हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको काम आराम और जीवन के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
शहर की विशेषताएं
शहर उस स्थान को कहते हैं जहाँ प्रमुख आर्थिक में कृषि का कोई स्थान नहीं होता है। जब भोजन का उत्पादन इतना अधिक होने लगा कि उससे अन्य आर्थिक गतिविधियों को समर्थन मिलने लगा तो शहरों का विकास हुआ। शहर हमेशा से कई गतिविधियों का केंद्र हुआ करते हैं; जैसे राजनीतिक सत्ता, प्रशासनिक तंत्र, उद्योग धंधे, धार्मिक संस्थाएँ और बौद्धिक गतिविधियाँ।
आवास की समस्या
गाँवों से आने वाले आप्रवासियों के कारण शहर में आवास की समस्या उत्पन्न हो गई। इन लोगों को फैक्टरी या वर्कशॉप की तरफ से आवास की सुविधा नहीं मिलती थी। चार्ल्स बूथ (लिवरपूल के जहाज मालिक) ने 1887 में एक सर्वे किया। इस सर्वे के मुताबिक लंदन में 10 लाख लोग गरीब थे।
यह उस समय के लंदन की आबादी का बीस प्रतिशत था। अमीरों और मध्यम वर्ग के लोगों की औसत जीवन अवधि 55 वर्ष थी। गरीबों की औसत जीवन अवधि 29 वर्ष थी। चार्ल्स बूथ ने निष्कर्ष निकाला कि गरीबों के रहने के लिये लंदन में कम से कम चार लाख कमरों की आवश्यकता थी।
गरीब लोग एक कमरे के मकानों में रहते थे। ऐसे मकानों की अधिक संख्या को जनता के स्वास्थ्य के लिये खतरा माना जाने लगा। ऐसे मकानों हवा आने जाने की समुचित व्यवस्था नहीं थी। ऐसे मकानों में सफाई का प्रावधान भी नहीं था।
इन मकानों में हमेशा आग लगने का खतरा भी बना रहता था। कठिन परिस्थिति में रहने वाले लोग समाज में लड़ाई झगड़े के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करते थे। लंदन के गरीबों की स्थिति सुधारने के लिये मजदूरों के लिये आवास योजना बनाई गई।
औद्योगीकरण और इंग्लैंड के आधुनिक शहरों का उदय
औद्योगिक क्रांति के कई दशक बाद भी अधिकांश पश्चिमी देश ग्रामीण परिवेश वाले ही थे। ब्रिटेन में शुरु के औद्योगिक शहरों में रहने वाले अधिकांश लोग ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करके आये थे।
1750 आते आते इंग्लैंड और वेल्स के हर नौ में से एक व्यक्ति लंदन में रहता था। लंदन एक बड़ा शहर था जहाँ की जनसंख्या 675,000 थी। 1810 से 1880 के बीच लंदन की 10 लाख से बढ़कर 40 लाख हो गई; मतलब चार गुनी हो गई।
लंदन में कोई बड़ी फैक्टरी नहीं थी। इसके बावजूद लंदन पलायन करने वालों की मुख्य मंजिल हुआ करता था। लंदन के डॉकयार्ड में रोजगार के काफी अवसर थे। इसके अलावा लोगों को कपड़ा, जूते, लकड़ी, फर्नीचर, मेटल, इंजीनियरिंग, प्रिंटिंग और प्रेसिजन इंस्ट्रूमेंट में भी काम मिलता था।
प्रथम विश्व युद्ध (1914 – 1919) के दौरान लंदन में कार और इलेक्ट्रिकल उत्पादों का बनना शुरु हुआ। इससे लंदन में बड़े कारखानों की शुरुआत हुई। कुछ समय बीतने के बाद, लंदन में रोजगार के कुल अवसरों का एक तिहाई इन बड़े कारखानों में मौजूद था।