संकेत बिंदु - (1) अनुशासन: अर्थ और महत्व (2) अनुशासन की प्रथम पाठशाला : परिवार (3) अनुशासन एक महत्वपूर्ण जीवन मूल्य (4) व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुशासन का महत्व।
अनुशासन : अर्थ और महत्व
'अनुशासन' शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है 'अनु' अर्थात 'पीछे' या 'पीछा करना' तथा 'शासन' का अर्थ है 'व्यवस्था के साथ' यानी व्यवस्था के अनुसार जीवन यापन करना। संक्षेप में निश्चित व्यवस्था को मानना ही अनुशासन में रहना है।
अनुशासन से व्यक्ति का जीवन सुचारु रुप से, समय का पूरा पूरा सदुपयोग करते हुए, कार्यकुशलता की वृद्धि से प्राप्त अनेक सुख सुविधाओं से भर जाता है। अनुशासन चाहे व्यक्ति द्वारा स्वयं पर लगाया गया अंकुश हो या फिर समाज की किसी परंपरा या व्यवस्था का हो, विस्तृत अर्थों में लाभदायक होता है।
अनुशासन की प्रथम पाठशाला : परिवार
अनुशासन का पहला पाठ व्यक्ति परिवार में रहकर सकता है। यदि परिवार के सदस्य अपने सभी कार्य व्यवस्था से करते हैं तो बच्चा स्वयं ही इसको अपना स्वभाव बना लेता है। जिस घर में सब मनमौजी ढंग से रहते हैं वहां बालक भी वैसा ही व्यक्तित्व अर्जित करता है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। दूसरों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने से पूर्व इसलिए अपने घर को स्वयं को अनुशासित करना अपेक्षित है। अनुशासन की अच्छी आदत बचपन से ही परिवार में दिनचर्या का कड़ाई से पालन करके डाली जा सकती हैं।
अनुशासन एक महत्वपूर्ण जीवन मूल्य
अनुशासन का लक्ष्य है- जीवन को सुमधुर और सुविधा पूर्ण बनाना।मानव अपने जीवन में कुछ भी उद्देश्यों की प्राप्ति करना चाहता है। अनुशासन मानव को अपने जीवन उद्देश्य की प्राप्ति में सहायक होता है। अनुशासन हीन, अवस्थित मनुष्य अपने जीवन में असफल होता है और लोगों के उपहास का केंद्र बनता है। उसे असभ्य, अनपढ़ गवार कहा जाता है।
अनुशासित व्यक्ति की समाज में प्रशंसा होती हैं। अनुशासित व्यक्ति जीवन के एक-एक पल को जीवंतता के साथ जीने का सुख और आनंद उठाता है। वह बाहरी शादी सजा के साथ चारित्रिक गुणों से स्वयं को सुसज्जित करने में लगा रहता है।व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ वह समाज और राष्ट्र के विकास की भी चिंता करता है।
अपने प्रत्येक व्यवहार से वह अनुशासित होने की गरिमा को अप्रत्यक्ष प्रकट करता चलता है। अपने आकर्षण एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व से बहुत सब पर अनुशासन की महता प्रतिपादित करता है। अनुशासन सारांश ऐसा जीवन मूल्य है जो अन्य लोगों को भी सुव्यवस्थित रहने हेतु प्रेरित करता है।
व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुशासन का महत्व
अनुशासन व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों की क्षेत्रों में अनुकरणीय है। व्यक्ति से ही समाज है। व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन का अर्थ है छात्रों को अपने जीवन में प्रत्येक कार्य समय पर और व्यवस्थित ढंग से करना चाहिए। उसके समस्त कार्यों का समय नियत और विभाजित होना चाहिए।
उसकी दिनचर्या निश्चित होनी चाहिए और छात्रों को उसका पालन कड़ाई से स्वयं अपने हित में करना चाहिए। ऐसा करने से अनुशासन उसका आचरण बन जाएगा। कभी-कभी कई कार्य एक ही समय में निपटाने की नौबत आ जाती है। ऐसे कठिन समय में स्थिर चित्त से विचार करके महत्व के अनुसार कार्यों को एक-एक करके निपटाना चाहिए।
एक कार्य को चुनकर सारी शक्ति उसी पर लगा देने से कार्य जल्दी निपट जाता है। और समय का सदुपयोग भी होता है। दुविधा में झुलने अथवा अनिश्चय या अव्यवस्था के भय से आक्रांत होकर इधर-उधर हंगामा मचाने से समय व्यर्थ हो जाता है और जंग सहाई भी होती है। मन में ग्लानि होती है सो अलग।
व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी अनुशासन का महत्व है। सामाजिक जीवन में तो यह लगभग अनिवार्य ऐसा ही होता है। समाज में एक के कार्य का असर दूसरे पर पड़ता है।
जैसे रेल, बस, बैंक, विद्यालय, कार्यालय, पोस्ट ऑफिस, दूध की गाड़ी आदि ऐसे उदाहरण हैं कि यदि यह सही समय पर, सही स्थान पर, सही कार्य को अंजाम न दे तो पूरी व्यवस्था ही चरमरा जाए। अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक कर्मचारी अपने कार्य को गंभीरता से लें। अनुशासन में समय की पाबंदी सर्व प्रमुख है।
स्वयं छात्रों को भी सामाजिक कार्यक्रमों में समय पर पहुंचने की आदत बनानी चाहिए। समय पर ना पहुंचना, व्यवस्था में हस्तक्षेप करना, खाने पीने की चीजें या कागज कोरा आदि इधर-उधर फेंक कर गंदगी फैलाना, शोर शराबा करना अनुशासित छात्र का परिचय नहीं है।