हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको संधारित्र के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
संधारित्र के बारे में
संधारित्र एक ऐसा समायोजन (adjustment) है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित (accumulated) की जा सकती है। दुसरे शब्दों में संधारित्र वह युक्ति है जिसमें चालक के आकार में वृद्धि किये बिना ही उसकी धारिता को बढ़ाया जाता है।
सिद्धांत
माना A एक पृथक्कृत चालक प्लेट है जिसे धनावेश दिया गया है। माना अन्य अनावेशित चालक प्लेट B को उसके पास लाया जाता है तब विद्युत प्रेरण से चालक प्लेट B निकटवर्ती तल पर ऋणावेश दूरवर्ती तल पर धनावेश वितरित हो जाता है। चालक प्लेट B के निकटवर्ती तल पर प्रेरित ऋणावेश चालक प्लेट A के विभव को कम करने का प्रयास करता है, जबकि प्रेरित धनावेश चालक प्लेटें A के विभव को बढ़ाने का प्रयास करता है। चूंकि प्रेरित ऋणावेश चालक प्लेटें A के अधिक निकट है। अतः उसका प्रभाव अधिक पड़ता है जिसके फलस्वरुप चालक प्लेट A का विभव कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप सूत्र C = Q/V के अनुसार उसकी धारिता बढ़ जाती है।
अब यदि चालक प्लेट B का संबंध पृथ्वी से कर दिया जाए तो स्वतंत्र धनावेश पृथ्वी में चला जाता है और उस पर केवल ऋणावेश शेष रहता है अतः चालक प्लेट A का विभव और कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप उसकी विद्युत धारिता और अधिक बढ़ जाती है। दो चालकों के इस निकाय को संधारित्र कहते हैं।
संधारित्र के प्रकार- समांतर प्लेट संधारित्र, गोलाकार संधारित्र, बेलनाकर संधारित्र।
संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक
- प्लेटो के क्षेत्रफल पर- संधारित्र की धारिता प्लेटो के क्षेत्रफल A पर निर्भर करती है तथा क्षेत्रफल के तथा क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होती है। होती है। C ∝ A
- प्लेटो के बीच की दूरी पर- संधारित्र की धारिता प्लेटों के बीच की दूरी पर निर्भर करती है तथा इसके व्युत्क्रमानुपाती होती है। C ∝ 1/d
- प्लेटो के बीच के माध्यम पर- संधारित्र की धारिता दोनों प्लेटों के बीच के माध्यम पर निर्भर करती है तथा परावैद्युत माध्यम होने पर बढ़ जाती है। C = KC