुगतान किया जा सकता है। डिमांड ड्राफ्ट को बैंक से खरीदा जा सकता है। यह दिखने में चेक की तरह ही होता है। डिमांड ड्राफ्ट पर भुगतान की जाने वाली राशि, भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और बैंक अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।
4-महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिये और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह बात सही है कि जोखिम वाली परिस्थिति में ऋण कर्जदार के लिये और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। मान लीजिए कि एक किसान के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है। वह किसान खाद और बीज खरीदने के लिए कुछ रुपये कर्ज पर लेता है। किसान की छोटी सी जमीन से जो उपज होती है वह उसके परिवार का पेट पालने के लिए भी काफी नहीं होती है। इसलिए वह कभी भी कर्ज चुकता करने की स्थिति में नहीं आ पाता। यदि सूखे या बाढ़ ने फसल बरबार कर दी तो बेचारे किसान की मुश्किल और भी बढ़ जाती है। इस तरह धीरे धीरे वह किसान कर्ज के कुचक्र में फंस जाता है।
प्रश्न 2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर: वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या होती है। मान लीजिए कि आपको अपने गेम कंसोल के बदले एक मोबाइल फोन चाहिए। आपको किसी ऐसे व्यक्ति को ढ़ूँढ़ना होगा जिसे अपने मोबाइल फोन के बदले एक गेम कंसोल चाहिए। ऐसा करना एक मुश्किल काम साबित होता है। लेकिन यदि आप अपने गेम कंसोल को कुछ रुपयों के बदले बेच लें तो आसानी से उन रुपयों से किसी अन्य व्यक्ति से मोबाइल फोन खरीद सकते हैं। इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या से छुटकारा दिलाती है।
प्रश्न 3. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?
उत्तर: जिन लोगों के पास अतिरिक्त मुद्रा होती है वे अपना पैसा बैंक में जमा करते हैं। कई लोगों को ऋण की जरूरत पड़ती है। यदि औपचारिक चैनल से ऋण लेना हो तो ऐसे लोग बैंक के पास जाते हैं। बैंक के पास जो जमा धनराशि होती है उसमें से बैंक ऋण देता है। इस तरह से बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच मध्यस्थता का काम करता है।
प्रश्न 4. 10 रुपये के नोट को देखिए। इसके ऊपर क्या लिखा है? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं?
उत्तर: 10 रुपये के नोट पर निम्न पंक्ति लिखी होती है, “मैं धारक को दस रुपये अदा करने का वचन देता हूँ।“ इस कथन के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर होता है। इस कथन से यह पता चलता है कि रिजर्व बैंक ने उस करेंसी नोट पर एक मूल्य तय किया है जो देश के हर व्यक्ति और हर स्थान के लिये एक समान होता है।
प्रश्न 5. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है?
उत्तर: भारत में लगभग 48% ऋण अनौपचारिक सेक्टर से आता है। अनौपचारिक सेक्टर में ऋण पर ब्याज की दर बहुत अधिक होती है। जो लोग औपचारिक सेक्टर से ऋण नहीं ले पाते हैं उन्हें अनौपचारिक सेक्टर की तरफ मुँह करना पड़ता है। अक्सर ऐसे लोग सूदखोरों के चंगुल में पड़ जाते हैं। उसके बाद उनके शोषण का एक अंतहीन सिलसिला शुरु होता है। लोगों को गरीबी और कर्ज के कुचक्र से निकालने के लिए उन तक ऋण के औपचारिक स्रोतों को पहुँचाना जरूरी हो जाता है। इससे ग्रामीण इलाकों में सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 6. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या है? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर: कई लोग इतने गरीब होते हैं कि ऋण के लिए अपनी साख को सिद्ध नहीं कर पाते। उन्हें ऋण की इतनी कम राशि की जरूरत होती है कि ऋण देने में होने वाले खर्चे की भरपाई भी नहीं हो पाती है। अशिक्षा और अज्ञान के कारण उनकी समस्या और भी बढ़ जाती है। ऐसे लोगों की मदद करने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूहों का गठन हुआ है। ऐसे समूह छोटी राशि का ऋण देते हैं ताकि किसी गरीब की आजीविका चलती रहे। स्वयं सहायता समूह से ऋण लेने के लिये उसका सदस्य बनना अनिवार्य होता है। इससे लोगों में समय पर कर्ज चुकाने की आदत भी डाली जा सकती है।
प्रश्न 7. क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?
उत्तर: कोई भी बैंक जब किसी व्यक्ति को ऋण देता है तो उसकि ऋण अदायगी की क्षमता के आधार पर देता है। बैंक ऋण देते समय कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहता है। इसलिये बैंक कुछ चुनिंदा लोगों को ही ऋण देते हैं।
प्रश्न 8. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?
उत्तर: बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालते हैं। इसलिए बैंकिंग सेक्टर के उचित नियमों की जरूरत होती है। भारतीय रिजर्व बैंक का काम है भारत के बैंकिंग सेक्टर के लिये नीति निर्धारण करना। ऐसा करके रिजर्व बैंक न केवल बैंकिंग को सही दिशा में ले जाता है बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में मदद करता है। देश की अर्थव्यवस्था की सेहत सही रखने के लिए यह जरूरी है।
प्रश्न 9. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: विकास में ऋण की अहम भूमिका होती है। ऋण के बिना किसान बड़े पैमाने पर खेती नहीं कर सकते हैं। ऋण के बिना घर और कार खरीदना अधिकांश लोगों के लिये असंभव हो जायेगा। ऋण के बिना किसी छोटी कंपनी को बड़ा बनाना मुश्किल काम होता है। बड़ी से बड़ी कम्पनी को भी अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए ऋण की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 10. मानव को एक छोटा व्यवसाय करने के लिए ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से? चर्चा कीजिए।
उत्तर: मानव को सबसे पहले विभिन्न कर्जदाताओं के ब्याज दर की तुलना करनी चाहिए। उसके बाद उसे गिरवी की मांग और ऋण अदायगी की शर्तों की तुलना करनी चाहिए। मानव को उसी कर्जदाता से ऋण लेना चाहिए जो सबसे कम ब्याज दर मांग रहा हो, कम कीमत वाली गिरवी पर तैयार हो और ऋण अदायगी की आसान शर्तें रख रहा हो। मानव को हर हालत में साहूकार की बजाय बैंक को चुनना चाहिए। क्योंकि ऐसा देखा गया है कि साहूकार द्वारा ऋण की शर्तें अधिक मुश्किल होती हैं और ब्याज दर भी बैंकों की तुलना में बहुत अधिक होता है।