हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको संसाधन नियोजन के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
संसाधन नियोजन किसे कहते हैं?
संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एंपलॉयर(Employer) एक सर्वमान्य रणनीति है। इसलिए भारत जैसे देश में जहां संसाधनों की अवेलेबिलिटी (Availability) में बहुत अधिक विविधता है, यह और भी इंपॉर्टेंट(Importent) है। यहां ऐसे प्रदेश भी है जहां एक तरह के संसाधनों(Resources) की प्रचुरता है, परंतु दूसरे तरह के संसाधनों की कमी है। कुछ ऐसे प्रदेश भी है जो संसाधनों की उपलब्धता के संदर्भ में सेल्फ डिपेंडेंट(Self dependent) है और कुछ ऐसे स्टेट(state) भी है जहां महत्वपूर्ण संसाधनों के अत्यधिक कमी है।
उदाहरण के लिए झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि स्टेट(state) में खनिजों और कोयले के प्रचुर भंडार हैं। अरुणाचल प्रदेश में जल रिसोर्स(Resource) प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, परंतु मूल डेवलपमेंट(Development) की कमी है। राजस्थान में पवन और सोलर एनर्जी(Solar energy) संसाधनों की बहुतायत है लेकिन जल संसाधन की कमी है। लद्दाख का शीत मरुस्थल देश के अन्य भागों से अलग-थलग पड़ता है।
यह स्टेट(state) सांस्कृतिक विरासत का धनी है परंतु यहां जल, आधारभूत अवसंरचना तथा कुछ इंपॉर्टेंट (Importent) खनिजों की कमी है। इसलिए राष्ट्रीय, प्रांतीय, प्रादेशिक और लोकल(Local) स्तर पर संतुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है।
क्रियाकलाप
अपने स्टेट(state) में पाए जाने वाले संसाधनों की लिस्ट(List) तैयार करें और जिन महत्वपूर्ण संसाधनों की आपके राज्य में कमी उनकी पहचान करें।
भारत में संसाधन नियोजन
संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें निम्नलिखित सोपान है- (क) देश के विभिन्न स्टेट(state) में संसाधनों की पहचान कर उनकी टेबल(Table) बनाना। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों की क्वालिटी (Quality) एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना है।
(ब) संसाधन डेवलपमेंट(Development) योजनाए लागू करने के लिए उपयुक्त टेक्नोलॉजी(Technology), कौशल और संस्थागत नियोजन फ्रेम(frame) तैयार करना।
(ग) संसाधन विकास योजनाओं और नेशनल डेवलपमेंट (National development) योजना में समन्वय स्थापित करना।
स्वाधीनता के बाद इंडिया(India) में संसाधन नियोजन के उद्देश्य की सप्लाई(Supply) के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किए गए।
ज्ञात करो–
समुदाय भागीदारी की सहायता से समुदाय/ ग्राम पंचायत / वार्ड स्तरीय समुदायों द्वारा आपके आसपास के क्षेत्र में कौन से संसाधन विकसित किए जा रहे हैं?
किसी एरिया(Area) के विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता एक आवश्यक शर्तें है। परंतु टेक्नोलॉजी (Technology) और संस्थाओ में परिवर्तनों के अभाव में मात्र संसाधनों की अवेलेबिलिटी(Availability) से ही विकास संभव नहीं है। देश में बहुत से क्षेत्र है जो संसाधन समृद्ध होते हुए भी आर्थिक रूप से पिछड़े प्रदेशों की गिनती में आते हैं। इसके विपरीत कुछ ऐसे प्रदेश भी है जो संसाधनों की कमी होते हुए भी आर्थिक रूप से डेवलप्ड (Developed) है।
उपनिवेशन का हिस्ट्री(History) हमें बताता है कि उपनिवेश में संसाधन संपन्न स्टेट(Rich state), विदेशी आक्रमणकारियों के लिए मुख्य आकर्षण रहे है। उपनिवेश कारी देशों ने बेहतर टेक्नोलॉजी(Technology) के सहारे उपनिवेशो के रिसोर्सेज(Resources) का शोषण किया तथा उन पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
अतः संसाधन किसी भी स्टेट(state) के विकास में तभी योगदान दे सकते हैं, जब वहा उपयुक्त टेक्नोलॉजी (Technology) विकास और संस्थागत परिवर्तन किया जाए। उपनिवेशन के विभिन्न चरणों में इंडिया(India) में इन सब का अनुभव किया है। अतः भारत में विकास सामान्यतः तथा संसाधन विकास लोगों के मुख्यतः संसाधनो की अवेलेबिलिटी(Availability) पर ही आधारित नहीं है था बल्कि इसमें प्रोद्योगिकी, मानव संसाधन की क्वालिटी (Quality) और ऐतिहासिक अनुभव का भी योगदान रहा है।
संसाधनों का संरक्षण
संसाधन किसी भी तरह के विकास में इंपॉर्टेंट (Importent) भूमिका निभाते हैं। परंतु संसाधनों का विवेकहीन उपयोग और अति उपयोग के कारण कई सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रॉब्लम(Problem) पैदा हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचाव के लिए विभिन्न स्तरों पर संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। भूतकाल से ही संसाधनों का प्रोटेक्शन(Protection) बहुत से नेताओं और चिंतको के लिए चिंता का विषय रहा है।
उदाहरण के लिए गांधीजी ने संसाधनों के प्रोटेक्शन (Protection) पर अपनी चिंता इन शब्दों में व्यक्त की है- हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी के लालच(gluttony) की संतुष्टि के लिए नहीं। दूसरे शब्दों में हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।
उनके अनुसार वर्ल्ड लेवल(World level) पर संसाधन हास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक टेक्नोलॉजी (Technology) की शोषणत्मक प्रवृति जिम्मेदार है। वे अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान पर अधिक बड़े जनसमुदाय द्वारा प्रोडक्शन (Production) के पक्षधर थे।
यह भी जाने
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत 1968 में क्लब ऑफ रोम ने की। तत्पश्चात 1974 में शुमेसर ने अपनी पुस्तक स्माल ब्यूटीफुल में इस विषय पर गांधी जी के दर्शन की एक बार फिर से पुनरावृति की है। 1987 में ब्रूंड लेंड आयोग रिपोर्ट द्वारा वैश्विक स्तर पर संसाधन संरक्षण में मूलाधार योगदान किया गया।
इस रिपोर्ट ने सतत पोषणीय विकास (Sustainable Development) की संकल्पना प्रस्तुत की और संसाधन संरक्षण की वकालत की है। यह रिपोर्ट बाद में हमारा साझा विषय (Our Common Future) शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। इस संदर्भ में एक और महत्वपूर्ण योगदान रियो डी जेनेरो, ब्राजील में 1992 में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वारा किया गया।
भू-संसाधन
हम भूमि पर रहते हैं इसी पर अनेकों आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं और विभिन्न रूपों में इसका यूज(Use) करते हैं। अतः भूमि एक बहुत इंपॉर्टेंट(Importent) प्राकृतिक संसाधन है। प्राकृतिक वनस्पति, वन्य जीवन, मानव जीवन, आर्थिक क्रियाएं, ट्रांसपोर्टेशन(transportation) तथा संचार व्यवस्थाएं भूमि पर ही आधारित है। परंतु भूमि एक लिमिटेड(Limited) संसाधन है, इसलिए उपलब्ध भूमि का विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से होना चाहिए।